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अनाथ बच्चों को बनाया जा रहा आत्मनिर्भर, भविष्य की राह दिखा रहा शिक्षा केंद्र - Initiative to bring orphans into the mainstream

ग्वालियर जिला शिक्षा केंद्र ने एक हॉस्टल खोला है, जहां अनाथ बच्चों की परवरिश की जा रही है. उन्हें शिक्षा देने के अलावा आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है. देखिए खास रिपोर्ट

Initiative OF Gwalior District Education
अनाथों को मेनस्ट्रीम में लाने की पहल
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Published : Dec 9, 2019, 10:34 PM IST

ग्वालियर। जिला शिक्षा केंद्र की पहल से अनाथ बच्चों को एक तरह नई जिंदगी मिल रही है. जिला शिक्षा केंद्र ने एक हॉस्टल खोला है, जहां अनाथ बच्चों को न सिर्फ शिक्षा दी जा रही है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है. बच्चों को छात्रावास के अंदर खेल-कूद और मनोरंज के कई साधन उपलब्ध कराए गए हैं. इसके अलावा छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कपड़ा बनाने की मशीन भी लगाई गई है.

अनाथों को मेनस्ट्रीम में लाने की पहल

बेसहारा बच्चों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए इन बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ स्वावलंबी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. ये बच्चे अगर पढ़ाई करने के बाद चादर बनाते हैं तो उसे सरकारी विभागों में सप्लाई करने की योजना भी बनाई जा रही है. इस काम को छात्र खुशी-खुशी कर रहे हैं.

इस छात्रावास में भीख मांगने, कचरा बीनने वाले छात्रों को लाया जाता है और उनके खाने पीने की व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा जाता है. यही वजह है कि ये हॉस्टल अब 100 से ज्यादा छात्रों का आशियाना बन गया है. इन अनाथ बच्चों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए कपड़े बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है.

किन्हीं कारणों से अपने परिवार से बिछड़ने के बाद इन छात्रों का जीवन एक तरह से गलत दिशा में जा रहा था. इनके भविष्य को संवारने की पहल जिला शिक्षा केंद्र द्वारा की जा रही है. यहां न सिर्फ बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल भी बनाया जा रहा है.

ग्वालियर। जिला शिक्षा केंद्र की पहल से अनाथ बच्चों को एक तरह नई जिंदगी मिल रही है. जिला शिक्षा केंद्र ने एक हॉस्टल खोला है, जहां अनाथ बच्चों को न सिर्फ शिक्षा दी जा रही है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है. बच्चों को छात्रावास के अंदर खेल-कूद और मनोरंज के कई साधन उपलब्ध कराए गए हैं. इसके अलावा छात्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कपड़ा बनाने की मशीन भी लगाई गई है.

अनाथों को मेनस्ट्रीम में लाने की पहल

बेसहारा बच्चों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए इन बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ स्वावलंबी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं. ये बच्चे अगर पढ़ाई करने के बाद चादर बनाते हैं तो उसे सरकारी विभागों में सप्लाई करने की योजना भी बनाई जा रही है. इस काम को छात्र खुशी-खुशी कर रहे हैं.

इस छात्रावास में भीख मांगने, कचरा बीनने वाले छात्रों को लाया जाता है और उनके खाने पीने की व्यवस्था का पूरा ध्यान रखा जाता है. यही वजह है कि ये हॉस्टल अब 100 से ज्यादा छात्रों का आशियाना बन गया है. इन अनाथ बच्चों को मेनस्ट्रीम में लाने के लिए कपड़े बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है.

किन्हीं कारणों से अपने परिवार से बिछड़ने के बाद इन छात्रों का जीवन एक तरह से गलत दिशा में जा रहा था. इनके भविष्य को संवारने की पहल जिला शिक्षा केंद्र द्वारा की जा रही है. यहां न सिर्फ बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल भी बनाया जा रहा है.

Intro:ग्वालियर- पढ़ाई छोड़ कर शहर की सड़कों पर नशे में घूमते मिले बच्चों की जिंदगी अब जिला शिक्षा केंद्र का एक आवासीय छात्रावास बदल रहा है। ग्वालियर के पागनबीसी छात्रावास में स्कूल छोड़ने वाली स्कूल ना जाने वाले और अनाथ बच्चे जिसकी संख्या करीब 100 के लगभग है। वहां रहकर उनकी तालीम सीख रहे हैं। 4 साल पहले शुरू हुए इस छात्रावास में रहने वालों छात्रों को पढ़ाई के साथ-साथ एक और कदम आगे बढ़ाया जा रहा है यहां के छात्रों को स्वावलंबी बनाने के लिए एक प्रयास शुरू किया गया है जहां बच्चों को छात्रावास के अंदर ही हथकरघा पर कपड़ा बनाया जा रहा है यह बच्चे कपड़ा बना रहे है। यह बच्चे अगर पढ़ाई के साथ चादर और ज्यादा संख्या में बनाते हैं और अब उन्हें सरकारी विभागों में सप्लाई करने की योजना बनाई जा रही है


Body:गौरतलब है कि शहर में ऐसी अनाथ बच्चे जो नशे की लत में फंस जाते हैं या ऐसे बच्चे जिनके मां बाप काम पर चले जाते हैं और बच्चे सड़कों पर घूमते रहते हैं इसके अलावा ऐसे बच्चे जिन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया था। इतना ही नहीं शहर में मंदिरों के बाहर भीख मांगना और कबाड़ा पॉलिथीन बिना जैसे काम करने वाले बच्चों को शहर भर में तलाश करके इस छात्रावास में लाया जाता है। बीमार बच्चों का इलाज कराया जाता है जो बच्चे नशा करते हैं उन्हें नशा छोड़ने की काउंसिलिंग कराई जाती है। जो समय मिलता है अब उन्हें का उपयोग कपड़े बनाने की ट्रेनिंग दी जाती है ज्यादातर बच्चे कपड़े बनाना सीख गए हैं।

बाइट - संजीव शर्मा , डीपीसी ग्वालियर


Conclusion:छात्रावास में जाकर शिक्षा के साथ ओनर को सीख रहे छात्रों का कहना है कि उन्हें यहां अब बहुत अच्छा लगता है उन्हें उम्मीद है कि जिस तरह से अभी वह शिक्षा ग्रहण कर रही है यदि भविष्य में उनकी आगे की शिक्षा किन कारण से छूट जाती है जो अपने इस हुनर के माध्यम से अपना जीवन यापन कर सकेंगे।

बाईट - छात्र

बच्चों को पुनर्वास बनाने की इस पहल से बच्चों को ध्यान गलत कामों की ओर नहीं जायेगा। इतना ही नहीं वह पढ़ाई और खेल के साथ कुछ सीखने से व जीवन में कभी भी बेरोजगार नहीं रह सकेंगे। इससे यह माना जा सकता है इस प्रयास ने शहर के उन बच्चों को आश्रय देने के साथ ही शिक्षित और खुद के पैरों पर खड़े होकर का बिल बनाने का जो काम किया है वह बेहद सराहनीय है।

नोट इस स्टोरी की विजुअल इसी slug के नाम से Wrap पर भेज दिए हैं।
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