ग्वालियर। एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती, पर ये मुहावरा अब बीते जमाने का हो चुका है क्योंकि अब एक ही क्षेत्र में दो-दो दिग्गज रहते हैं. हालांकि, ग्वालियर-चंबल अंचल की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है, जब केंद्रीय कैबिनेट में एक ही शहर के दो-दो मंत्री शामिल हैं. अभी हाल में ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय मंत्री बनाया गया है, उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली है, जबकि केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पहले से ही मोदी के खासमखास रहे हैं. ग्वालियर-चंबल अंचल में दोनों नेताओं की गहरी पैठ है. यही वजह है कि अब यहां सिंधिया और तोमर के बीच वर्चस्व की लड़ाई और तेज होगी क्योंकि दोनों ही खुद को सुपर पावर बनने के लिए पहले से ही एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. तोमर पहले से ही अंचल में बीजेपी के बड़े कद्दावर नेता माने जाते रहे हैं, जबकि अंचल के महाराजा ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी राजशाही राजनीति के लिए किसी से समझौता नहीं करते हैं, अब देखना होगा कि इन दोनों में कौन अपनी साख मजबूत कर पाता है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिलने के बाद अब अंचल में तोमर बनाम सिंधिया वाली तस्वीरें सामने आयेंगी. राजनीतिक गलियारों में यही चर्चा है कि एक म्यान में दो तलवारें कैसे रहेंगी. मतलब पहले से ही बीजेपी के कद्दावर नेता नरेंद्र सिंह तोमर नरेंद्र मोदी के खासमखास हैं, अब उनकी बराबरी में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भी आ चुके हैं. सिंधिया के पास महल की ताकत है, पर 'धोखेबाजी' का ठप्पा भी लगा है. जबकि तोमर पहले से ही मोदी-शाह के खासमखास रहे हैं. भले ही इनकी लड़ाई सामने नहीं आएगी, पर अंदरूनी तरीके से अपना वर्चस्व कायम करने में कोई पीछे भी नहीं रहेगा. पिछले 6 महीने से वर्चस्व जमाने की होड़ लगी है, सिंधिया को बीजेपी में आए एक साल से ज्यादा समय हो गया है, इस दौरान ग्वालियर चंबल अंचल में दौरे के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
अब और बढ़ी दिलों की दूरियां
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया महीने में तीन बार चंबल अंचल का दौरा किये हैं तो वहीं केंद्रीय मंत्री तोमर भी सिंधिया की सक्रियता देखते हुए वह भी लगातार अंचल का दौरा कर रहे हैं. हालात ये हो चुके हैं कि जब इन दोनों नेताओं में से किसी एक का अंचल में दौरा होता है तो पीछे से दूसरा नेता अंचल के दौरे पर आने के लिए अपना प्रोग्राम बना लेता है. इससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय बाहर नहीं, बल्कि अंदरूनी तरीके से तोमर और सिंधिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी है. बस अंतर ये है कि अब खुलकर बाहर नहीं आ पा रही है. दोनों दिग्गजों के समर्थक भी आमने-सामने हैं, वह लगातार अपने-अपने नेताओं को सर्वशक्तिमान बताने और साबित करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, एक की सड़क से संगठन तक पैठ है, जबकि दूसरे की महल से महापंचायत तक धमक है.
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जब अंचल में इनमें से किसी का भी दौरा होता है तो उनके समर्थक अपने नेता का वर्चस्व कायम करने के लिए बड़ी संख्या में वाहनों को लेकर पहुंच जाते हैं. उसके बाद शक्ति प्रदर्शन करते हैं. ये द्वंद दोनों नेताओं के बीच पिछले 6 महीने से चली आ रही है, अब जैसे कि सिंधिया भी केंद्रीय मंत्री बन गए हैं तो उनका कद भी तोमर के बराबर हो गया है, बदले हालात में अब सिंधिया समर्थक श्रीमंत को ही सर्वशक्तिमान बनाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, जबकि तोमर पहले से ही बीजेपी के कद्दावर नेता के रूप में अपनी धमक रखते हैं, उनके समर्थक भी सबसे अधिक हैं, पर सिंधिया अंचल के राजशाही नेता हैं. ऐसे में दोनों नेता एक ही पार्टी में और एक ही अंचल के होने के कारण अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए आमने सामने हैं. वहीं दबी जुबान ये भी चर्चा है कि सिंधिया को आगे कर बीजेपी तोमर का प्रभाव कम करना चाहती है.