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Holi 2023 ऐसा हर्बल गुलाल जिसे लगाने के साथ स्वाद भी चख सकेंगे, नहीं होगा साइड इफेक्ट

ग्वालियर में जीवाजी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग ने ईको फ्रेंडली गुलाल बनाया है. जिसे लगाने से न कोई साइट इफेक्ट होगा. खास बात यह है कि इस गुलाल को लगाने के साथ इसका स्वाद भी चख सकते हैं.

Holi 2023
गुलाल का स्वाद
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Published : Mar 7, 2023, 4:23 PM IST

Updated : Mar 7, 2023, 6:07 PM IST

चख सकेंगे गुलाल

ग्वालियर। एक दिन बाद होली का त्योहार है. ऐसे में शहर में रंग-बिरंगे गुलालों से दुकानें सज चुकी है. यह रंग-बिरंगे गुलाल हमारे शरीर पर कई प्रकार के साइड इफेक्ट डालते हैं, लेकिन ग्वालियर की जीवाजी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के छात्रों ने मंदिरों में चढ़ाये गये फूलों से ऐसे इको फ्रेंडली अलग-अलग प्रकार के गुलाल तैयार किए हैं, जो पूरी तरह से हर्बल है. जिसे लगाने से कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा. खास बात यह है कि अगर लगाते वक्त यह गुलाल मुंह में भी चला जाता है, तो इसका आप स्वाद भी चख सकते हैं. लिहाजा इससे कोई नुकसान नहीं होगा.

मंदिर पर चढ़े फूलों का सदुपयोग: अक्सर हम देखते हैं कि मंदिरों पर चढ़ने वाले फूल फेंक दिए जाते हैं, लेकिन जीवाजी विश्वविद्यालय का पर्यावरण विभाग इन फूलों का सदुपयोग करने में लगा हुआ है. यही कारण है कि होली के त्यौहार पर उन्होंने मंदिर पर छाए अलग-अलग प्रकार के फूलों से इको फ्रेंडली गुलाल तैयार किया है. पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरेंद्र शर्मा के नेतृत्व में छात्रों की टीम ने इस इको फ्रेंडली गुलाल को तैयार किया है. यह गुलाल मंदिरों पर चढ़ने वाले अलग-अलग फूलों से तैयार किया है. खास बात यह है कि पूरी तरह इको फ्रेंडली है. इस गुलाल के लगाने से किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं.

सात दिन में तैयार हुआ हर्बल गुलाल: पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरेंद्र शर्मा ने बताया है कि भगवान पर चढ़े फूलों को एकत्रित करके अलग-अलग सात प्रकार के इको फ्रेंडली गुलाल तैयार किए हैं. सबसे पहले चढ़े हुए फूलों को पानी से साफ किया. उसके बाद 24 घंटे तक पानी में रखा. बाद में उन्हें धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है. जब यह पूरी तरह से सूख जाते हैं तो उनको बारीक पीसकर उन्हें छान लेते हैं. उसके बाद सुगंधित इत्र मिलाकर गुलाल तैयार हो जाता है. गुलाल तैयार करने में लगभग सात दिन की प्रक्रिया है और उसके बाद यह गुलाल तैयार होता है.

होली से जुड़ी कुछ और खबरें यहां पढ़ें

जीवाजी विश्वविद्यालय ने बनाया ईको फ्रेंडली गुलाल: डॉ. हरेंद्र शर्मा ने बताया कि कुल 7 तरह का गुलाल जीवाजी विश्वविद्यालय के छात्रों ने तैयार किया है. जिसमें अलग-अलग प्रकार के फूलों से यह गुलाल तैयार किए गए हैं. वहीं नीम की पत्ती से भी इको फ्रेंडली गुलाल तैयार किया है. अगर यह गुलाल लगाते वक्त किसी के मुंह में भी चला जाता है, तो चिंता करने की कोई बात नहीं है, क्योंकि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और ना ही यह नुकसान पहुंचाएगा. पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरविंद शर्मा ने बताया कि यह गुलाल पूरी तरह हर्बल और औषधि युक्त है. इस इको फ्रेंडली गुलाल को स्वाति प्रजापति, दिवाकर तिवारी, बिलाल अहमद भट्ट सहित अन्य छात्रों ने तैयार किया है. उनका कहना है कि अगले साल से इस गुलाल को इको फ्रेंडली गुलाल को बनाने के लिए लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. ताकि होली के त्यौहार पर वह आसानी से अपने घर पर गुलाल उपलब्ध कर सके और इसे बना सके.

चख सकेंगे गुलाल

ग्वालियर। एक दिन बाद होली का त्योहार है. ऐसे में शहर में रंग-बिरंगे गुलालों से दुकानें सज चुकी है. यह रंग-बिरंगे गुलाल हमारे शरीर पर कई प्रकार के साइड इफेक्ट डालते हैं, लेकिन ग्वालियर की जीवाजी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के छात्रों ने मंदिरों में चढ़ाये गये फूलों से ऐसे इको फ्रेंडली अलग-अलग प्रकार के गुलाल तैयार किए हैं, जो पूरी तरह से हर्बल है. जिसे लगाने से कोई साइड इफेक्ट नहीं होगा. खास बात यह है कि अगर लगाते वक्त यह गुलाल मुंह में भी चला जाता है, तो इसका आप स्वाद भी चख सकते हैं. लिहाजा इससे कोई नुकसान नहीं होगा.

मंदिर पर चढ़े फूलों का सदुपयोग: अक्सर हम देखते हैं कि मंदिरों पर चढ़ने वाले फूल फेंक दिए जाते हैं, लेकिन जीवाजी विश्वविद्यालय का पर्यावरण विभाग इन फूलों का सदुपयोग करने में लगा हुआ है. यही कारण है कि होली के त्यौहार पर उन्होंने मंदिर पर छाए अलग-अलग प्रकार के फूलों से इको फ्रेंडली गुलाल तैयार किया है. पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरेंद्र शर्मा के नेतृत्व में छात्रों की टीम ने इस इको फ्रेंडली गुलाल को तैयार किया है. यह गुलाल मंदिरों पर चढ़ने वाले अलग-अलग फूलों से तैयार किया है. खास बात यह है कि पूरी तरह इको फ्रेंडली है. इस गुलाल के लगाने से किसी भी तरह का कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं.

सात दिन में तैयार हुआ हर्बल गुलाल: पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ हरेंद्र शर्मा ने बताया है कि भगवान पर चढ़े फूलों को एकत्रित करके अलग-अलग सात प्रकार के इको फ्रेंडली गुलाल तैयार किए हैं. सबसे पहले चढ़े हुए फूलों को पानी से साफ किया. उसके बाद 24 घंटे तक पानी में रखा. बाद में उन्हें धूप में सुखाने के लिए रख दिया जाता है. जब यह पूरी तरह से सूख जाते हैं तो उनको बारीक पीसकर उन्हें छान लेते हैं. उसके बाद सुगंधित इत्र मिलाकर गुलाल तैयार हो जाता है. गुलाल तैयार करने में लगभग सात दिन की प्रक्रिया है और उसके बाद यह गुलाल तैयार होता है.

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जीवाजी विश्वविद्यालय ने बनाया ईको फ्रेंडली गुलाल: डॉ. हरेंद्र शर्मा ने बताया कि कुल 7 तरह का गुलाल जीवाजी विश्वविद्यालय के छात्रों ने तैयार किया है. जिसमें अलग-अलग प्रकार के फूलों से यह गुलाल तैयार किए गए हैं. वहीं नीम की पत्ती से भी इको फ्रेंडली गुलाल तैयार किया है. अगर यह गुलाल लगाते वक्त किसी के मुंह में भी चला जाता है, तो चिंता करने की कोई बात नहीं है, क्योंकि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है और ना ही यह नुकसान पहुंचाएगा. पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरविंद शर्मा ने बताया कि यह गुलाल पूरी तरह हर्बल और औषधि युक्त है. इस इको फ्रेंडली गुलाल को स्वाति प्रजापति, दिवाकर तिवारी, बिलाल अहमद भट्ट सहित अन्य छात्रों ने तैयार किया है. उनका कहना है कि अगले साल से इस गुलाल को इको फ्रेंडली गुलाल को बनाने के लिए लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. ताकि होली के त्यौहार पर वह आसानी से अपने घर पर गुलाल उपलब्ध कर सके और इसे बना सके.

Last Updated : Mar 7, 2023, 6:07 PM IST
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