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बुजुर्गों के जज्बे ने बंजर धरती को भी बना दिया 'सोना', उजड़े श्मशान को किया गुलजार

ग्वलियर में बुजुर्गों के समूह ने श्मशान घाट का नजारा ही बदल दिया है, जहां कुछ साल पहले तक मरघट जैसा सन्नाटा पसरा रहता था, वो बंजर जमीन अब हरियाली से पटी पड़ी है, साथ ही यहां लोगों के पीने के पानी, बैठने आदि का इंतजाम भी किया गया है.

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Published : Aug 10, 2019, 4:44 PM IST

बुजुर्गों ने बदली श्मशान घाट की तस्वीर

ग्वालियर। कहते है जहां चाह होती है, वहीं राह होती है, या यूं कहें कि मंजिल का रास्ता आसान हो जाता है और मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो फिर उम्र भी आपका रास्ता नहीं रोक पाती है. यही वजह है कि बुजुर्गों की एक टोली ने अचंभित करने वाला काम कर दिखाया है और देखते ही देखते श्मशान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया.

बुजुर्गों ने बदली श्मशान घाट की तस्वीर


चार शहर नाका रोड पर स्थित श्मशान 18 वर्षों से वीरान पड़ा था, लेकिन बुजुर्गों के समूह ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति की बदौलत श्मशान का कायाकल्प कर दिया. अब श्मशान का नजारा पूरी तरह बदल गया है.

परिसर में चारों ओर पेड़-पौधे और हरियाली नजर आती है तो पीने के पानी के लिए वॉटर कूलर, नहाने के लिए गीजर से निकलते गर्म पानी, बैठने के लिए सीमेंट की कुर्सियां, टीन सेट आदि का जन-सहयोग से निर्माण करवाया है.


इतना ही नहीं ये संस्था क्षेत्र की लावारिस लाशों का भी अंतिम संस्कार कराती है. अस्थियों को लेकर संस्था के कार्यकर्ता हरिद्वार जाते हैं और उन्हें गंगा में प्रवाहित करते हैं. जिसके बाद कन्या भोज का आयोजन किया जाता है.


संस्था के सदस्य अमर सिंह मीणा ने बताया कि वह हर महीने जन-सहयोग के लिए साइकिल से निकलते हैं, जिसमें लोगों का भरपूर सहयोग मिलता है.15 लोगों से शुरु हुआ कारवां 400 लोगों तक जा पंहुचा, जो आगे भी जारी रहेगा. ईटीवी भारत मध्यप्रदेश

ग्वालियर। कहते है जहां चाह होती है, वहीं राह होती है, या यूं कहें कि मंजिल का रास्ता आसान हो जाता है और मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो फिर उम्र भी आपका रास्ता नहीं रोक पाती है. यही वजह है कि बुजुर्गों की एक टोली ने अचंभित करने वाला काम कर दिखाया है और देखते ही देखते श्मशान को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया.

बुजुर्गों ने बदली श्मशान घाट की तस्वीर


चार शहर नाका रोड पर स्थित श्मशान 18 वर्षों से वीरान पड़ा था, लेकिन बुजुर्गों के समूह ने अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति की बदौलत श्मशान का कायाकल्प कर दिया. अब श्मशान का नजारा पूरी तरह बदल गया है.

परिसर में चारों ओर पेड़-पौधे और हरियाली नजर आती है तो पीने के पानी के लिए वॉटर कूलर, नहाने के लिए गीजर से निकलते गर्म पानी, बैठने के लिए सीमेंट की कुर्सियां, टीन सेट आदि का जन-सहयोग से निर्माण करवाया है.


इतना ही नहीं ये संस्था क्षेत्र की लावारिस लाशों का भी अंतिम संस्कार कराती है. अस्थियों को लेकर संस्था के कार्यकर्ता हरिद्वार जाते हैं और उन्हें गंगा में प्रवाहित करते हैं. जिसके बाद कन्या भोज का आयोजन किया जाता है.


संस्था के सदस्य अमर सिंह मीणा ने बताया कि वह हर महीने जन-सहयोग के लिए साइकिल से निकलते हैं, जिसमें लोगों का भरपूर सहयोग मिलता है.15 लोगों से शुरु हुआ कारवां 400 लोगों तक जा पंहुचा, जो आगे भी जारी रहेगा. ईटीवी भारत मध्यप्रदेश

Intro:ग्वालियर- यह नजारा देखकर आप शायद यह सोच रही होंगे कि यह कोई पार्क या पर्यटन स्थल है जिस परिसर में बड़े-बड़े पेड़ पौधे हरियाली इस बात का इशारा करती है कि यह कोई बगीचा है। यही वजह है कि देखने वाली पहली नजर में ही इसे पर्यटन स्थल और पार्क समझते हैं। लेकिन हकीकत में यह एक मुक्तिधाम है जहां लोगों को अंतिम संस्कार के लिए लाया जाता है। ग्वालियर के चार शहर का नाका इलाके में स्थित इस मुक्तिधाम में हजारों की तादात में पेड़ पौधे लगे हैं अमूमन श्मशान घाट में आने पर लोगों को मायूस पर लगता है लेकिन इस श्मशान में आने वाले लोग सुकून महसूस करते हैं। शमशान को स्वर्ग बनाने का बीड़ा बुजुर्ग की एक टीम ने कुछ साल पहले उठाया था और आज इस श्मशान कि उन्होंने तस्वीर बदल दी।


Body:ग्वालियर के चार शहर नाका स्थित श्मशान घाट 18 साल पहले उजाड़ था यहां ना कोई पीने का पानी मिलता था पर नहीं बैठने की सही व्यवस्था थी। कभी इस पार्क में शराबी जुआरी और कबाड़ी अपना निवास करते थे लेकिन 15 लोगों की टीम ने इस श्मशान घाट को संवारने का बीड़ा उठाया और इनके साथ 400 लोगो का करवा जुड़ता चला गया । पार्क की तरह सजा इस मुक्तिधाम में आज सभी जरूरी सुविधाएं हैं यहां पीने के ठंडे पानी की मशीन ,आरओ व सर्दियों में नहाने के लिए गर्म पानी करने हेतु गीजर भी लगाया गया है। इसके अलावा पूरे मुक्तिधाम में टीन सेट लगाए गए हैं। एक गार्डन यहां विकसित किया गया है बैठने के लिए सीमेंट की कुर्सियां चबूतरे बनाए हैं। यहां 24 घंटे पानी की उपलब्धता के लिए बोरिंग भी लोगों के सहयोग से कराई गई है। संस्था के सदस्य अमर सिंह मीणा हर महीने मदद के लिए साइकिल से निकलते हैं कोई 50 रुपए देता है तो कोई 100 रुपए । इस पैसे से मुक्तिधाम में सुविधाएं जुटाई जाती है संस्था के सदस्य लोगों को इस काम के लिए प्रेरित करने का काम भी करते हैं यही वजह है कि अब तक संस्थान में चार शहर का नाका मुक्तिधाम के लिए काम करने 400 लोगों की टीम जुड़ चुकी है।

बाईट - अमर सिंह मीणा , संस्था का सदस्य


Conclusion:संस्था क्षेत्र में लावारिस शवों का भी अंतिम संस्कार कराती है अंतिम संस्कार से पहले लावारिस शवों की पूरी पड़ताल कराई जाती है उनके बाद बात पुख्ता होने के बाद अंतिम संस्कार कराया जाता है इसके बाद उनकी अस्थियां को लेकर संस्था के कार्यकर्ता हरिद्वार ले जाते हैं और उन आस्तियों को गंगा में प्रभावित किया जाता है उसके बाद लौटकर कन्या भोजन किया जाता है। अब इस संस्था में बुजुर्गों की टीम ने शमशान की हालत बदलना शुरू किया तो इनके साथ युवाओं की टीम भी जुड़ती चली गई। आज का युवा भी मानव सेवा में जुटे हुए हैं और श्मशान आकर सेवा तो करते है वह अन्य लोगों को भी प्रेरणा देते हैं

बाईट -

किसी शायर ने कहा है कि कौन कहता है कि आसमां में सुराग नहीं होता.... एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो ... इन पंक्तियों को हकीकत कर दिखाया है चार शहर नाका इलाके में रहने वाले बुजुर्गों की टोली ने ......जो आज लोगों के लिए सेवा का मिसाल बनी हुई है.
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