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कोर्ट के बाबू को जीवन पर्यंत नहीं मिला न्याय, ढाई दशक का समय न्याय पाने में लगा - Question on justice system

देश की न्याय प्रणाली पर सवाल खड़े करने वाला एक मामला सामने आया है. जहां कोर्ट में काम करने वाले एक व्यक्ति को ही जीवनपर्यंत न्याय नहीं मिल सका, लेकिन उसकी मौत के एक साल बाद अब जाकर उन्हें न्याय मिला है. इस कवायद में उन्हें न्याय पाने में ढाई दशक का समय लग गया.

Gwalior Bench
ग्वालियर खंडपीठ
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Published : Nov 30, 2020, 2:02 AM IST

ग्वालियर। देश की न्याय प्रणाली पर सवाल खड़े करने वाला एक मामला सामने आया है. जहां कोर्ट में काम करने वाले एक व्यक्ति को ही जीवनपर्यंत न्याय नहीं मिल सका, लेकिन उसकी मौत के एक साल बाद अब जाकर उन्हें न्याय मिला है. इस कवायद में उन्हें न्याय पाने में ढाई दशक का समय लग गया. दरअसल शिंदे की छावनी छप्पर वाला पुल के नजदीक रहने वाले श्याम लाल व्यास ने अपनी अचल संपत्ति के एक हिस्से को इंदर चंद जैन नामक व्यक्ति को किराए के रूप में रखा था, लेकिन न्यायालय में कार्यरत श्याम लाल व्यास को अपने बेटे अमिताभ व्यास के लिए तो दुकान की जरूरत महसूस हुई. इस पर उन्होंने किराएदार से दुकान खाली करने के लिए कहा. पर किराएदार ने साफ तौर पर इससे इंकार कर दिया. मामला पहले रेंट कंट्रोल बोर्ड फिर दीवानी कोर्ट पहुंचा. न्यायालय में मकान मालिक श्याम लाल व्यास भी कार्यरत थे. उन्होंने भाड़ा नियंत्रण कानून बोर्ड में अपनी समस्या को लेकर याचिका दायर की. जहां से उनके पक्ष में फैसला आया. मामले में दोबारा अपील करने से यह प्रकरण खिंचता चला गया.

ग्वालियर खंडपीठ

मामला दीवानी कोर्ट और रेंट कंट्रोल बोर्ड से लेकर हाईकोर्ट तक पहुंचा, लेकिन हर बार मकान दुकान मालिक के पक्ष में फैसला आने के बावजूद किराएदार इंदर चंद जैन द्वारा क्रिमिनल रिवीजन पेश कर दी जाती थी. जिससे बाद में सिविल रिवीजन द्वारा सुना गया. न्यायमूर्ति जी एस अहलूवालिया ने इस प्रकरण को लंबे समय से देख अंतिम रूप से दुकान मालिक श्याम लाल व्यास के पक्ष में फैसला दिया है. लेकिन दुखद पहलू यह है कि पक्षकार और प्रतिवादी किराएदार दोनों की ही मौत हो चुकी है. अब दोनों के ही परिवार इस फैसले से प्रभावित होंगे. श्याम लाल व्यास के अधिवक्ता ने बताया कि कानूनी पेचीदगियों के कारण करीब ढाई दशक तक यह मामला खिचता रहा. फैसला सुनने से पहले ही पिछले साल अप्रैल में श्यामलाल की कैंसर से मौत हो गई, जबकि इंदर चंद जैन ने भी 6 साल पहले दुनिया को अलविदा कह दिया था.

ग्वालियर। देश की न्याय प्रणाली पर सवाल खड़े करने वाला एक मामला सामने आया है. जहां कोर्ट में काम करने वाले एक व्यक्ति को ही जीवनपर्यंत न्याय नहीं मिल सका, लेकिन उसकी मौत के एक साल बाद अब जाकर उन्हें न्याय मिला है. इस कवायद में उन्हें न्याय पाने में ढाई दशक का समय लग गया. दरअसल शिंदे की छावनी छप्पर वाला पुल के नजदीक रहने वाले श्याम लाल व्यास ने अपनी अचल संपत्ति के एक हिस्से को इंदर चंद जैन नामक व्यक्ति को किराए के रूप में रखा था, लेकिन न्यायालय में कार्यरत श्याम लाल व्यास को अपने बेटे अमिताभ व्यास के लिए तो दुकान की जरूरत महसूस हुई. इस पर उन्होंने किराएदार से दुकान खाली करने के लिए कहा. पर किराएदार ने साफ तौर पर इससे इंकार कर दिया. मामला पहले रेंट कंट्रोल बोर्ड फिर दीवानी कोर्ट पहुंचा. न्यायालय में मकान मालिक श्याम लाल व्यास भी कार्यरत थे. उन्होंने भाड़ा नियंत्रण कानून बोर्ड में अपनी समस्या को लेकर याचिका दायर की. जहां से उनके पक्ष में फैसला आया. मामले में दोबारा अपील करने से यह प्रकरण खिंचता चला गया.

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मामला दीवानी कोर्ट और रेंट कंट्रोल बोर्ड से लेकर हाईकोर्ट तक पहुंचा, लेकिन हर बार मकान दुकान मालिक के पक्ष में फैसला आने के बावजूद किराएदार इंदर चंद जैन द्वारा क्रिमिनल रिवीजन पेश कर दी जाती थी. जिससे बाद में सिविल रिवीजन द्वारा सुना गया. न्यायमूर्ति जी एस अहलूवालिया ने इस प्रकरण को लंबे समय से देख अंतिम रूप से दुकान मालिक श्याम लाल व्यास के पक्ष में फैसला दिया है. लेकिन दुखद पहलू यह है कि पक्षकार और प्रतिवादी किराएदार दोनों की ही मौत हो चुकी है. अब दोनों के ही परिवार इस फैसले से प्रभावित होंगे. श्याम लाल व्यास के अधिवक्ता ने बताया कि कानूनी पेचीदगियों के कारण करीब ढाई दशक तक यह मामला खिचता रहा. फैसला सुनने से पहले ही पिछले साल अप्रैल में श्यामलाल की कैंसर से मौत हो गई, जबकि इंदर चंद जैन ने भी 6 साल पहले दुनिया को अलविदा कह दिया था.

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