हरदा। जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर हंडिया के नर्मदा तट पर नर्मदा नदी का नाभि कुंड है. जिसका जल अपने आप में धार्मिक और वैज्ञानिक आधार पर भी बहुत ही पवित्र है और मनुष्य को पापों के साथ-साथ असाध्य रोगों से भी मुक्ति दिलाता है. नर्मदा नदी के नाभि कुंड के उत्तर तट पर प्राचीन सिद्धनाथ और दक्षिण तट पर रिद्धनाथ महादेव का वर्षों पुराना मन्दिर है, जो भक्तों के आस्था का केंद्र है.
जानकार बताते है कि नर्मदा तट का यह स्वयंभू पत्थर पर नाभि के आकार का बना हुआ एक कुंड है. जो लगभग 2 फुट गहराई में है. इसके चारों तरफ 3 फीट की दीवार बनी हुई है. जिसके चारों कोनों में सूर्य, विष्णु, गणेश और दुर्गा प्रतिमा स्थापित किए हुए है. जिस तरह मनुष्य के शरीर में नाभि होती है उसी तरह इसकी आकृति होने के चलते इसे नाभिकुंड भी कहा जाता हैं. यहां देश के बड़े-बड़े संत आकर सिद्धियों की प्राप्ति करते हैं.
मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी कहलाने वाली नर्मदा नदी का उद्गमस्थल शहडोल जिले के अमरकंटक से हुई है. लगभग 12 सौ किलोमीटर का सफर तय करने के बाद नर्मदा नदी गुजरात प्रांत के अरब सागर की खम्बात की खाड़ी में जाकर मिलती है. विंध्याचल पर्वत श्रेणी से निकलने वाली इस नदी की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि यह पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है. बाकी सभी नदियां आमतौर पर पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है. नर्मदा नदी डेल्टाओं का निर्माण नहीं करती, इसकी कई सहायक नदियां है.
महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार नर्मदा नदी के दोनों तटों पर 60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं. इस नदी के हर कंकर में भगवान शंकर का रूप है. इस नदी में स्नान, आचमन करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, लेकिन केवल दर्शन करने मात्र से पुण्य लाभ मिलने के साथ समस्त पापों का भी नाश होता है. वहीं नर्मदा ही विश्व की एक मात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है.
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान शिव लोक कल्याण करने को तपस्या करने मैकाले पर्वत पर पंहुचे थे. इस दौरान उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ था. इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई, जो शांकरी व नर्मदा कहलाई. भगवान भोलेनाथ के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भूभाग में रव करती हुई प्रवाहित होने लगी. रव के कारण ही इसका नाम रेवा भी हुआ. मैकाले पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण इस नदी को मेकलसुता भी कहते हैं.