ग्वालियर। प्राचीन मंदिरों की स्थिति इन दिनों भक्तों के रहमों करम पर ही रह गई है. मंदिर के पास कभी सैकड़ों बीघा जमीन हुआ करते थे, लेकिन अब वह थोड़े में ही सिमटकर रह गए हैं. मंदिर की जमीन पर आस-पास के रहने वाले ग्रामीणों ने अतिक्रमण कर लिया है. यह हाल प्राचीन मंदिरों में शुमार अचलेश्वर महादेव मंदिर, खेड़ापति हनुमान मंदिर और राम जानकी मंदिर थाटीपुर का है.
मंदिर में करवाई जाती है गरीब परिवारों की शादियां
करीब 400 साल पुराने अचलेश्वर मंदिर की प्रसिद्धि उस समय लोगों में बढ़ी, जब सिंधिया राजवंश के महाराजा ने बीच रास्ते में बनें अचल नाथ की पिंडी को हटवाने की कोशिश की. जब वह इसे हटवाने में असफल रहें तब उन्होंने मंदिर के लिए अपना रास्ता बदल दिया. तभी से इस मंदिर का नाम भगवान अचलनाथ से अचलेश्वर महादेव हो गया. इस मंदिर के पास अपनी कोई जमीन नहीं है, लेकिन यह मंदिर अपने आप में इसलिए अनूठा है क्योंकि इस मंदिर में एक साथ 1250 गरीब वर्ग के लड़के-लड़कियों की शादी कराई जाती है. कोरोना काल में जब लोगों को खाने की समस्या हुई और नंगे पांव मजदूर दूसरे शहरों से पैदल ही ग्वालियर आ रहे थे, तब मंदिर वालों ने उनके लिए राशन, चप्पल और अन्य सामान उपलब्ध कराए थे. इस मंदिर की आय लगभग छह लाख रुपए महीना है, जो कोरोना काल में कम हुई थी. 2020 में कोरोना के कारण मंदिर में गरीब परिवार की शादियां नहीं कराई गई थी. यहां हर सोमवार को करीब 50,000 श्रद्धालु भगवान अचलनाथ का आशीर्वाद लेने आते हैं.
ये भी पढ़ें: बाबा महाकाल के भक्त ने दान की 45 बीघा जमीन
ग्वालियर में छोटी दास की शाला के नाम से प्रसिद्ध खेड़ापति हनुमान मंदिर के पास कभी 400 बीघा से ज्यादा जमीन थी, जो सिमटकर अब 8 बीघा के नजदीक रह गई है. मंदिर की जमीन रमटा पुरा बिजौली सहित अन्य ग्रामीण इलाकों में थी, लेकिन यह जमीन कुछ सरकारी राजस्व के खाते में चली गई, तो कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया. मंदिर के आसपास अब सिर्फ 8 बीघा जमीन पर ही स्थानीय लोग खेती करते हैं और उसका राजस्व मंदिर ट्रस्ट को देते हैं. मंदिर परिसर में एक दर्जन से ज्यादा दुकानें हैं, जिनका करीब 40,000 महीने का किराया आता है, जो मंदिर के संचालन में खर्च किया जाता है. जबकि यहां हमेशा डेढ़ से दो दर्जन साधु संत निवासरत रहते हैं.
पुजारी मंदिर में गौशाला खोलने की इच्छा रखते हैं
इसी तरह का हाल राम जानकी मंदिर का थाटीपुर का है. यह मंदिर भी कभी अपने पास सैकड़ों हेक्टेयर जमीन रखता था, जो सिमट कर अब 9 बीघा रह गई है. इस जमीन पर साधु-संतों ने लोगों को साफ-सफाई के नाम पर रहने दिया था, लेकिन उन्होंने धीरे-धीरे यहां कब्जा कर लिया. पिछले साल इस मंदिर से प्रशासन ने कब्जा हटाया है. फिलहाल, यहां 9 बीघा जमीन में खेती नहीं की जा रही है, लेकिन मंदिर के पुजारी कहते हैं कि वे यहां गौशाला खोलने की इच्छा रखते हैं. इसमें प्रशासन के सहयोग की जरूरत होगी. इस मंदिर से जुड़ी जमीन भी कई ग्रामीण इलाकों में फैली है, जो अब अलग-अलग लोगों के कब्जे में आ चुकी है. मंदिर की आय का एकमात्र साधन यहां आने वाले श्रद्धालु हैं. इसके अलावा ददरुआ महाराज मंदिर भिंड से यहां साधु संतों के खर्चे वहन किए जाते हैं.