ग्वालियर। मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को भले ही सफलता मिल गई हो, लेकिन इसके बावजूद सिंधिया खेमे में बहुत खुशी का माहौल नहीं है. क्योंकि परिणाम उनके अनुकूल नहीं आए हैं जैसे कि प्रदेश में प्रदेश में भाजपा की लहर चल रही थी. ग्वालियर चंबल में सिंधिया के 13 समर्थन चुनावी मैदान में थे जिनमें से पांच समर्थकों को जीत हासिल हुई है. तो वहीं आठ सिंधिया समर्थकों को हर का सामना करना पड़ा है. यही कारण है कि प्रचंड बहुमत से बीजेपी जीतने के बाद भी सिंधिया खेमे में मायूसी छाई है.
एक दर्जन समर्थक चुनावी मैदान में: मध्य प्रदेश के चुनाव में सिंधिया के ग्वालियर चंबल अंचल में कुछ एक दर्जन समर्थक चुनावी मैदान में थे. जिसको लेकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य जमकर पसीना बहाया. इस चुनाव में अपने समर्थकों को जीतने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दी और लगातार बिना थके और बिना रुके. उन्होंने आधा सैकड़ा से अधिक जनसभाएं और रोड शो निकाले. वहीं जातिगत वोटो के लिए उन्होंने हर जाति वर्ग की बैठक आयोजित की लेकिन इसके बावजूद उन्हें उन्हें उतनी सफलता नहीं मिल पाई, जितनी उन्हें मिलनी चाहिए.
8 सीटों पर हारे सिंधिया समर्थक: मतलब साफ है की ग्वालियर चंबल अंचल में सिंधिया की साख पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. भले ही मध्य प्रदेश में उनकी सरकार बनने जा रही है लेकिन ग्वालियर चंबल अंचल में अपने समर्थकों के लिए उनका जादू कुछ खास असर नहीं डाल पाया. ग्वालियर चंबल अंचल की 34 सीटों में से बीजेपी को लगभग 18 सीटे मिली है तो वहीं कांग्रेस के खाते में 16 सीटे हैं. जिनमें से लगभग 13 सीटों पर सिंधिया समर्थक चुनाव लड़े थे. जिनमें से 8 सिंधिया समर्थक चुनाव हार गए तो वहीं पांच सिंधिया समर्थन को नहीं जीत हासिल की है.
यह नेता हारे: हारे हुए प्रत्याशियों में रघुराज सिंह कंसाना, कमलेश जाटव, इमरती देवी, माया सिंह, सुरेश धाकड़, महेंद्र सिसोदिया, जसपाल जज्जी और हीरेंद्र सिंह बना शामिल हैं. वहीं, जो सिंधिया समर्थक चुनाव जीते हैं उनमें प्रद्युमन सिंह तोमर, मोहन सिंह राठौड़, महेंद्र यादव, जगन्नाथ रघुवंशी और वीरेंद्र यादव हैं. ग्वालियर चंबल अंचल में जितने सिंधिया के समर्थक जीते हैं उससे ज्यादा चुनाव हारे हैं इसे सिंधिया की साख पर भी कई सवाल खड़े होगे.
नहीं चला सिंधिया का जादू: इसका कारण यह है कि जब केंद्रीय मंत्री सिंधिया साल 2018 में कांग्रेस में थे तब ग्वालियर चंबल अंचल से कांग्रेस से 26 सीटे जीतकर आई थी और जिसका श्रेय सिंधिया को गया था. उसके बाद जब सिंधिया बीजेपी में आए और उसके बाद अपने साख को बचाने के लिए और उनके वर्चस्व को नापने के लिए पार्टी ने इस बार के चुनाव में पूरी कमान सौंप दी थी. यही कारण है कि ग्वालियर चंबल अंचल में उन्होंने सबसे ज्यादा ताबड़तोड़ रैलियां और सभाएं कीं. वही पार्टी ने पूरी जिम्मेदारी उन पर ही सौंप दी, लेकिन इसके बावजूद सिंधिया का जादू कुछ खास असर नहीं डाल पाया.