ग्वालियर। राजस्थान के सिरोही जिले के जंगलों में पाई जाने वाली बकरी ग्वालियर अंचल के किसानों को अतिरिक्त रोजगार दिलाने में सहायक साबित हो रही है. ग्वालियर के राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सिरोही नस्ल के बकरे का पिछले 1 साल से पालन कर रहे हैं. उसके दूध और मीट दोनों में ही औषधीय गुण होते हैं. वहीं इसकी विशेषता यह है कि इस नस्ल के बकरे कम ही बीमार पड़ते हैं.
ग्वालियर के राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय में पिछले एक साल से सिरोही नस्ल के बकरे और बकरियों का पालन किया जा रहा है. यह बकरे आम बकरों के मुकाबले कहीं ज्यादा वजनी और बकरियां 3 गुना तक ज्यादा दूध देने में सहायक होती हैं. ग्वालियर और उज्जैन कृषि विज्ञान केंद्र में सिरोही नस्ल पर हुए शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इसे स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप ढालने में भी सफलता हासिल की है. खास बात यह है कि इसका दूध और मीट भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है. हार्ड किस्म की होने के कारण इसका लालन पालन करना बेहद आसान है और छोटी मोटी बीमारियां तो इसके पास भी नहीं फटक सकती हैं. इसकी मृत्यु दर कम रहती है. गाय-भैंस से कम आहार और छोटे किसानों के लिए बेहद लाभदायक है सिरोही बकरी. इनका आकार सामान्य से लगभग दोगुना रहता है. बकरी का दूध भी एक बार में ढाई लीटर तक मिल जाता है.
छोटे किसान गाय और बकरी के कॉम्बीनेशन को अपनाकर दूध की जरूरत पूरी करने के साथ ही बकरी के मीट का व्यापार कर के अतिरिक्त आय ले सकते हैं. खास बात यह है कि अच्छे किस्म की नस्ल होने के बावजूद सिरोही बकरी की आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं हो पा रही है. 1 साल में सिर्फ चार सिरोही बकरे ही किसानों के विभिन्न ग्रुपों को दिए जा सके हैं. जबकि इसकी डिमांड कहीं ज्यादा है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके उत्पादन को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है. सिरोही बकरे की खासियत यह है कि सामान्य बकरी की ब्रिडिंग कराने पर भी सिरोही नस्ल का बच्चा ही पैदा होता है.