ग्वालियर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया और पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी जनसंघ के समय से साथ रहे. राजमाता विजयाराजे सिंधिया की आज 100वीं जयंती है. राजमाता ने नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेयी के साथ अपने जीवनकाल में बीजेपी को पुष्पित-पल्लवित किया. अटल जी बीजेपी के सर्वोच्च नेताओं में शुमार थे और उसी बीजेपी में विजयाराजे अटल जी को अपना धर्मपुत्र मानती थीं. आज ग्वालिर में जश्न का माहौल है और राजमाता के सम्मान में केंद्र सरकार ने उनके नाम पर 100 रुपए का सिक्का जारी किया है. आप भी जानिए क्यों राजमाता मानती थी अटल बिहारी को धर्मपुत्र.
अटलजी का ग्वालियर से गहरा नाता था. वो अक्सर दिल्ली से ग्वालियर बिना किसी को कुछ बताए आते थे. वहां की सड़कों पर घूमते थे. राजमाता विजयाराजे सिंधिया जब कांग्रेस को छोड़कर जनसंघ में शामिल हुईं थीं तभी अटलजी ग्वालियर आए. अटल बिहारी वाजपेयी छाता लगाकर ग्वालियर के पाटनकर बाजार में घूमने निकले और कुछ जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने अटलजी को देखा.
अटल जी के ग्वालियर में होने की बात राजमहल पहुंची. विजयाराजे सिंधिया को पता चला कि वो पैदल पाटनकर बाजार में घूम रहे हैं तो उन्होंने नाराजगी जाहिर की और पार्टी के नेताओं को फोन पर पूछा कि ये कैसी पार्टी है आपकी, पार्टी के सबसे बड़े नेता सड़क पर पैदल घूम रहे हैं, क्या उनके लिए गाड़ी का इंतजाम नहीं हो सकता?
उन्होंने वाजपेयी के लिए गाड़ी भेजी जिसे वाजपेयी जी ने लौटा दी. अटल पैदल ही राजमाता से मिलने जयविलास पैलेस पहुंचे. राजमाता ने अटल से कहा, 'आप देश के इतने बड़े नेता हैं और सड़कों पर पैदल घूम रहे हैं'. अटल जी ने कहा- 'भला घर के भीतर भी कोई गाड़ी से चलता है क्या. ग्वालियर को अटल जी घर मानते थे. इसके बाद राजमाता हंसी और यही वो पल है जब दोनों के बीच की जुगलबंदी धर्मपुत्र में तब्दील हुई.
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1984 का वाकया कोई नहीं भूल सकता. बीजेपी से अटल बिहारी वाजपेयी राजमाता के पुत्र माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव में थे और ग्वालियर लोकसभा सीट पर मुकाबला कांटे का था. तब राजमाता ने वाजपेयी को धर्मपुत्र मानकर उनका प्रचार किया था.
तब अपनी हार पर हंसे थे वाजपेयी
1984 लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा था. अटल बिहारी वाजपेयी को चुनाव माधव राव सिंधिया ने हराया था. लेकिन अपनी हार पर अटल बिहारी वाजपेयी जमकर हंसे और खुश हुए थे. उन्होंने कहा था कि मेरी हार का मुझे गम नहीं, लेकिन मां बेटे की बगावत को मैंने सड़क पर आने से रोक दिया. उन्होंने कहा था कि अगर मैं ग्वालियर से चुनाव नहीं लड़ता तो राजमाता, माधवराव सिंधिया के खिलाफ चुनाव लड़तीं, जो मैं नहीं चाहता था. 1984 के लोकसभा चुनाव में अपनी हार के बाद जब अटलजी 2005 में ग्वालियर आए तो उन्होंने साहित्य सभा में कहा था कि ग्वालियर में मेरी एक हार पर इतिहास छिपा हुआ है. जो मेरे साथ ही चला जाएगा.
पीएम मोदी ने किया 100 रुपए का सिक्का लॉन्च, राजमाता को याद
पीएम मोदी ने राजमाता विजयाराजे सिंधिया की 100वीं जन्म शताब्दी पर उन मुद्दों को उठाया जिसे लेकर कभी राजमाता काफी मुखर थी. विजयाराजे सिंधिया की स्मृति में पीएम नरेंद्र मोदी ने 100 रुपए का सिक्का जारी करते हुए कहा कि उन्होंने उनके सपनों को अपने कार्यकाल में साकार किया है.
संबोधन के दौरान पीएम ने कही ये बातें
- 100 रुपए के सिक्के को जारी करते हुए राजमाता को याद कर पीएम मोदी ने कहा कि कोरोना वायरस की वजह से एक वर्चुअल समारोह के जरिए इस सिक्के को देश को समर्पित किया, नहीं तो एक भव्य आयोजन किया जाता.
- नारी शक्ति के बारे में वो विशेष तौर पर कहती थीं कि जो हाथ पालने को झुला सकते हैं, तो वो विश्व पर राज भी कर सकते हैं. आज भारत की नारी शक्ति हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहीं हैं, देश को आगे बढ़ा रही हैं.
- तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर, देश ने राजमाता सिंधिया के महिला सशक्तिकरण के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाया है.
- ये भी कितना अद्भुत संयोग है कि रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण के लिए उन्होंने जो संघर्ष किया था, उनकी जन्मशताब्दी के साल में ही उनका ये सपना भी पूरा हुआ है.
- राजमाता के आशीर्वाद से देश आज विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है. गांव, गरीब, दलित-पीड़ित-शोषित-वंचित, महिलाएं आज देश की पहली प्राथमिकता में हैं.
- राष्ट्र के भविष्य के लिए राजमाता ने अपना वर्तमान समर्पित कर दिया था. देश की भावी पीढ़ी के लिए उन्होंने अपना हर सुख त्याग दिया था. राजमाता ने पद और प्रतिष्ठा के लिए न जीवन जीया, न राजनीति की.
राजमाता का सियासी कद
- विजया राजे सिंधिया का जन्म 12 अक्टूबर 1919 को मध्य प्रदेश के सागर में हुआ.
- उनका वास्तविक नाम लेखा देवीश्वरी देवी था.
- ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया से विवाह के बाद उनका नाम विजया राजे रखा गया.
- आजादी के बाद भी सिंधिया राजघराने का वर्चस्व जनता के बीच था और सिंधिया राजघराने का सॉफ्ट कार्नर हिन्दू महासभा के लिए था.
- इसी को भांपते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ग्वालियर के महाराज को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की पेशकश की.
- उनके मना करने पर राजमाता सिंधिया को चुनाव लड़ने के लिए मनाया गया और पहली बार 1957 में न सिर्फ राजमाता सांसद बनीं बल्कि पूरे मध्य भारत में कांग्रेस को जबरदस्त जीत मिली.
राजमाता का सियासी सफर
- ग्वालियर साम्राज्य पर राज करने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की. वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं.
- सिर्फ 10 साल में ही उनका मोहभंग हो गया और 1967 में वह जनसंघ में चली गईं.
- विजयाराजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ यहां की तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा.
- खुद विजयाराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने.
सिद्धांतों के प्रति आजीवन अडिग रहीं राजमाता
- राजमाता विजयाराजे सिंधिया सरलता, सहजता और संवेदनशीलता की त्रिवेणी थीं.
- वे सशक्त महिला नेत्री थीं.
- अपने विचारों के प्रति प्रतिबद्ध थीं.