ग्वालियर। मुस्कान बिल्कुल लियोनार्दो दा विंची की मोनालिसा जैसी और कीमत भी अनमोल, शरीर की सुंदरता ऐसी कि नजरें हटाने का दिल न करें. ये तारीफ किसी मॉडल या अभिनेत्री की नहीं, बल्कि दसवीं शताब्दी की प्राचीन प्रतिमा शालभंजिका की है. जो इंडियन मोनालिसा के नााम से मशहूर ग्वालियर के गूजरी महल संग्रहालय में रखी गई है.
इंडियन मोनालिसा के नाम से मशहूर शालभंजिका की मूर्ति ग्वालियर की गूजरी महल संग्रहालय में रखी है. शालभंजिका एक महिला की प्रतिमा है. जो अपनी सुंदर-मोहक मुस्कान की वजह से कई देशों में सराही जा चुकी है. त्रिभंग मुद्रा में खड़ी एक महिला की दुर्लभ और अद्वितीय पत्थर की मूर्ति सालमन 10 वीं शताब्दी की है. जो विदिशा के पास ग्यारसपुर गांव में खुदाई के दौरान मिली थी.
मूर्ति के चेहरे पर अद्वितीय मुस्कान के कारण इसे इंडियन मोनालिसा भी कहा जाता है. गूजरी महल में रखी शालभंजिका की मूर्ति की मांग साउथ अफ्रीका, जापान, इंडोनेशिया सहित तमाम देश इस मूर्ति की सुंदरता के कद्रदान हैं. यही वजह है कि इस मूर्ति को उन्होंने अनमोल माना है. मतलब इस मूर्ति का कोई मोल नहीं है, ये 10वीं शताब्दी में बनी शालभंजिका दुनिया में न सिर्फ सुंदर मानी जाती है, बल्कि विदेशों में इंडियन मोनालिसा और मास्टर पीस ऑफ आर्ट्स जैसे नामों से जानी जाती है.
इन खूबियों के चलते फेमस है शालभंजिका
इन्हीं खूबियों के चलते भारत की ये कृति एक हजार साल बाद भी श्रेष्ठतम कृतियों में सुमार है. पुरातत्व ने शालभंजिका को किले के सात टालों में बंद करके रखा है और 24 घंटे एक गार्ड तैनात रहता है. इतिहासकारों की मानें तो शालभंजिका की प्रतिमा की तीन विशेषता है. जिसके चलते दुनिया भर में इसे अनमोल माना जाता है.
पत्थर की इस मूर्ति में चेहरे पर मुस्कुराहट का भाव स्पष्ट दिखाई देता है. ये मूर्ति 10वीं, 11वीं शताब्दी में ऐसी अधोवस्त्र पहने दिखाई देती है कि आज के आधुनिक समाज में भी असंभव लगता है. मुस्कान बिल्कुल लियोनार्दो दा विंची की मोनालिसा जैसी है, जो देखता है वह देखता ही रह जाता है