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इंटेलिजेंस फेलियर का हवाला देकर लगाई गई जनहित याचिका खारिज, अधिवक्ता पर लगाया 50 हजार का जुर्माना

ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच ने पुलवामा हमले को लेकर एक अधिवक्ता द्वारा लगाई गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें इंटेलिजेंस फेलियर बताते हुए जनहित याचिका लगाई गई थी.

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Published : Mar 5, 2019, 10:02 PM IST

याचिकाकर्ता

ग्वालियर। ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच ने पुलवामा हमले को लेकर एक अधिवक्ता द्वारा लगाई गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें इंटेलिजेंस फेलियर बताते हुए जनहित याचिका लगाई गई थी. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने एसपी को सोशल मीडिया पर गोपनीय पत्र का स्रोत जानने के लिए भी निर्देश दिए हैं. साथ ही याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

दरअसल, हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें शहीद सीआरपीएफ जवानों को 5-5 करोड़ रुपए मुआवजे के रूप में देने, परिवार को मकान और एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की गई थी. साथ ही सोशल मीडिया पर जारी एक गोपनीय पत्र का हवाला दिया गया था, जो 8 फरवरी को जारी हुआ था. इसमें आईईडी ब्लास्ट से संबंधित जानकारी दी गई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस पत्र के बारे में जानकारी ली, तो उन्होंने इसे सोशल मीडिया से लेने की बात कही. इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को वास्तविक स्रोत का पता करने के लिए निर्देश दिए हैं.

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साथ ही उस शपथकर्ता के खिलाफ भी प्रिंसिपल रजिस्टार को जांच के आदेश दिए हैं, जिसने इस पत्र को वेरीफाई किया था. हाईकोर्ट ने माना कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरह की जनहित याचिकाओं पर रोक लगाना जरूरी है. इसके लिए उन्होंने याचिकाकर्ता अधिवक्ता पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. साथ ही 15 दिन में राशि को जमा करने के निर्देश भी दिए हैं. लेकिन, याचिकाकर्ता का कहना है कि वह जुर्माने की रकम विधिक सहायता में जमा कर देंगे. लेकिन, भविष्य में इस तरह के हमले न हो इसके लिए सरकार याचिका के बाद कुछ ठोस कदम उठाएगी.

ग्वालियर। ग्वालियर हाईकोर्ट बेंच ने पुलवामा हमले को लेकर एक अधिवक्ता द्वारा लगाई गई उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें इंटेलिजेंस फेलियर बताते हुए जनहित याचिका लगाई गई थी. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने एसपी को सोशल मीडिया पर गोपनीय पत्र का स्रोत जानने के लिए भी निर्देश दिए हैं. साथ ही याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

दरअसल, हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें शहीद सीआरपीएफ जवानों को 5-5 करोड़ रुपए मुआवजे के रूप में देने, परिवार को मकान और एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की गई थी. साथ ही सोशल मीडिया पर जारी एक गोपनीय पत्र का हवाला दिया गया था, जो 8 फरवरी को जारी हुआ था. इसमें आईईडी ब्लास्ट से संबंधित जानकारी दी गई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस पत्र के बारे में जानकारी ली, तो उन्होंने इसे सोशल मीडिया से लेने की बात कही. इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को वास्तविक स्रोत का पता करने के लिए निर्देश दिए हैं.

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साथ ही उस शपथकर्ता के खिलाफ भी प्रिंसिपल रजिस्टार को जांच के आदेश दिए हैं, जिसने इस पत्र को वेरीफाई किया था. हाईकोर्ट ने माना कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरह की जनहित याचिकाओं पर रोक लगाना जरूरी है. इसके लिए उन्होंने याचिकाकर्ता अधिवक्ता पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. साथ ही 15 दिन में राशि को जमा करने के निर्देश भी दिए हैं. लेकिन, याचिकाकर्ता का कहना है कि वह जुर्माने की रकम विधिक सहायता में जमा कर देंगे. लेकिन, भविष्य में इस तरह के हमले न हो इसके लिए सरकार याचिका के बाद कुछ ठोस कदम उठाएगी.

Intro:ग्वालियर
हाई कोर्ट ग्वालियर बेंच ने पुलवामा हमले को लेकर एक अधिवक्ता द्वारा लगाई गई उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें इंटेलिजेंस फेलियर बताते हुए जनहित याचिका लगाई गई थी। हाई कोर्ट ने एसपी को सोशल मीडिया पर गोपनीय पत्र का स्रोत जानने के लिए भी निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता पर 50,000 रुपए की कॉस्ट लगाई है।


Body:दरअसल हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एक अधिवक्ता ने जनहित याचिका दायर की थी जिसमें शहीद सीआरपीएफ जवानों को 5-5 करोड़ रुपए मुआवजे के रूप में देने परिवार को मकान और एक सदस्य को नौकरी देने की मांग की गई थी। साथ ही सोशल मीडिया पर जारी एक गोपनीय पत्र का हवाला दिया गया था जो 8 फरवरी को जारी हुआ था इसमें आईईडी ब्लास्ट से संबंधित जानकारी दी गई थी ।कोर्ट ने याचिकाकर्ता से इस पत्र के बारे में जानकारी ली तो उन्होंने इसे सोशल मीडिया से लेने की बात कही इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को वास्तविक स्रोत का पता करने के लिए निर्देश दिए हैं। साथ ही उस शपथ कर्ता के खिलाफ भी प्रिंसिपल रजिस्टार को जांच के आदेश दिए हैं जिसने इस पत्र को वेरीफाई किया था।


Conclusion:हाई कोर्ट ने माना कि सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरह की जनहित याचिकाओं पर रोक लगाने जरूरी है। इसके लिए उन्होंने याचिकाकर्ता अधिवक्ता पर 50000 रुपए की कॉस्ट भी लगाई है। और 15 दिन में राशि को जमा करने के निर्देश दिए हैं। लेकिन याचिकाकर्ता अधिवक्ता का कहना है कि वह हरजाने की रकम विधिक सहायता में जमा कर देंगे। लेकिन भविष्य में इस तरह के हमले ना हो इसके लिए सरकार याचिका के बाद कुछ ठोस कदम उठाएगी।
बाइट उमेश बौहरे याचिकाकर्ता अधिवक्ता हाई कोर्ट ग्वालियर
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