ग्वालियर। हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ के निर्देश के बावजूद एक फौजी की याचिका पर उसके नवजात का डीएनए निर्धारित समय पर नहीं हो सका है. अब अगली सुनवाई पर कोर्ट को यह तय करना है कि निजी लैब से कराए जाने वाले इस डीएनए का खर्च कौन वहन करेगा. पिछली सुनवाई पर हाईकोर्ट ने सीएमएचओ को निर्देशित किया था कि वह फौजी के नवजात का डीएनए कराएं, जिससे विवाद का निपटारा हो सके.
क्या है विवाद
कल्याण मेमोरियल हॉस्पिटल में आईवीएफ तकनीक के जरिए फौजी की पत्नी मंजू तोमर को गर्भ धारण कराया गया था, जहां मंजू तोमर को प्रसव हुआ. अस्पताल प्रबंधन ने पहले बताया कि उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई है लेकिन डिस्चार्ज टिकट पर लड़की लिखा था और लड़की ही फौजी दंपति को दी गई.
फौजी ने कोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में कल्याण मेमोरियल हॉस्पिटल और वहां के डॉक्टर भावना शर्मा पर बच्चा बदलने का आरोप लगाया था. इस मामले में जांच कराई गई थी, लेकिन अस्पताल प्रबंधन और सीएमएचओ द्वारा गठित टीम ने इसे क्लेरिकल मिस्टेक पाया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में फौजी अपना और बच्चे का डीएनए देने के लिए निर्धारित अवधि पर जिला अस्पताल पहुंचे जहां सीएमएचओ उसका डीएनए सैंपल कलेक्ट करेंगे.
जब फौजी सैंपल देने के लिए गया तो वहां पैसे देने को लेकर विवाद हो गया. सीएमएचओ का कहना है कि याचिकाकर्ता ने निजी लैब में जांच कराने रुचि दिखाइ है. जहां की फीस ज्यादा है, इसलिए इसकी भरपाई उन्हें ही करनी होगी. लेकिन फौजी यह पैसे देने को राजी नहीं है. अब अगली सुनवाई पर कोर्ट को देखना होगा कि डीएनए का खर्चा आखिरकार कौन उठाएगा.