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साल दर साल घट रही ग्वालियर की स्वच्छता रैंकिंग, पांच साल बाद भी नहीं बदली तस्वीर

जहां एक तरफ भोपाल और इंदौर स्वच्छता की रैंकिंग में लगातार अच्छी बनी हुई है, तो वहीं ग्वालियर शहर की रैंकिंग में लगातार गिरावट हो रही है.

ग्वालियर में फैली गंदगी
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Published : Oct 2, 2019, 9:02 PM IST

ग्वालियर। आज से ठीक 5 साल पहले गांधी जयंती के दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत का नारा दिया था. पीएम ने लोगों से अपने घर, आसपास और शहर को स्वच्छ रखने की अपील की थी. इसी के उद्देश्य को चलते राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी. अभियान के 5 साल पूरा होने के बाद हमने शहर की प्रमुख स्थानों पर स्वच्छता को लेकर रियलिटी चेक किया, तो ग्वालियर में अलग ही नजारा दिखा.


हमने जानने की कोशिश कि इन 5 सालों में ग्वालियर में स्वच्छता के मामले में कितना बदलाव आया है. लिहाजा हमने शहर की खाक छानी, जहां शहर के कई प्रमुख स्थानों पर गंदगी के अंबार नजर आया, तो लोग भी शहर की साफ-सफाई से संतुष्ट नहीं दिखे. दरअसल पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान की शुरूआत की थी. शहर से लेकर कस्बों तक भारत सरकार ने विभिन्न मापदंडों को निर्धारित करते हुए उनको रैंकिंग दी थी. ग्वालियर की बात करें तो पिछले 5 सालों में स्वच्छता अभियान का बजट 40 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो गया, लेकिन स्थानीय निवासियों की मानें तो स्वच्छता में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है.

साल दर साल घट रही ग्वालियर शहर की स्वच्छता रैंकिग

गौरतलब है कि ग्वालियर 2018 स्वच्छता की रैंकिंग में 28वें नंबर था लेकिन 2019 में लुढ़क कर 59वें नंबर पर जा पहुंचा है. ग्वालियर को स्वच्छ बनाने के लिए एक प्राइवेट कंपनी को डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का काम भी दिया गया है, लेकिन एक साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी ग्वालियर से 64 में से महज 40 वार्डों में ही डोर टू डोर कचरा कलेक्ट किया जा रहा है.

वहीं नगर निगम के पास कर्मचारियों की भी कमी नहीं है. 2014 में जहां निगम के पास 220 कर्मचारी थे, तो अब 2019 में बढ़कर इनकी संख्या 333 हो गई. लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि, नगर निगम ने जो बजट बढ़ाया उसको जमीनी धरातल पर खर्च नहीं किया बल्कि अधिकारी और कर्मचारी आपस में पैसे का बंदरबांट कर ले गए. यही कारण है कि ग्वालियर आज भी गंदा शहर नजर आता है.

कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का मानना है कि 'पिछले 5 साल में सफाई के नाम पर जितना भी पैसा आया उसका बंदरबांट किया गया. किसी भी अधिकारी कर्मचारी व जनप्रतिनिधि स्वच्छता की दिशा में गंभीरता से काम नहीं किया'. यही कारण है कि साल दर साल ग्वालियर की रैकिंग गिरती जा रही है. साथ ही उन्होंने कहा कि पहले भी जो रैंकिंग आती रही है वह केवल आंकड़ों की जादूगरी है.

ग्वालियर। आज से ठीक 5 साल पहले गांधी जयंती के दिन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत का नारा दिया था. पीएम ने लोगों से अपने घर, आसपास और शहर को स्वच्छ रखने की अपील की थी. इसी के उद्देश्य को चलते राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी. अभियान के 5 साल पूरा होने के बाद हमने शहर की प्रमुख स्थानों पर स्वच्छता को लेकर रियलिटी चेक किया, तो ग्वालियर में अलग ही नजारा दिखा.


हमने जानने की कोशिश कि इन 5 सालों में ग्वालियर में स्वच्छता के मामले में कितना बदलाव आया है. लिहाजा हमने शहर की खाक छानी, जहां शहर के कई प्रमुख स्थानों पर गंदगी के अंबार नजर आया, तो लोग भी शहर की साफ-सफाई से संतुष्ट नहीं दिखे. दरअसल पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान की शुरूआत की थी. शहर से लेकर कस्बों तक भारत सरकार ने विभिन्न मापदंडों को निर्धारित करते हुए उनको रैंकिंग दी थी. ग्वालियर की बात करें तो पिछले 5 सालों में स्वच्छता अभियान का बजट 40 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो गया, लेकिन स्थानीय निवासियों की मानें तो स्वच्छता में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है.

साल दर साल घट रही ग्वालियर शहर की स्वच्छता रैंकिग

गौरतलब है कि ग्वालियर 2018 स्वच्छता की रैंकिंग में 28वें नंबर था लेकिन 2019 में लुढ़क कर 59वें नंबर पर जा पहुंचा है. ग्वालियर को स्वच्छ बनाने के लिए एक प्राइवेट कंपनी को डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का काम भी दिया गया है, लेकिन एक साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी ग्वालियर से 64 में से महज 40 वार्डों में ही डोर टू डोर कचरा कलेक्ट किया जा रहा है.

वहीं नगर निगम के पास कर्मचारियों की भी कमी नहीं है. 2014 में जहां निगम के पास 220 कर्मचारी थे, तो अब 2019 में बढ़कर इनकी संख्या 333 हो गई. लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि, नगर निगम ने जो बजट बढ़ाया उसको जमीनी धरातल पर खर्च नहीं किया बल्कि अधिकारी और कर्मचारी आपस में पैसे का बंदरबांट कर ले गए. यही कारण है कि ग्वालियर आज भी गंदा शहर नजर आता है.

कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का मानना है कि 'पिछले 5 साल में सफाई के नाम पर जितना भी पैसा आया उसका बंदरबांट किया गया. किसी भी अधिकारी कर्मचारी व जनप्रतिनिधि स्वच्छता की दिशा में गंभीरता से काम नहीं किया'. यही कारण है कि साल दर साल ग्वालियर की रैकिंग गिरती जा रही है. साथ ही उन्होंने कहा कि पहले भी जो रैंकिंग आती रही है वह केवल आंकड़ों की जादूगरी है.

Intro:ग्वालियर- ठीक 5 साल पहले आज ही मतलब गांधी जयंती के दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत का नारा दिया था और लोगों से अपील की थी कि अपने आसपास को साफ रखें और अपने घर और शहर को भी स्वच्छ बनाएं। इसी के उद्देश्य के चलते राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान को 5 साल पूरे हो गए हैं। इसी के चलते आज हमने शहर की प्रमुख स्थानों पर रियलिटी चेक किया तो कई जगह कूड़े के ढेर मिले। और कई जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ था हमने जानने की कोशिश कि इन 5 सालों में ग्वालियर में स्वच्छता के मामले में कितना बदलाव आया है।


Body:पीएम नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को राष्ट्रीय स्तर पर स्वच्छता अभियान शुरू किया था शहर से लेकर कस्बों तक भारत सरकार ने विभिन्न मापदंडों को निर्धारित करते हुए उनको रैंकिन दी थी। अगर ग्वालियर की बात करें तो पिछले 5 सालों में स्वच्छता अभियान का बजट 40 करोड़ से बढ़कर 60 करोड़ हो गया ।लेकिन स्थानीय निवासियों की मानें तो स्वच्छता में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिला है। इसकी तस्वीर करने के लिए ग्वालियर की रैंकिंग ही काफी है 2018 में ग्वालियर 28वे नंबर था लेकिन 2019 में लुढ़ककर 59वे नंबर पर जा पहुंचा है। ग्वालियर को स्वच्छ बनाने के लिए एक प्राइवेट कंपनी को डोर टू डोर कचरा कलेक्शन का काम भी दिया गया है लेकिन एक साल से अधिक समय गुजर जाने के बाद भी ग्वालियर से 64 में से महज 40 वार्डों में ही डोर टू डोर कचरा कलेक्ट किया जा रहा है। नगर निगम के पास कर्मचारियों की कमी हो 2014 में जहां निगम के पास 220 कर्मचारी थे तो वहीं 2019 में बढ़कर इनकी संख्या 333 हो गई। लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि नगर निगम ने जो बजट बढ़ाया उसको जमीनी धरातल पर खर्च नहीं किया बल्कि अधिकारी और कर्मचारी आपस में पैसे का बंदरबांट कर ले गए। यही कारण है कि ग्वालियर आज भी गंदा शहर नजर आता है। वही कांग्रेस प्रवक्ता आरपी सिंह का मानना है कि पिछले 5 साल में सफाई के नाम पर जितना भी पैसा आया उसका बंदरबांट किया गया। किसी भी अधिकारी कर्मचारी व जनप्रतिनिधि स्वच्छता की दिशा में गंभीरता से काम नहीं किया है। यही कारण है कि साल दर साल ग्वालियर की रैकिंग गिरती जा रही है। साथ ही उन्होंने कहा कि पहली भी जो रैंकिंग आती रही है वह केवल आंकड़ों की जादूगरी है।


Conclusion:बाइट - आरपी सिंह, कांग्रेस प्रवक्ता

बाइट - सुनील पटेरिया , स्थानीय निवासी

P2C - अनिल गौर
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