ग्वालियर। भारतीय जनता पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी कर दी है. सोमवार को जारी हुई सूची में भी 39 नाम हैं. सबसे खास बात यह है कि इसमें बीजेपी ने अपने तीन कद्दावर केंद्रीय मंत्री और पांच अन्य वरिष्ठ सांसदों के नाम शामिल किए हैं. यह सूची जारी करके बीजेपी ने संदेश दिया है कि वह करो या मरो की रणनीति पर काम कर रही है. भोपाल में 25 सितंबर को पीएम मोदी के कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते और वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय उनके साथ मंच पर ही थे, लेकिन इनमें से कोई भांप नहीं सका कि मोदी के मन में क्या चल रहा है. मोदी ने अपना दौरा खत्म कर दिल्ली कूच किया और उधर से बीजेपी की सूची आ गयी. इसमें तोमर, पटेल, विजयवर्गीय अचानक राष्ट्रीय राजनीति से प्रदेश की सियासत में आ चुके थे. खुद कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि वे नाम देखकर चौंक पड़े.
उन सीटों पर बीजेपी का दांव जहां कांग्रेस का कब्जा: अगर मोदी के इस फैसले पर गौर करें तो पाएंगे कि बीजेपी ने अपने केंद्रीय मंत्री और सांसद जैसे कद्दावर नेताओं को अचानक विधानसभा में उतारकर उनके लिए कोई फूलों की सड़क नहीं बिछाई है. बल्कि उनका मार्ग कठिन किया है. अगर सूची देखें तो बड़े नेताओं को अधिकांशतः उन सीट पर दांव पर लगाया गया है, जहां बीजेपी का कब्जा नहीं है. सिर्फ प्रहलाद पटेल ही हैं, जिन्हें उनके भाई के कब्जे वाली सीट पर उतारा गया है. मसलन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर को मुरैना की दिमनी सीट से उतारा गया है. तोमर क्षत्रियों के बाहुल्य वाली सीट दिमनी में अभी कांग्रेस का कब्जा है. चार बार से यहां बीजेपी हार रही है. कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर एक से उतारा गया है. जहां से कांग्रेस के संजय शुक्ला मैदान में हैं. रीति पाठक को सीधी से केदार शुक्ला का टिकट काटकर मैदान में उतारा गया है, क्योंकि वहां हालात खराब हैं.
साल 1984 की रणनीति बीजेपी ने अपनाई: वहीं जबलपुर में दिग्गज सांसद राकेश सिंह को जबलपुर पश्चिम से टिकट दिया गया है. यह सीट कांग्रेस के कब्जे में है और भनौत परिवार का यहां अच्छा प्रभाव है. इसी प्रकार नर्मदापुरम सीट से सांसद उदयप्रताप सिंह को गाडरवारा से उतारा गया है. जिस पर कांग्रेस का कब्जा है. बीजेपी की इस सूची से अस्सी के दशक में कांग्रेस द्वारा अपनाई रणनीति की झलक मिलती है. 1984 में राजीव गांधी ने तब के विपक्ष के बड़े नेताओं को हराने के लिए चौंकाने वाले चेहरे उतार दिए थे. अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ माधवराव सिंधिया, हेमवती नंदन बहुगुणा के खिलाफ अमिताभ बच्चन इसका उदाहरण थे. इसका नतीजा यह निकला था कि उस संसद में विपक्ष का कोई भी नेता जीतकर नहीं पहुंच सका था.