ग्वालियर। पर्यावरण संरक्षण को लेकर अलग-अलग जगहों पर इको फ्रेंडली गणेश की प्रतिमा बनाई जा रही है, लेकिन जिले का एक युवा पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सालों से मिट्टी से प्रतिमा को बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है. 'खुद ही बनाओ खुद ही मिटाओ' की थीम पर युवा कलाकार अनिल बाथम लोगों को प्रशिक्षित कर रहा है.
एक मूर्तिकार जो सालों से बना रहा इको फ्रेंडली मूर्तियां, प्रतिमा बनाने का देता है प्रशिक्षण
जिले में एक मूर्तिकार जो सालों से इको फ्रेंडली प्रतिमाएं बना रहा है. मिट्टी से बनी प्रतिमाओं की घूम-घूम कर प्रशिक्षण देता है. साथ ही लोगों को जागरूक भी कर रहा है.
युवा कलाकार अनिल बाथम
ग्वालियर। पर्यावरण संरक्षण को लेकर अलग-अलग जगहों पर इको फ्रेंडली गणेश की प्रतिमा बनाई जा रही है, लेकिन जिले का एक युवा पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सालों से मिट्टी से प्रतिमा को बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है. 'खुद ही बनाओ खुद ही मिटाओ' की थीम पर युवा कलाकार अनिल बाथम लोगों को प्रशिक्षित कर रहा है.
Intro:ग्वालियर
मौजूदा दौर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अंतरराष्ट्रीय बहस और उसके निदान के लिए तरकीबें खोजी जा रही है ।लेकिन ग्वालियर का एक युवा पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सालों से मिट्टी से प्रतिमा को बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है ।खुद ही बनाओ खुद ही मिटाओ की थीम पर युवा कलाकार अनिल बाथम लोगों को गांव शहर और विभिन्न संस्थाओं में घूम कर प्रशिक्षित कर रहा है।
Body:दरअसल उपनगर ग्वालियर इलाके में रहने वाले अनिल बाथम मूर्तिकार है लेकिन उनकी बनाई मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा केमिकल रंगों से बनी प्रतिमाओं का कोई स्थान नहीं है वह चिकनी मिट्टी से पलक झपकते ही किसी की भी मूर्ति बना देते हैं इन दिनों गणेश उत्सव पर्व की धूम है वे लोगों को घूम घूम कर पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपना संदेश देने और युवाओं को गांव शहर के विभिन्न संस्थाओं में जाकर उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं और प्राकृतिक रूप से भगवान की प्रतिमा बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
Conclusion:अभी तक अनिल बाथम ने विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के करीब 3 सैकड़ा से ज्यादा छात्र छात्राओं को प्रशिक्षित किया है। शहर के ललित कला संस्थान में अक्सर उन्हें छात्र छात्राओं को प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया जाता है ।उनका कहना है कि पर्यावरण की दृष्टि से मिट्टी से बनी प्रतिमा जल्द ही बन जाती है और जल्द ही उसका विसर्जन भी हो जाता है और हमारे जल स्रोतों में किसी तरह का प्रदूषण नहीं फैलता जबकि पीओपी और केमिकल रंगों से बने प्रतिमाओं में हम अनजाने में ही प्रकृति से खिलवाड़ करते नजर आते हैं।
बाइट- अनिल बाथम मूर्तिकार
बाइट- तनु शर्मा... प्रशिक्षणार्थी
मौजूदा दौर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर अंतरराष्ट्रीय बहस और उसके निदान के लिए तरकीबें खोजी जा रही है ।लेकिन ग्वालियर का एक युवा पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सालों से मिट्टी से प्रतिमा को बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है ।खुद ही बनाओ खुद ही मिटाओ की थीम पर युवा कलाकार अनिल बाथम लोगों को गांव शहर और विभिन्न संस्थाओं में घूम कर प्रशिक्षित कर रहा है।
Body:दरअसल उपनगर ग्वालियर इलाके में रहने वाले अनिल बाथम मूर्तिकार है लेकिन उनकी बनाई मूर्तियों में प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा केमिकल रंगों से बनी प्रतिमाओं का कोई स्थान नहीं है वह चिकनी मिट्टी से पलक झपकते ही किसी की भी मूर्ति बना देते हैं इन दिनों गणेश उत्सव पर्व की धूम है वे लोगों को घूम घूम कर पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपना संदेश देने और युवाओं को गांव शहर के विभिन्न संस्थाओं में जाकर उन्हें प्रशिक्षित कर रहे हैं और प्राकृतिक रूप से भगवान की प्रतिमा बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
Conclusion:अभी तक अनिल बाथम ने विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के करीब 3 सैकड़ा से ज्यादा छात्र छात्राओं को प्रशिक्षित किया है। शहर के ललित कला संस्थान में अक्सर उन्हें छात्र छात्राओं को प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया जाता है ।उनका कहना है कि पर्यावरण की दृष्टि से मिट्टी से बनी प्रतिमा जल्द ही बन जाती है और जल्द ही उसका विसर्जन भी हो जाता है और हमारे जल स्रोतों में किसी तरह का प्रदूषण नहीं फैलता जबकि पीओपी और केमिकल रंगों से बने प्रतिमाओं में हम अनजाने में ही प्रकृति से खिलवाड़ करते नजर आते हैं।
बाइट- अनिल बाथम मूर्तिकार
बाइट- तनु शर्मा... प्रशिक्षणार्थी