ग्वालियर। प्रदेश में चुनावी सीजन चल रहा है. राज्य की 28 सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. जैसे ही चुनावी सरगरमी शुरू होती है, राजनीतिक दलों के वादे और दावे शुरू हो जाते हैं. लेकिन इन दावों और वादों के बीच महिलाओं के मुद्दे गायब नजर आते हैं. यही हाल इस उपचुनाव का है. उपचुनाव में बिकाऊ-टिकाऊ और व्यक्तिगत हमले मुद्दे बने हुए हैं. कोई भी महिलाओं के हक की बात नहीं कर रहा है. महिला सुरक्षा, उनके साथ होने वाले अपराध और चुनावी भागीदारी पर दूर-दूर चर्चाएं नहीं हो रही हैं.
महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दा गायब
एनसीआरबी के 2017 के आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में 6 से 18 साल के उम्र की लड़किया और महिलाएं दुष्कर्म को लेकर सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मामलों में राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश की हिस्सेदारी 30 फीसदी रही है.
शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ी महिलाएं
शिक्षा के क्षेत्र में भी महिलाओं के हालत खराब है. प्रदेश की 40 फीसदी से ज्यादा महिलाएं अशिक्षित हैं. जबकि पुरुषों की साक्षरता दर करीब 78 फीसदी है. दोनों की तुलना करने पर पता चलता है कि अभी भी पुरूषों की तुलना में महिलाओं की शैक्षिक स्थिति ठीक नहीं है.
राजनीतिक हिस्सेदारी भी नाम मात्र की
अब बात करते हैं राजनीतिक हिस्सेदारी की. 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की सभी 230 विधानसभा सीटों पर कुल 2899 प्रत्याशी मैदान में थे. जिनमें से 250 महिला उम्मीदवार थीं. इनमें से महज 21 महिलाएं ही विधानसभा तक पहुंची थीं. इनमें केवल 10 महिला उम्मीदवार ऐेसी थीं, जो पहली दफा विधायक बनीं. हालांकि प्रदेश के दोनों मुख्य राजनीतिक दल यानी कांग्रेस और बीजेपी का दावा है कि उनकी पार्टी महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ती रही है.
उपचुनाव में महिला प्रत्याशियों संख्या कम
वर्तमान उपचुनाव में 28 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से तीन-तीन महिला प्रत्याशियों को उतारा है. इसका मतलब उपचुनाव में महिलाओं की हिस्सेदारी महज 10 फीसदी के आस-पास ही है. लिहाजा ये आंकड़े राजनीतिक दलों के वादे और दावों को कमजोर कर देते हैं.