ग्वालियर। 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ओर कांग्रेस का सबसे ज्यादा फोकस ग्वालियर-चंबल अंचल पर है. एक ओर जहां संत रविदास जयंती पर भिंड जिले से सीएम शिवराज सिंह चौहान ने सरकार की विकास यात्रा को हरी झंड़ी दिखाई है तो वहीं पीसीसी चीफ कमलनाथ ने संत रविदास जयंती पर कांग्रेस की चुनावी बिगुल आगाज कर दिया है. इस दौरान दोनों ही दलों ने अपने आपको, दलितों का हितैशी बताकर एक दूसरे को घेरने की कोशिश की है. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पर सवाल उठाएं हैं.
भाजपा पर कमलनाथ का पलटवार: पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने ग्वालियर के दशहरा मैदान थाटीपुर में संत रविदास के व्यक्तित्व को याद करते हुए एक सशक्त प्रदेश और देश चुनने का संकल्प लोगों को दिलाया. पूर्व सीएम बोले हैं कि कुछ लोग आज धर्म के आधार पर बांट रहे हैं कल जाति के आधार पर बांटेंगे पर हमें तय करना है कि आने वाली पीढ़ियों को हम कैसा देश सौंपना चाहते हैं. संस्कृति हमारी पहचान है. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लोगों से कहा कि 7 महीने बाद चुनाव हैं मैं यह नहीं कहता कि किसी पार्टी को चुनो, लेकिन उसे चुनो जो हमारी संस्कृति और संस्कार को आगे ले जाए.
PCC चीफ कमलनाथ ने बिना किसी भाजपा नेता का नाम लिए बिना ही सरकार को आड़े हाथ लिया. उनका कहना था कि 35 साल में पंजाब में अभी तक खालिस्तान का नाम सुनाई नहीं दिया था, लेकिन अब खालिस्तान का नाम सुनाई देने लगा है. लोग संस्कृति, धर्म व जाति के आधार पर बांटने का प्रयास करेंगे, लेकिन हमें सोचना है कि हमारी आने वाली पीढी को हम कैसा प्रदेश व देश सौंपना चाहते हैं.
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चंबल का चुनावी समीकरण: कांग्रेस ने सिंधिया के गढ़ ग्वालियर-चंबल अंचल से किया है. यह वह गढ़ है जिसके कारण साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी और सिंधिया की नाराजगी के बाद इसी अंचल के कारण 15 महीने की कमल नाथ सरकार मार्च 2020 में गिराई गई थी. यह दलित वोटर मिशन 2023 में विनिंग फैक्टर होने वाला है.
कांग्रेस को 2018 के विधानसभा चुनाव में दलित वोटरों की बदौलत ही ग्वालियर-चंबल अंचल में 33 साल बाद ऐतिहासिक कामयाबी हासिल हुई थी. मौजूदा स्थिति में ग्वालियर चंबल अंचल की 7 सीटें SC के लिए आरक्षित हैं. वहीं अन्य 27 सीटों पर भी दलित वोटरों की बड़ी तादाद है. 2018 में दलित वोटरों की नाराजगी के कारण अंचल में भाजपा का सफाया हो गया था. BJP यहां 34 में से महज 7 सीटों पर सिमट गई थी. कांग्रेस ने 1985 के बाद ऐतिहासिक कामयाबी हासिल करते हुए 34 में 26 सीटें जीती थी.