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धूल खा रहीं मिट्टी परीक्षण करने वाली लाखों रुपए की मशीनें, अन्नदाता परेशान

हरदा जिले में लाखों रुपये की लागत से मिट्टी परीक्षण के लिए बनाई गई प्रयोगशालाएं अधिकारियों की उदासनीता के चलते बंद पड़ी है. लाखों रुपए की लागत से खरीदी गई मशीनें धूल खा रही है.

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Published : Dec 1, 2020, 4:45 PM IST

Soil testing laboratory
मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला

हरदा। शासन के द्वारा दो साल पहले हरदा जिला मुख्यालय सहित खिरकिया और टिमरनी में लाखों रुपए की लागत से कृषि उपज मंडियों में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला बनाई गई. ताकि किसानों को उनके खेतों की मिट्टी के परीक्षण के लिए सलाह दी जा सके. लेकिन स्थानीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते दो साल पहले बनी तीन प्रयोगशाला में दो अब तक नहीं खुल पाई है. वहीं जिला मुख्यालय में 18 लाख की लागत से बनी प्रयोगशाला में महज औपचारिकता पूरी की जा रही है. यहां पर लाखों रुपए की लागत से खरीदी गई मशीनें धूल खा रही है. प्रयोगशाला में स्टाफ की कमी भी बनी हुई है. जिसके कारण खिरकिया और टिमरनी सहित प्रदेश के अन्य जिलों में भी प्रयोगशाला बंद पड़ी हैं.

उधर, सरकार लगातार किसानों की आय को लागत से दोगुनी करने की बात कर रही है, लेकिन किसानों के खेतों की मिट्टी का समय से परीक्षण नहीं किया जा रहा है. ऐसे में पोषक तत्वों की कमी के चलते समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हर साल किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के साथ मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से भी उत्पादन प्रभावित हो रहा है. जिसका खामियाजा किसानों की भुगतना पड़ रहा है. हरदा जिले में पिछले कई सालों से लगातार अधिक मात्रा में खाद का प्रयोग और नहर के पानी की वजह से मिट्टी कठोर होती जा रही है. किसान खेतों की मिट्टी को लेकर प्रयोगशाला पहुंचते हैं, लेकिन प्रयोगशाला बंद होने की वजह से जांच नहीं हो पाती है.

लैब प्रभारी के मुताबिक 2019-20 में लैब में आने वाले 1240 किसानों के खेतों की मिट्टी का परीक्षण किया जा चुका है. साथ ही एक हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दी गई है. प्रयोगशाला में स्टाफ की कमी पर उन्होंने कहा कि यह शासन स्तर का मामला है.

हरदा। शासन के द्वारा दो साल पहले हरदा जिला मुख्यालय सहित खिरकिया और टिमरनी में लाखों रुपए की लागत से कृषि उपज मंडियों में मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला बनाई गई. ताकि किसानों को उनके खेतों की मिट्टी के परीक्षण के लिए सलाह दी जा सके. लेकिन स्थानीय अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते दो साल पहले बनी तीन प्रयोगशाला में दो अब तक नहीं खुल पाई है. वहीं जिला मुख्यालय में 18 लाख की लागत से बनी प्रयोगशाला में महज औपचारिकता पूरी की जा रही है. यहां पर लाखों रुपए की लागत से खरीदी गई मशीनें धूल खा रही है. प्रयोगशाला में स्टाफ की कमी भी बनी हुई है. जिसके कारण खिरकिया और टिमरनी सहित प्रदेश के अन्य जिलों में भी प्रयोगशाला बंद पड़ी हैं.

उधर, सरकार लगातार किसानों की आय को लागत से दोगुनी करने की बात कर रही है, लेकिन किसानों के खेतों की मिट्टी का समय से परीक्षण नहीं किया जा रहा है. ऐसे में पोषक तत्वों की कमी के चलते समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हर साल किसानों को प्राकृतिक आपदाओं के साथ मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी से भी उत्पादन प्रभावित हो रहा है. जिसका खामियाजा किसानों की भुगतना पड़ रहा है. हरदा जिले में पिछले कई सालों से लगातार अधिक मात्रा में खाद का प्रयोग और नहर के पानी की वजह से मिट्टी कठोर होती जा रही है. किसान खेतों की मिट्टी को लेकर प्रयोगशाला पहुंचते हैं, लेकिन प्रयोगशाला बंद होने की वजह से जांच नहीं हो पाती है.

लैब प्रभारी के मुताबिक 2019-20 में लैब में आने वाले 1240 किसानों के खेतों की मिट्टी का परीक्षण किया जा चुका है. साथ ही एक हजार से ज्यादा लोगों को ट्रेनिंग दी गई है. प्रयोगशाला में स्टाफ की कमी पर उन्होंने कहा कि यह शासन स्तर का मामला है.

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