ग्वालियर। हमेशा से बागी और डाकू के लिए बदनाम रहा ग्वालियर चंबल अंचल देश ही नहीं बल्कि चंद्रमा तक अपना नाम रोशन करने में लगा हुआ है. अब जाम व तकनीकी के क्षेत्र में ग्वालियर किसी से भी पीछे नहीं है. इस बात को सिद्ध किया है ग्वालियर के युवा प्रतीक त्रिपाठी ने जो कि वर्तमान में आईआईटी रुड़की में स्कॉलर हैं. जिनका चयन मार्च में चंद्रमा के लिए आयोजित कार्यक्रम आर्टेमिस मिशन 3 के लिए किया गया था. बता दें प्रतीक का चयन 300 स्कॉलर में से किया गया था, जो ग्वालियर सहित प्रदेश के लिए एक बड़ी बात है. 10 सप्ताह के सालाना समर इंटर प्रोग्राम में प्रतीक ने निष्कर्ष दिया किस तरह अंतरिक्ष में जाने वाले यात्री 2 घंटे के भीतर लैंडिंग साइट से परमानेंट शैडो रीजन में लौट सकते हैं. gwalior research scholar prateek tripathi, astronauts return from landing site psr in 2 hours, research scholar prateek tripathi of iit rukki
नासा के वैज्ञानिकों का ध्यान किया आकर्षित: ग्वालियर के बहोड़ापुर में जाधव कॉलोनी में रहने वाले रविंद्र त्रिपाठी के बेटे प्रतीक ने देश का नाम रोशन करते हुए नासा में एक इंटर्नशिप प्रोग्राम का हिस्सा बन ग्वालियर का भी नाम ऊपर किया है. इस दौरान ना सिर्फ नासा के शोधकर्ताओं के साथ काम किया, बल्कि अपने शोध कार्यों में नासा के वैज्ञानिकों का ध्यान भी आकर्षित किया. साथ ही लैंडिंग साइट से जुड़े विभिन्न पहलुओं जैसे ढलान, तापमान, रोशनी और पैदल चलने में लगने वाले समय के मानकों का आकलन कर उस पर सभी का ध्यान भी केंद्रित किया. प्रतीक के इस लगन और मेहनत को देखते हुए नासा के वैज्ञानिकों ने एक तरफ जहां इन मानकों पर विशेष ध्यान दिया. वही इसे आर्टेमिस मिशन का विशेष उद्देश्य भी बनाया. पिता ने बताया की प्रतीक ने अपना यह काम लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टिट्यूट एलपी आई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ डेविड क्रीम के मार्गदर्शन में पूरा किया.
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300 प्रतिभागियों को पीछा छोड़ा नासा पहुंचा प्रतीक: प्रतीक वर्तमान में ज्योमैट्रिक्स इंजीनियर ग्रुप के रिसर्च सेंटर में स्कॉलर हैं, जो कि प्रोफेसर राहुल देव के अधीन काम कर रहे हैं. प्रतीक त्रिपाठी ने 2016 में ग्वालियर के ट्रिपल आईटीएम ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग से ब्रांच में टॉपर के रूप में बीए की डिग्री प्राप्त की. इसरो के संस्थान आईआईआरएस से 2018 में एमटेक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद प्रतीक आईआईटी रुड़की में चयनित हो गए. यहीं रहते हुए प्रतीक ने एलपी आई और नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर द्वारा आयोजित इंटर्नशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया. जहां 300 से ज्यादा प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए प्रतीक ने नासा की राह पकड़ ली.
बचपन से तारों-सितारों में थी प्रतीक को दिलचस्पी: प्रतीक की मां उषा त्रिपाठी ने बताया उसे बचपन से ही तारे सितारे के बारे में जिज्ञासा रहती थी. वह बचपन में ही घर में एक रखी दूरबीन से तारों को देखता रहता था. साथ ही मुझे भी छत पर ले जाकर अपनी किताब में पढ़कर सारे तारे दिखाने की कोशिश करता था, तब मैं कहती थी मुझे खाना बनाना है नहीं समझ आता था कि बचपन में तारे सितारे की बातें करने वाला मेरा बेटा आज उन्हीं पर बड़ी-बड़ी शोध करेगा. प्रतीक के पिता रविंद्र भाटी ने बताया प्रतीक तीन भाइयों में सबसे छोटा है, बड़ा भाई मुंबई में जॉब करता है. बीच का भाई ग्वालियर में ही बैंक में जॉब करता है. प्रतीक की सोच बचपन से ही अलग थी. आज भी वह सबसे हटके ही कार्य कर रहा है, जिसके लिए हमारे पूरे परिवार को उस पर बहुत गर्व है. प्रतीक के पिता ने बताया कि वह देश में रहकर ही देश की सेवा करना चाहता है. साथ ही कोशिश रहेगी कि वह नित नई बुलंदियों को छुए जहां भी उसे जरूरत होगी हम उसके साथ रहेंगे.(gwalior research scholar prateek tripathi) (astronauts return from landing site psr in 2 hours) (research scholar prateek tripathi of iit rukki)