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बिजली कर्मियों के आश्रित हुए निराश्रित, नहीं मिली अनुकंपा नियुक्ति, प्रदेश में साढ़े 5 हजार केस लंबित

मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार कर्मचारियों को बड़ी-बड़ी सौगातें देने का दावा करती है. वहीं बिजली कंपनी में सेवा के दौरान मौत का शिकार हुए लोगों के आश्रित सालों से अनुकंपा नियुक्ति के लिए दर-दर भटक रहे हैं. प्रदेश में साढ़े 5 हजार से ज्यादा इस प्रकार के मामले पेंडिंग हैं. लंबे समय से ऊर्जा मंत्री इस प्रकार के मामलों को कैबिनेट में लाने का आश्वासन दे रहे हैं.

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कर्मियों के आश्रित हुए निराश्रित नहीं मिली अनुकंपा नियुक्ति
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Published : Feb 15, 2023, 1:30 PM IST

कर्मियों के आश्रित हुए निराश्रित नहीं मिली अनुकंपा नियुक्ति

ग्वालियर। प्रदेश की शिवराज सरकार हमेशा दावे करती है कि वह कर्मचारियों और उनके परिवारों के बड़ी हितैषी है. उनके हर दुख दर्द में सरकार सदैव साथ खड़े रहती है. इसी प्रकार अनुकंपा नियुक्ति को लेकर भी बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश विद्युत मंडल टूटकर विद्युत वितरण और ट्रांसमिशन कम्पनिया में काम करने वाले कर्मचारियो के परिजनों को तो कम से कम ऐसा नहीं लगता. मुख्यमंत्री ने हाल ही में अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर नई नीति बनाने का दावा किया है. दावा है कि तत्काल अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाएगी, लेकिन सच ये है कि बिजली महकमे में जान जोखिम में डालकर काम करते हुए अगर कोई मौत का शिकार हो जाता है तो उसके आश्रित को नौकरी नहीं मिल पाती है.

चक्कर लगा-लगाकर थक गए आश्रित : आश्रित परेशान होकर दफ्तर,अफसर और मंत्री के चक्कर लगा-लगाकर अधेड़ हो जाता है लेकिन उसे अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिलती. हालत ये हैं कि विद्युत मंडल के समय के साढ़े 5 हजार से ज्यादा परिवार दो दशकों से अनुकम्पा नियुक्ति की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन नौकरी है कि मिल ही नहीं पा रही. ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के ग्वालियर स्थित बंगले से निकल रहे अंशुल श्रीवास के पिता मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में कार्यरत थे. उन्होंने जीवनभर पूरी निष्ठा और मेहनत से अपने विभाग के लिए काम किया, लेकिन जब परिवार की जिम्मेदारी उठाने का समय आया तो सेवा के दौरान ही उनका निधन हो गया. तब अंशुल किशोरवय थे. विभाग के लोगों की मदद से उन्होंने 2012 में अपने पिता के रिक्त स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया.

सात साल से भटक रहे हैं अंशुल : अंशुल बताते हैं कि सात वर्ष बीत चुके हैं. अंशुल किशोर से युवा हो चुके हैं. अनुकम्पा नियुक्ति की आस में वे और कोई काम भी नहीं कर सके. वह अफसरों, दफ्तरों और मंत्री तक के यहां चक्कर लगाकर थक चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें नौकरी नहीं, सिर्फ आश्वासन मिले हैं. अंशुल श्रीवास अकेले ऐसे पीड़ित युवा नहीं हैं, जो विद्युत मंडल में कार्यरत अपने दिवंगत पिता के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति पाने के लिए चक्कर लगा रहे हों, बल्कि इनकी संख्या साढ़े 5 हजार से भी कहीं ज्यादा (5600)है. जिनके मुखिया ने सेवा के दौरान अपनी जान गंवाई और उनके परिजन उनके स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए सालों से एड़ियां रगड़ते हुए भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.

कहीं से कोई स्पष्ट जवाब नहीं : विद्युत विभाग में सन् 2000 से 2012 के बीच विद्युत मंडल के दिवंगत कर्मचारियों के परिजनों के 5600 अनुकम्पा नियुक्ति प्रकरण विचाराधीन थे. उसके बाद विद्युत मंडल कंपनियों में तब्दील हो गया. इसके बाद ये प्रकरण अधर में लटक गए. हालांकि उस समय सरकार ने घोषणा की थी इन सबको नौकरी दी जाएगी लेकिन आज तक नौकरी मिलना तो दूर इसके लिए कोई दिशा निर्देश तक तैयार नही हो सके. नतीजतन वे अफसरों से मिलते है तो वे कहते है कि हम कम्पनी में हैं, मंडल में नहीं. आप मंत्रालय में जाओ और मंत्रालय कम्पनी के पास जाने की बात कहकर टरका देता है.

लगातार आश्वासन ही मिल रहे : पीड़ित अंशुल कहते हैं कि जब ग्वालियर के प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जा मंत्री बने तो उन्हें लगा था कि अब उन्हें जल्द नौकरी मिल जाएगी और उनके परिवार की समस्याओं का अंत हो जाएगा. क्योंकि जब वे विपक्ष में थे तो विद्युत से जुड़ी समस्याओं के लिए ही सबसे ज्यादा सक्रिय रहते थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अंशुल का कहना है कि मेरी और मेरे जैसे मंडल के सन 2000 से 2012 के बीच के करीब 5600 ऐसे सामान्य मृत्यु में आश्रित अनुकम्पा प्रकरण विचाराधीन हैं और हम अनेक बार मंत्री जी से भी मिलकर आग्रह कर चुके हैं कि हमे नियुक्ति दी जाए. वे हमें लगातार आश्वासन दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा है लेकिन वह कब स्वीकृत होगा ? और हमें कब नौकरी मिलेगी ? वह ये नहीं बता पाए.

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ऊर्जा मंत्री ये बोले : इस मामले में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि विद्युत विभाग में अनुकम्पा नियुक्ति का मामला है. बीच में आश्रित अनुकम्पा नियुक्तियां बंद हो गईं थीं. फिर अनेक नियम बदले गए. कुछ ड्यूटी पर थे, उनको लेते थे जो ड्यूटी पर दिवंगत नहीं हुए, उनको नहीं लेते थे. अभी वर्तमान में अनुकम्पा नियुक्ति चल रही है लेकिन जो पुराने प्रकरण हैं, जिन्हें नियुक्ति नहीं मिली है. उसके लिए हम मामला कैबिनेट में ले जाएंगे. कैबिनेट के माध्यम से हम इसका निराकरण करने का प्रयास करेंगे.

कर्मियों के आश्रित हुए निराश्रित नहीं मिली अनुकंपा नियुक्ति

ग्वालियर। प्रदेश की शिवराज सरकार हमेशा दावे करती है कि वह कर्मचारियों और उनके परिवारों के बड़ी हितैषी है. उनके हर दुख दर्द में सरकार सदैव साथ खड़े रहती है. इसी प्रकार अनुकंपा नियुक्ति को लेकर भी बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन मध्यप्रदेश विद्युत मंडल टूटकर विद्युत वितरण और ट्रांसमिशन कम्पनिया में काम करने वाले कर्मचारियो के परिजनों को तो कम से कम ऐसा नहीं लगता. मुख्यमंत्री ने हाल ही में अनुकंपा नियुक्तियों को लेकर नई नीति बनाने का दावा किया है. दावा है कि तत्काल अनुकम्पा नियुक्ति मिल जाएगी, लेकिन सच ये है कि बिजली महकमे में जान जोखिम में डालकर काम करते हुए अगर कोई मौत का शिकार हो जाता है तो उसके आश्रित को नौकरी नहीं मिल पाती है.

चक्कर लगा-लगाकर थक गए आश्रित : आश्रित परेशान होकर दफ्तर,अफसर और मंत्री के चक्कर लगा-लगाकर अधेड़ हो जाता है लेकिन उसे अनुकम्पा नियुक्ति नहीं मिलती. हालत ये हैं कि विद्युत मंडल के समय के साढ़े 5 हजार से ज्यादा परिवार दो दशकों से अनुकम्पा नियुक्ति की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन नौकरी है कि मिल ही नहीं पा रही. ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के ग्वालियर स्थित बंगले से निकल रहे अंशुल श्रीवास के पिता मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में कार्यरत थे. उन्होंने जीवनभर पूरी निष्ठा और मेहनत से अपने विभाग के लिए काम किया, लेकिन जब परिवार की जिम्मेदारी उठाने का समय आया तो सेवा के दौरान ही उनका निधन हो गया. तब अंशुल किशोरवय थे. विभाग के लोगों की मदद से उन्होंने 2012 में अपने पिता के रिक्त स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन दिया.

सात साल से भटक रहे हैं अंशुल : अंशुल बताते हैं कि सात वर्ष बीत चुके हैं. अंशुल किशोर से युवा हो चुके हैं. अनुकम्पा नियुक्ति की आस में वे और कोई काम भी नहीं कर सके. वह अफसरों, दफ्तरों और मंत्री तक के यहां चक्कर लगाकर थक चुके हैं, लेकिन अब तक उन्हें नौकरी नहीं, सिर्फ आश्वासन मिले हैं. अंशुल श्रीवास अकेले ऐसे पीड़ित युवा नहीं हैं, जो विद्युत मंडल में कार्यरत अपने दिवंगत पिता के स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति पाने के लिए चक्कर लगा रहे हों, बल्कि इनकी संख्या साढ़े 5 हजार से भी कहीं ज्यादा (5600)है. जिनके मुखिया ने सेवा के दौरान अपनी जान गंवाई और उनके परिजन उनके स्थान पर अनुकम्पा नियुक्ति के लिए सालों से एड़ियां रगड़ते हुए भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं.

कहीं से कोई स्पष्ट जवाब नहीं : विद्युत विभाग में सन् 2000 से 2012 के बीच विद्युत मंडल के दिवंगत कर्मचारियों के परिजनों के 5600 अनुकम्पा नियुक्ति प्रकरण विचाराधीन थे. उसके बाद विद्युत मंडल कंपनियों में तब्दील हो गया. इसके बाद ये प्रकरण अधर में लटक गए. हालांकि उस समय सरकार ने घोषणा की थी इन सबको नौकरी दी जाएगी लेकिन आज तक नौकरी मिलना तो दूर इसके लिए कोई दिशा निर्देश तक तैयार नही हो सके. नतीजतन वे अफसरों से मिलते है तो वे कहते है कि हम कम्पनी में हैं, मंडल में नहीं. आप मंत्रालय में जाओ और मंत्रालय कम्पनी के पास जाने की बात कहकर टरका देता है.

लगातार आश्वासन ही मिल रहे : पीड़ित अंशुल कहते हैं कि जब ग्वालियर के प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जा मंत्री बने तो उन्हें लगा था कि अब उन्हें जल्द नौकरी मिल जाएगी और उनके परिवार की समस्याओं का अंत हो जाएगा. क्योंकि जब वे विपक्ष में थे तो विद्युत से जुड़ी समस्याओं के लिए ही सबसे ज्यादा सक्रिय रहते थे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अंशुल का कहना है कि मेरी और मेरे जैसे मंडल के सन 2000 से 2012 के बीच के करीब 5600 ऐसे सामान्य मृत्यु में आश्रित अनुकम्पा प्रकरण विचाराधीन हैं और हम अनेक बार मंत्री जी से भी मिलकर आग्रह कर चुके हैं कि हमे नियुक्ति दी जाए. वे हमें लगातार आश्वासन दे रहे हैं. उन्होंने बताया कि प्रस्ताव कैबिनेट में भेजा है लेकिन वह कब स्वीकृत होगा ? और हमें कब नौकरी मिलेगी ? वह ये नहीं बता पाए.

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ऊर्जा मंत्री ये बोले : इस मामले में ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का कहना है कि विद्युत विभाग में अनुकम्पा नियुक्ति का मामला है. बीच में आश्रित अनुकम्पा नियुक्तियां बंद हो गईं थीं. फिर अनेक नियम बदले गए. कुछ ड्यूटी पर थे, उनको लेते थे जो ड्यूटी पर दिवंगत नहीं हुए, उनको नहीं लेते थे. अभी वर्तमान में अनुकम्पा नियुक्ति चल रही है लेकिन जो पुराने प्रकरण हैं, जिन्हें नियुक्ति नहीं मिली है. उसके लिए हम मामला कैबिनेट में ले जाएंगे. कैबिनेट के माध्यम से हम इसका निराकरण करने का प्रयास करेंगे.

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