ग्वालियर। एशिया के सबसे बड़े व्यापार मेले के रूप में शुमार ग्वालियर का व्यापार मेला जिसकी शुरुआत पशु मेले के रूप में हुई और दंगल मुख्य आकर्षण बना. 117 सालों से मेले में चली आ रही दंगल और पशु मेले की परंपरा अंचल के दो बड़े बीजेपी नेताओं की गुटबाजी के कारण टूटी है. जिससे मेले में आने वाले छोटे व्यापारी मायूस हैं तो वहीं कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर के मेले का गौरव खत्म करने के लिए बीजेपी नेताओं की नूरा कुश्ती को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.
सिंधिया रियासत में शुरु हुआ था मेला: ग्वालियर के 117 साल पुराने ऐतिहासिक व्यापार मेले की शुरुआत 1905 में सिंधिया रियासत के तत्कालीन राजा माधवराव सिंधिया ने पशु मेले से की थी. बाद में उत्तर भारत में एक बड़ा व्यापार मेला बना. जिसे आज एशिया का सबसे बड़े व्यापार मेले के रूप में जाना जाता है, ग्वालियर अंचल के साथ-साथ अन्य राज्यों के लोगों के साथ साथ, छोटे बड़े व्यापारी भी ग्वालियर व्यापार मेले के लगने बड़ी बेसब्री से इंतजार करते थे. कारण था मेले में लगने वाला पशु मेला और मेले में होने दंगल पशुधन की खरीद-फरोख्त और पहलवानों का दंगल सैलानियों के लिए आकर्षण का था केंद्र था.
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बीजेपी की गुटबाजी का शिकार व्यापार मेला: पशु मेले और दंगल आयोजन की परंपरा 2019 तक जारी रही, लेकिन ग्वालियर अंचल के दो बड़े नेताओं की राजनीतिक गुटबाजी के चलते अब परंपरा टूटी है और मेला प्राधिकरण के कैलेंडर से पशु मेला और दंगल गायब और छोटे दुकानदार निराश हैं. क्योंकि दंगल और पशु मेला होता तो उनका व्यापार अच्छा चलता. दूसरी और राष्ट्रीय स्तर के मेले का गौरव खत्म करने के पीछे कांग्रेस बीजेपी के दो केंद्रीय मंत्रियों की नूरा कुश्ती को जिम्मेदार मानती है. वहीं माधवराव सिंधिया व्यापार मेला प्राधिकरण का कहना है कि दंगल और पशु मेले का प्रस्ताव बनाकर विभाग को भेजा है. आदेश मिलते ही आयोजन किए जाएंगे. बहराल केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की नूरा कुश्ती के चलते अब तक ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण बोर्ड का गठन नहीं हो पाया है. जिसका असर मेले पर साफ देखा जा सकता है, क्योंकि दोनों ही नेता अपने-अपने पहलवानों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाना चाहते हैं तो वहीं मेला संचालक मंडल में अपने चहेतों को जगह दिलाने के लिए ग्वालियर सांसद भी इस गुटबाजी में पीछे नहीं हैं.