ग्वालियर। देश-विदेश में ग्वालियर की पहचान किसी की मोहताज नहीं है, लेकिन अब विदेशों में ग्वालियर की पहचान सफेद पत्थर यानी टेंटमिंट के नाम से भी होगी. शिवराज सरकार की 'एक जिला एक प्रोडक्ट' के नाम से जो योजना बनाई है, उसमें ग्वालियर की पहचान सफेद पत्थर से होगी. ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्वालियर का सफेद पत्थर कई देशों में सप्लाई होता है. साथ ही इसका सालाना एक्सपोर्ट लगभग पांच हजार करोड़ के करीब है. ऐसे में अब नए सिरे से पत्थर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ग्वालियर की स्टोन पार्क योजना पर शुरुआती दौर में 241 करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट करने जा रही है.
सफेद पत्थर के कारोबार को बढ़ावा
सफेद पत्थर की खदानों पर हो रहे अवैध उत्खनन को लेकर अब शिवराज सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. जिसके चलते अब पत्थर की खदानों को नीलाम नहीं किया जाएगा बल्कि लीज पर दिया जाएगा. जिससे ग्वालियर के स्टोन पार्क को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल मिल पाएगा. साथ ही ग्वालियर के सफेद पत्थर के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए इसे एक जिला एक प्रोडक्ट का नाम दे दिया है. इस हिसाब से ग्वालियर सफेद पत्थर के नाम से जाना जाएगा. वहीं सरकार ने इस प्रक्रिया को मंजूरी देने के साथ ही खदान संचालकों को एक और राहत दी है कि अब प्रत्येक एक हेक्टेयर पर सालाना लीज रेट डेढ़ लाख रुपए सरकार लेगी.
मध्य प्रदेश की सरकार के इस फैसले से अब ग्वालियर के घाटीगांव, मोहना क्षेत्र में मौजूद सफेद पत्थर की फर्शी खदानें चालू होने का रास्ता साफ हो गया है. साथ ही अब विदेशों में ग्वालियर का पत्थर एक्सपोर्ट हो सकेगा, क्योंकि बीते एक दशक ग्वालियर चम्बल अंचल में सफेद पत्थर की खदानें बंद थी, जिसके चलते करीब पांच हजार करोड़ रुपए के पत्थर के कारोबार पर फर्क पड़ा था, लेकिन ग्वालियर के घाटीगांव क्षेत्र की पत्थर खदानें बंद होने से यहां की इकाइयों के पास कच्चे माल की कमी तो हुई, लेकिन अब सरकार के इस फैसले से उम्मीद जागी है.
स्टोन पार्क इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष का कहना है कि इस योजना से लोगों को रोजगार के अवसर मिलेंगे और कई दिनों से चली आ रही बेरोजगारी की समस्या से भी निजात मिलेगी.
इन देशों में जाता है ग्वालियर का सफेद पत्थर(टेंटमिंट)
- ऑस्ट्रेलिया
- साउथ अफ्रीका
- सऊदी अरब
- अमेरिका
- फ्रांस सहित और भी यूरोपीय के अन्य देश
बहरहाल शिवराज सरकार की एक जिला एक प्रोडक्ट योजना से ग्वालियर जिले की सफेद पत्थर की खदानें शुरू हो जाएगी, जो बीती 1 जून 2016 को एनजीटी की आपत्ति के बाद बंद कर दी गई थी. जबकि ये खदानें भले ही कागज में बन्द थी लेकिन अवैध उत्खनन यहां जारी था, ऐसे में सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का चूना तो लग ही रहा था. साथ ही अवैध उत्खनन को रोकने में लगी पुलिस की टीमों पर भी हमले होते रहे थे. अब इस योजना के चलते खदान की शुरुआत से ये सभी समस्याएं तो हल होंगी ही जिले का विकास भी होगा.