इंदौर। ग्वालियर के पास चमोली में गिरे गोले किसी उपग्रह या राकेट के गोले नहीं बल्कि आसमान में बादल फटने के लिए तैयार किए जाने वाले क्रायोजेनिक कंप्रेसर आर्टिफिशियल रेन हार्वेस्टिंग केमिकल से भरे गोले हैं. जिन्हें पड़ोसी देशों द्वारा भारत में गिराए जाने की आशंका है. इंदौर के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री डॉ. राम श्रीवास्तव ने इन गोलों के जरिए ही उत्तराखंड और हिमाचल में बादल फटने की घटनाओं की आशंका जताई है.
बादल फाड़ने में गोलों का प्रयोग: खगोल शास्त्री डॉ. राम श्रीवास्तव ने ग्वालियर में गिरे चारों गोलों के पास जाने और उन्हें छूने की स्थिति में घातक रेडियोएक्टिव रसायनों के कारण स्थानीय लोगों को कैंसर होने की आशंका भी जताई है. ईटीवी भारत से चर्चा में डॉक्टर श्रीवास्तव ने दावा किया कि ''ग्वालियर के पास जो चार गोले गिरे हैं, वह किसी रॉकेट या उपग्रह के गोले नहीं हैं. यह ''CRYOGENIC COMPRESSED ARTIFICIAL RAIN HARVESTING CHEMICAL'' के गोले हैं जिनका उपयोग बादल फाड़ने के लिए किया जाता है. इन्हें हाई एल्टीट्यूड बैलून से छोड़ा जाता है.''
गुजरात में आई थी प्राकृतिक आपदा: खगोल शास्त्री डॉ. राम श्रीवास्तव ने कहा ''2017 में इसी तरह के गोले गुजरात में भी गिराए गए थे, इसके बाद वहां प्राकृतिक आपदा हुई थी. उन्होंने आशंका जताई कि इन गोलों का संबंध (चीन की) हिमाचल और उत्तराखण्ड के बादल फटने की वारदातों से हो सकता है. क्योंकि हमारे देश में बादल बीते 200 सालों के इतिहास में तीन से चार बार ही फटे हैं. लेकिन जिस तरह से हिमाचल और उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं हुई है यह क्लाउडबर्स्ट या क्लाउड बम का परिणाम हो सकता है.''
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सघन जांच करे भारतीय इंटेलिजेंस: उन्होंने कहा ''इस तरह के गोले हाई एल्टीट्यूड बैलून से धरती से कई किलोमीटर ऊपर छोड़े जाते हैं, जिनकी गैस रिसाव करने के लिए पिन को बम की तरह खोलकर धरती की ओर छोड़ दिया जाता है. इन गोल में भरी गैस बादलों को ठंडा कर देती है जिसके कारण बादल उसे स्थान पर एकत्र होकर बरस जाते हैं.'' उन्होंने कहा ''भारतीय इंटेलिजेंस को इस बारे में सघन जांच करना चाहिए, क्योंकि कहीं न कहीं ग्वालियर भी विदेशी हमले का केंद्र हो सकता है, जहां संवेदनशील रक्षा केंद्र हैं.'' उन्होंने कहा कि ''आसमान से छोड़े गए यह गोले ग्वालियर के स्थान पर चमोली में गिरे हैं. यह भी संयोग बात है जिसे भारत सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए.''