ग्वालियर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया के सम्मान में 100 रुपए का स्मृति सिक्का जारी किया है. स्वर्गीय विजया राजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता के रूप में जाना जाता है. यह सिक्का विजयाराजे सिंधिया के जन्म शताब्दी समारोह के उपलक्ष्य में जारी किया गया. आइए जानते हैं राजमाता विजयाराजे सिंधिया की शख्सियत के बारे में-
ग्वालियर राजघराने की बहू से राजमाता तक का सफर
राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म मध्य प्रदेश के सागर में 12 अक्टूबर 1919 को राणा परिवार में हुआ था. पिता महेंद्र सिंह ठाकुर उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर थे और उनकी मां का नाम विंदेश्वरी देवी था. विंदेश्वरी देवी और पिता महेंद्र सिंह ठाकुर बचपन से ही उन्हें दिव्येश्वरी के नाम से पुकारते थे. विजयाराजे की शादी 21 फरवरी 1941 को ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया से हुई और वो ग्वालियर आ गई. राजपरिवार में आने के बाद भी उनका राष्ट्रवाद और लोकपथ से गहरा लगाव किसी से छिपा नहीं रहा.
इस शाही जोड़े के पांच बच्चे हुए. बेटी वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी, यशोधरा राजे मध्य प्रदेश में मंत्री बनीं. बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस सरकार में रेल मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री रहे. खुद राजमाता पति के निधन के बाद राजनीति में सक्रिय हुई और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर, गुना से सांसद रहीं. उनका देहावसान 25 जनवरी 2001 में हुआ.
पंडित जवाहरलाल नेहरू की थीं करीबी
राजमाता विजयाराजे देश के प्रथम प्रधानमंत्री एवं राहुल गांधी के परनाना पंडित जवाहरलाल नेहरू की कभी बहुत करीबी मानी जाती थीं. विजयाराजे ने अपना राजनीतक जीवन वर्ष 1957 में कांग्रेस से शुरू किया था और 10 साल कांग्रेस में रहने के बाद वर्ष 1967 में इस पार्टी को अलविदा कह दिया था.
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बेटे से रहा विवाद
अपने जीवनकाल में राजमाता विजयाराजे सिंधिया का अपने इकलौते पुत्र कांग्रेस नेता रहे माधवराव सिंधिया से विवाद किसी से छिपा नहीं था. उन्होंने अपने इकलौते बेटे के लिए अपनी वसीयत में लिखा था कि वो उनका अंतिम संस्कार नहीं करेंगे. सार्वजनिक जीवन विजयाराजे का जितना आकर्षक था, पारिवारिक जीवन उतना ही मुश्किलों भरा. राजमाता पहले कांग्रेस में थीं. बाद में इंदिरा गांधी की नीतियों के विरोध में उनकी ठन गई और उन्होंने बाद में पूरी जिंदगी जनसंघ और बीजेपी में रहकर गुजारी. बेटे माधवराव सिंधिया के कांग्रेस का दामन थामने से दोनों के बीच विवाद हुआ. विजयाराजे ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें अपमानित किया था. दोनों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता रही. इसी के चलते विजयाराजे ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए लिए अपने ही बेटे माधवराव से किराया भी मांगा. हालांकि यह एक रुपए प्रति माह का प्रतिकात्मक ही था.
2001 में हुआ देहवासन
2001 में राजमाता का निधन हुआ और उन्होंने अपने राजनीतिक सलाहकार संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष बना दिया था. हालांकि विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आने का मामला भी कोर्ट में चल रहा है और यह वसीयत 1985 और 1999 में आई थी.