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संकट में कमलनाथ सरकार ! कानून के जानकार से समझिए क्या हो सकता है आगे - सुप्रीम कोर्ट

मध्यप्रदेश में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच राजनीतिक तकरार बढ़ती जा रही है. दोनों ही तरफ से बयानबाजी जारी है. वहीं बीजेपी ने फ्लोर टेस्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, तो कांग्रेस भी इसमें पीछे नहीं रही और उसने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. ऐसे में प्रदेश की सियासी स्थिति क्या रह सकती है, जानिए कानून के जानकार से...

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मध्यप्रदेश में सियासी संकट
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Published : Mar 17, 2020, 11:23 PM IST

Updated : Mar 17, 2020, 11:29 PM IST

ग्वालियर। सूबे का सियासी समीकरण पल-पल बदल रहा है. सीएम कमलनाथ अपनी कुर्सी बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. वहीं विपक्ष, सत्ता में वापसी के लिए तमाम हथकंडे अपना रहा है. सत्ता पर काबिज होने की होड़ में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. वहीं राज्यपाल, मुख्यमंत्री और विधानसभा स्पीकर के बीच पत्राचार लगातार जारी है. राज्यपाल के निर्देश के बाद भी सदन में फ्लोर टेस्ट नहीं हो पाया. जवाब में कमलनाथ ने राज्यपाल को पत्र लिखते हुए बीजेपी पर कांग्रेस विधायकों को बंधक बनाने की बात कही थी. इसके अलावा सीएम कमलनाथ ने ऐसी स्थिति में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित अरुणाचल प्रदेश मामले का जिक्र भी किया.

मध्यप्रदेश में सियासी संकट

अरुणाचल प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामले में स्थित साफ कर दी है. जिसका आंकलन करने पर सामने आता है कि प्रदेश में राज्यपाल ने अरूणाचल प्रदेश जैसे विधानसभा सत्र के संबंध में कोई छेड़छाड़ नहीं की है. वहीं संविधान, राज्यपाल को विवेकाधिकार की शक्ति प्रदान करता है. जिसमें उसे लगता है कि संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री बहुमत खो चुका है, तो उसे वो बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं. लेकिन विधानसभा पटल पर बहुमत परीक्षण से संबंधित अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास हैं. हमने कानून के जानकार से बात की तो उन्होंने प्रदेश में चल रही राजनीतिक संकट पर कई अहम बिंदु पर रोशनी डाली. उन्होंने बताया कि अगर राज्यपाल के आदेश के बाद संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री सदन में बहुमत साबित करने से बच रहा हो तो वो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं.

क्या राष्ट्रपति शासन की तरफ बढ़ रहा प्रदेश ?

अब मध्यप्रदेश लगभग ऐसी स्थिति बन रही है, क्योंकि कांग्रेस के बागी विधायकों ने स्थिति साफ कर दी है कि वो कमलनाथ सरकार के साथ नहीं हैं. विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस देने के बाद भी वो सदन में उपस्थित नहीं हुए. ऐसे में अगर इन विधायकों को बर्खास्त भी कर दिया जाता है, तो कमलनाथ सरकार स्पष्ट तौर पर अल्पमत में आ जाएगी. राज्यपाल लालजी टंडन ने इन्हीं परिस्थियों को लेकर सीएम को फ्लोर टेस्ट के लिए निर्देशित किया था. लेकिन सीएम ने इसका पालन नहीं होने पर प्रदेश में एक संवैधानिक संकट की स्थिति बन गई है. ऐसे में राज्यपाल के पास अधिकार हैं कि वो राष्ट्रपति से राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं. हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है. जिसकी सुनाई बुधवार को होनी है. जिसके बाद ही मामला साफ हो पाएगा.

मध्यप्रदेश की राजनीति में अरुणाचल का जिक्र

फिलहाल मध्यप्रदेश की राजनीति में राज्यपाल की भूमिका और उनकी शक्तियों को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है. जो काफी हद तक 2016 में अरुणाचल प्रदेश की राजनीतिक स्थिति से मिलती-जुलती है.

अरुणाचल प्रदेश में 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनाई लेकिन एक साल के अंदर ही कांग्रेस के विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया और नाराज होकर दिल्ली चले गए. जिससे तत्कालीन सीएम नबाम तुकी की सरकार संकट में आ गई थी. इसी दौरान राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को बहुमत परीक्षण के निर्देश दिए. साथ ही प्रेसिडेंट से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.

स्पीकर नबम रेबिया ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जिसमें राज्यपाल के एक महीने पहले शीत कालीन सत्र बुलाने को सही ठहाराया गया था. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए राज्यपाल के निर्णय को गैर कानूनी घोषित कर दिया. लेकिन राष्ट्रपति शासन के बाद तत्कालीन कांग्रेस सीएम नबाम तुकी ने सुप्रीम कोर्ट से दोबारा सरकार बनाने की याचिका दायर की. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दिया और अंततः कांग्रेस की सरकार गिर गई. इसके बाद नाराज हुए कालिखो ने बागी विधायकों और बीजेपी विधायकों के साथ सरकार बना ली थी.

अब प्रदेश का राजनीतिक भविष्य क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन जिस तरह से समीकरण बदल रहे हैं ऐसे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.

ग्वालियर। सूबे का सियासी समीकरण पल-पल बदल रहा है. सीएम कमलनाथ अपनी कुर्सी बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं. वहीं विपक्ष, सत्ता में वापसी के लिए तमाम हथकंडे अपना रहा है. सत्ता पर काबिज होने की होड़ में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया. वहीं राज्यपाल, मुख्यमंत्री और विधानसभा स्पीकर के बीच पत्राचार लगातार जारी है. राज्यपाल के निर्देश के बाद भी सदन में फ्लोर टेस्ट नहीं हो पाया. जवाब में कमलनाथ ने राज्यपाल को पत्र लिखते हुए बीजेपी पर कांग्रेस विधायकों को बंधक बनाने की बात कही थी. इसके अलावा सीएम कमलनाथ ने ऐसी स्थिति में राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित अरुणाचल प्रदेश मामले का जिक्र भी किया.

मध्यप्रदेश में सियासी संकट

अरुणाचल प्रदेश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के मामले में स्थित साफ कर दी है. जिसका आंकलन करने पर सामने आता है कि प्रदेश में राज्यपाल ने अरूणाचल प्रदेश जैसे विधानसभा सत्र के संबंध में कोई छेड़छाड़ नहीं की है. वहीं संविधान, राज्यपाल को विवेकाधिकार की शक्ति प्रदान करता है. जिसमें उसे लगता है कि संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री बहुमत खो चुका है, तो उसे वो बहुमत साबित करने के लिए कह सकते हैं. लेकिन विधानसभा पटल पर बहुमत परीक्षण से संबंधित अधिकार विधानसभा अध्यक्ष के पास हैं. हमने कानून के जानकार से बात की तो उन्होंने प्रदेश में चल रही राजनीतिक संकट पर कई अहम बिंदु पर रोशनी डाली. उन्होंने बताया कि अगर राज्यपाल के आदेश के बाद संबंधित राज्य का मुख्यमंत्री सदन में बहुमत साबित करने से बच रहा हो तो वो प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर सकते हैं.

क्या राष्ट्रपति शासन की तरफ बढ़ रहा प्रदेश ?

अब मध्यप्रदेश लगभग ऐसी स्थिति बन रही है, क्योंकि कांग्रेस के बागी विधायकों ने स्थिति साफ कर दी है कि वो कमलनाथ सरकार के साथ नहीं हैं. विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस देने के बाद भी वो सदन में उपस्थित नहीं हुए. ऐसे में अगर इन विधायकों को बर्खास्त भी कर दिया जाता है, तो कमलनाथ सरकार स्पष्ट तौर पर अल्पमत में आ जाएगी. राज्यपाल लालजी टंडन ने इन्हीं परिस्थियों को लेकर सीएम को फ्लोर टेस्ट के लिए निर्देशित किया था. लेकिन सीएम ने इसका पालन नहीं होने पर प्रदेश में एक संवैधानिक संकट की स्थिति बन गई है. ऐसे में राज्यपाल के पास अधिकार हैं कि वो राष्ट्रपति से राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश कर सकते हैं. हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है. जिसकी सुनाई बुधवार को होनी है. जिसके बाद ही मामला साफ हो पाएगा.

मध्यप्रदेश की राजनीति में अरुणाचल का जिक्र

फिलहाल मध्यप्रदेश की राजनीति में राज्यपाल की भूमिका और उनकी शक्तियों को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है. जो काफी हद तक 2016 में अरुणाचल प्रदेश की राजनीतिक स्थिति से मिलती-जुलती है.

अरुणाचल प्रदेश में 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सरकार बनाई लेकिन एक साल के अंदर ही कांग्रेस के विधायकों ने उनका साथ छोड़ दिया और नाराज होकर दिल्ली चले गए. जिससे तत्कालीन सीएम नबाम तुकी की सरकार संकट में आ गई थी. इसी दौरान राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को बहुमत परीक्षण के निर्देश दिए. साथ ही प्रेसिडेंट से प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर दी. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.

स्पीकर नबम रेबिया ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जिसमें राज्यपाल के एक महीने पहले शीत कालीन सत्र बुलाने को सही ठहाराया गया था. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए राज्यपाल के निर्णय को गैर कानूनी घोषित कर दिया. लेकिन राष्ट्रपति शासन के बाद तत्कालीन कांग्रेस सीएम नबाम तुकी ने सुप्रीम कोर्ट से दोबारा सरकार बनाने की याचिका दायर की. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने नामंजूर कर दिया और अंततः कांग्रेस की सरकार गिर गई. इसके बाद नाराज हुए कालिखो ने बागी विधायकों और बीजेपी विधायकों के साथ सरकार बना ली थी.

अब प्रदेश का राजनीतिक भविष्य क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन जिस तरह से समीकरण बदल रहे हैं ऐसे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा.

Last Updated : Mar 17, 2020, 11:29 PM IST
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