ग्वालियर. हाईकोर्ट ने डबरा के एक सरकारी डॉक्टर के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करते हुए टिप्पणी भी की है. हाई कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि आप ने क्लीन हैंड से एंट्री नहीं की है और आप फर्जी दस्तावेज बनाने के अभ्यस्त में हैं. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि डबरा स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ डॉ. वीरेंद्र गौर के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी और कूट रचित दस्तावेज बनाने के मामले में गंभीरता से विवेचना की जाए. साथ ही कोर्ट ने डॉक्टर पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.
2017 का है मामला
डॉक्टर वीरेंद्र गौर का मामला साल 2017 का है. जिसमें गौर डबरा के रहने वाले मुकेश पाराशर, धर्मेंद्र पांडे और उनकी पत्नी रागिनी पांडे के बीच किसी बात को लेकर विवाद हुआ था. पांडे दंपत्ति ने मुकेश पर जानलेवा हमलाकर दिया. मुकेश की शिकायत पर दंपत्ति के खिलाफ हत्या की कोशिश का मामला दर्ज किया गया था. घटना का सीसीटीवी फुटेज भी सामने आया था. इस मामले में डबरा में पदस्थ डॉ. वीरेंद्र गौर ने घटना वाले दिन से अगले दिन तक आरोपियों का अपने सुपरविजन में इलाज के लिए भर्ती होने का दावा किया था. डॉक्टर ने इससे संबंधित कागजात भी उन्हें दिए थे. इसी आधार पर एक आरोपी रागिनी पांडे को हाईकोर्ट से घटना के 10 दिन बाद अग्रिम जमानत दे दी थी. इसी जमानत को निरस्त कराने के लिए फरियादी ने कोर्ट में याचिका दायर की. मामले में कोर्ट ने आरोपी रागिनी पांडे की अग्रिम जमानत को निरस्त कर दिया और डॉक्टर के खिलाफ मामला दर्ज करने के आदेश दिया. अपने खिलाफ दर्ज मामले को निरस्त कराने के लिए डॉक्टर ने पहले 2018 में फिर 2019 में और अब 2021 में कोर्ट में याचिका दायर की.
याचिका दाखिल करने में भी बोला झूठ
डॉक्टर गौर ने कोर्ट में दाखिल अपनी नई याचिका को लेकर भी झूठ बोला. उन्होंने कहा कि इस बार उनके द्वारा लगाई गई याचिका यह उनकी पहली याचिका है, जबकि पहले दो दायर याचिकाओं के तथ्य को उन्होनें छुपा लिया. सुनवाई के दौरान फरियादी के वकील ने कोर्ट को बताया किकि डॉक्टर ने दो बार पहले भी अपने खिलाफ दर्ज मामले को निरस्त कराने के लिए याचिका दायर की थी. ऐसे में उनके खिलाफ दर्ज मामले को निरस्त नहीं किया जा सकता. तर्क से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने डॉ. वीरेंद्र कुमार गौर के खिलाफ टिप्पणी करते हुए उनकी याचिका को निरस्त कर दिया और डॉक्टर पर 10 हजार का जुर्माना भी लगाया.