ETV Bharat / state

कई युद्धों का साक्षी है ग्वालियर का किला, जानें इससे जुड़ी ऐतिहासिक कहानियां - राजाओं के शौर्य

ग्वालियर के किले का ऐतिहासिक महत्व विश्व विख्यात है. आज हम आपको इससे जुड़ी कहानियों के बारे में बताएंगे.

ग्वालियर के किले कि ऐतिहासिक कहानी
author img

By

Published : Sep 26, 2019, 9:34 AM IST

Updated : Sep 26, 2019, 1:03 PM IST

ग्वालियर। यहां का किला देश में ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में इतना मशहूर है कि लोग इसे सात समंदर पार से भी देखने के लिए आते हैं. इस किले में कई राजाओं के शौर्य की कहानियां दर्ज हैं, तो ये किला बर्बरता की कहानी भी कहता है. इतिहास गवाह है कि औरंगजेब एक आक्रामक राजा था. उसने देश की कई बड़ी मूर्तियों को खंडित किया था. इसी में से एक है ग्वालियर के किले पर मौजूद जैन धर्म की मूर्तियां, जिसे उसने अपने शासन के दौरान खंडित किया था.

इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था. 3 किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की उंचाई 35 फीट है. यह किला मध्यकालीन भारत के अद्भुत नमूने में से एक है, जो शहर के बीचोंबीच मौजूद है. यह देश के सबसे बड़े किलों में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है. इतिहासकारों के मुताबिक इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूरजसेन ने किया. इस पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया था. किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया. 1030 में मोहम्मद गजनी ने इसके लिए पर आक्रमण किया, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था.

कई युद्धों का साक्षी है ग्वालियर का किला

तोमर राज्य की स्थापना

यह सिलसिला यहीं नहीं थमा. 1196 ईस्वी में लंबी घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ने इस किले को अपने अधीन किया, लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया. इसके बाद महाराजा देव परम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की. इतिहासकार बताते हैं के 1540 से 1544 में आराम शाह ने देश के ऊपर ग्वालियर में रहकर राज किया था. इस दौरान देश का खजाना भी ग्वालियर के किले में मौजूद था, इसलिए ग्वालियर उस समय देश की राजधानी हुआ करता था. दरअसल आराम शाह के पिता शेरशाह सूरी ने अकबर के पिता हुमायूं को हराकर ग्वालियर किले पर कब्जा किया था. इसके बाद शेरशाह सूरी बांदा का किला फतह करने के दौरान किले में आग लग गई थी, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके बाद गद्दी आराम शाह के पास आ गई, लेकिन ज्यादा दिनों तक ग्वालियर किले पर राज नहीं कर पाया.

सिंधिया कुल ने जीता किला

ग्वालियर के किले पर मुगल वंश के बाद इस पर राणा और जाटों का राज था. इस पर मराठाओं ने अपनी पताका लहराई. 1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा. 1789 में सिंधिया कुल के मराठा क्षत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी, लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया. 1780 में इसका नियंत्रण गौड़ राणा छतर सिंह के पास गया, जिन्होंने मराठाओं से इसे छीना. इसके बाद 1784 में सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया. 1804 और 1844 के बीच इस पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा, हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया.

ग्वालियर। यहां का किला देश में ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में इतना मशहूर है कि लोग इसे सात समंदर पार से भी देखने के लिए आते हैं. इस किले में कई राजाओं के शौर्य की कहानियां दर्ज हैं, तो ये किला बर्बरता की कहानी भी कहता है. इतिहास गवाह है कि औरंगजेब एक आक्रामक राजा था. उसने देश की कई बड़ी मूर्तियों को खंडित किया था. इसी में से एक है ग्वालियर के किले पर मौजूद जैन धर्म की मूर्तियां, जिसे उसने अपने शासन के दौरान खंडित किया था.

इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था. 3 किलोमीटर के दायरे में फैले इस किले की उंचाई 35 फीट है. यह किला मध्यकालीन भारत के अद्भुत नमूने में से एक है, जो शहर के बीचोंबीच मौजूद है. यह देश के सबसे बड़े किलों में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है. इतिहासकारों के मुताबिक इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूरजसेन ने किया. इस पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया था. किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया. 1030 में मोहम्मद गजनी ने इसके लिए पर आक्रमण किया, लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा था.

कई युद्धों का साक्षी है ग्वालियर का किला

तोमर राज्य की स्थापना

यह सिलसिला यहीं नहीं थमा. 1196 ईस्वी में लंबी घेराबंदी के बाद कुतुबुद्दीन ने इस किले को अपने अधीन किया, लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा. फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपने अधीन किया. इसके बाद महाराजा देव परम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की. इतिहासकार बताते हैं के 1540 से 1544 में आराम शाह ने देश के ऊपर ग्वालियर में रहकर राज किया था. इस दौरान देश का खजाना भी ग्वालियर के किले में मौजूद था, इसलिए ग्वालियर उस समय देश की राजधानी हुआ करता था. दरअसल आराम शाह के पिता शेरशाह सूरी ने अकबर के पिता हुमायूं को हराकर ग्वालियर किले पर कब्जा किया था. इसके बाद शेरशाह सूरी बांदा का किला फतह करने के दौरान किले में आग लग गई थी, जिससे उसकी मौत हो गई. इसके बाद गद्दी आराम शाह के पास आ गई, लेकिन ज्यादा दिनों तक ग्वालियर किले पर राज नहीं कर पाया.

सिंधिया कुल ने जीता किला

ग्वालियर के किले पर मुगल वंश के बाद इस पर राणा और जाटों का राज था. इस पर मराठाओं ने अपनी पताका लहराई. 1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा. 1789 में सिंधिया कुल के मराठा क्षत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी, लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया. 1780 में इसका नियंत्रण गौड़ राणा छतर सिंह के पास गया, जिन्होंने मराठाओं से इसे छीना. इसके बाद 1784 में सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया. 1804 और 1844 के बीच इस पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा, हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया.

Intro:ग्वालियर- ग्वालियर का किला देश में ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में इतना मशहूर है कि लोग ऐसी सात समुंदर पार से देखने के लिए आते हैं क्योंकि इस किले में कई राजाओं के शौर्य की कहानी है तो किसी की बर्बरता की निशानी है...... इतिहास कहता है कि औरंगजेब इतना आक्रामक राजा हुआ करता था उसने देश की कई बड़ी मूर्तियों को खंडित करने का काम किया था उसी में से एक है ग्वालियर के किले पर मौजूद यह जैन धर्म की मूर्तियां। जिसे उसने अपनी राज की दौरान खंडित किया था। उसकी यह निशानी बर्बरता की कहानी बयां करती है।इस किले का निर्माण आठवीं शताब्दी में किया गया था 3 किलोमीटर के दायरे में फैले इसके लिए की ऊंचाई 35 फीट है। यह किला मध्यकालीन अद्भुत नमूने में से एक है जो शहर के बीचो बीच मौजूद है। यह देश की सबसे बड़ी किले में से एक है और इसका भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इतिहासकारों के मुताबिक इस किले का निर्माण सन 727 ईस्वी में सूरजसेन ने किया।इसलिए पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया। किले की स्थापना के बाद करीब 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया। इसके बाद इस पर प्रतिहार वंश ने राज किया 1030 में मोहम्मद गजनी ने इसके लिए पर आक्रमण किया लेकिन उसे हार का सामना करना पड़ा।


Body:यह सिलसिला यहीं नहीं थमा 1196 ईस्वी में लंबी घेराबंदी के बाद को कुतुबुद्दीन ने इस किले को अपने अधीन किया। लेकिन 1211 ईस्वी में उसे हार का सामना करना पड़ा। फिर 1231 ईस्वी में गुलाम वंश के संस्थापक इल्तुतमिश ने इसे अपनी अधीन किया। इसके बाद महाराजा देव परम ने ग्वालियर पर तोमर राज्य की स्थापना की। इतिहासकार बताते हैं के 1540 से 1544 में आराम शाह ने देश के ऊपर ग्वालियर में रहकर राज किया था।इस दौरान देश का खजाना भी ग्वालियर के किले पर मौजूद था। इसलिए ग्वालियर उस समय देश की राजधानी हुआ करता था। दरअसल आराम शाह के पिता शेरशाह सूरी ने अकबर के पिता हुमायूं को हराकर ग्वालियर किले पर कब्जा किया था।इसके बाद शेरशाह सूरी बांदा का किला फतह करने के दौरान किले में आग लग गई थी जिससे उसकी मौत हो गई थी ।जिसके बाद गद्दी आराम शाह के पास आ गई है लेकिन ज्यादा दिनों तक ग्वालियर किले पर राज नहीं कर सका।

ग्वालियर के किले पर मुगल वंश के बाद इस पर राणा और जाटों का राज रहा। इस पर मराठों ने अपनी पताका लहराई। 1736 में जाट राजा महाराजा भीम सिंह राणा ने इस पर अपना आधिपत्य जमाया और 1756 तक इसे अपने अधीन रखा। 1789 में सिंधिया कुल के मराठा क्षत्रप ने इसे जीता और किले में सेना तैनात कर दी। लेकिन इसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने छीन लिया 1780 में इसका नियंत्रण गौड़ राणां छत्तर सिंग के पास गया जिन्होंने मराठा से इसे छीना। इसके बाद 1784 में महादजी सिंधिया ने इसे वापस हासिल किया।1804 और 1844 के बीच इसके लिए पर अंग्रेजों और सिंधिया के बीच नियंत्रण बदलता रहा। हालांकि जनवरी 1844 में महाराजपुर की लड़ाई के बाद यह किला अंततः सिंधिया के कब्जे में आ गया।



Conclusion:बाईट - मार्कली फिनाले , जर्मनी

बाईट - मनोज शर्मा , गाइड

नोट - विश्व पर्यटन दिवस के लिए यह स्टोरी और raw मटेरियल के तौर पर भेजी है साथ ही इसमें छोटी-छोटी 4 पीटीसी शामिल है। जिसमें एक एक पीटीसी के बीच मे स्टोरी में कुछ सेकेंड का विजुअल जोड़ सकते हैं। उसके बाद एक क्लोज पीटीसी शामिल है। सर स्टोरी पैकेज बनाते समय एक बार मुझसे बात जरूर कर ले।
Last Updated : Sep 26, 2019, 1:03 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.