ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय में 89 दिनों के कार्य दिवस पर भर्ती हुए एक युवक को अचानक टाइम कीपर बना दिया गया. बाद में उसे अंशकालीन सिविल डिप्लोमा करने के बाद इंजीनियर के पद पर पदोन्नति भी दे दी गई. मामला करीब 10 साल पुराना है. वहीं इस मामले में आरटीआई कार्यकर्ता ने शिकायत की है लेकिन 2 साल से जांच ही चल रही है और नतीजा कुछ भी नहीं निकला है.
खास बात यह है कि जिस इंजीनियर पर आरोप लगा है वह 10 प्लस टू बायोलॉजी साइड से किया हुआ था. जबकि डिप्लोमा इंजीनियर के लिए भौतिक शास्त्र रसायन शास्त्र और गणित विषय लेना अनिवार्य है. दरअसल मामला विश्वविद्यालय के इंजीनियर राजेश नायक से जुड़ा हुआ है. 2 साल पहले एक आरटीआई कार्यकर्ता अशोक गोस्वामी ने राजेश नायक की इंजीनियरिंग पद पर पदोन्नति को लेकर सवाल खड़े किए थे.
उन्होंने आरटीआई से जानकारी निकलवाई जिसमें राजेश नायक को बायोलॉजी से इंटर करने के बाद सिविल डिप्लोमा पार्ट टाइम दिया गया. यह अपने जांच का विषय हो सकता है, क्योंकि बायोलॉजी साइड से इंजीनियरिंग डिप्लोमा नहीं हो सकता है. आरटीआई अशोक गोस्वामी ने इस मामले की शिकायत की थी. जिस पर विश्वविद्यालय प्रबंधन ने एक जांच कमेटी गठित की. बाद में यह मामला रिटायर्ड जज को सौंप दिया गया. लेकिन 2 साल बाद भी जांच रिपोर्ट अधर में है.
हैरानी की बात यह है कि पूर्व कार्यकाल में आनंद मिश्रा विश्वविद्यालय के कुलसचिव थे, जो दोबारा कुलसचिव बन चुके हैं. इसी तरह मनेंद्र सोलंकी उस समय कार्य परिषद के सदस्य थे. वह भी दोबारा सदस्य चुने जा चुके हैं. लेकिन कोई भी इस मामले को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी लेता दिखाई नहीं दे रहा है. आरटीआई कार्यकर्ता का आरोप है कि 2 साल बाद भी जांच का नतीजा नहीं निकला है. इसलिए इस मामले का जल्द ही पटाक्षेप होना चाहिए. उधर विश्वविद्यालय के अधिकारी भी जांच रिपोर्ट के नतीजे सामने आने के बाद ही कोई कार्रवाई की बात कह रहे हैं.