गुना। सरकार में बैठे राजनेता भले ही कितने ही सुशासन का दावा करें, लेकिन नौकरशाही की लापरवाही खत्म होती नहीं दिखाई दे रही है, जिसका जीता जागता उदाहरण चाचौड़ा की बटाबदा गांव में देखने को मिला. जहां पंचायत सचिव ने एक जीवित आदिवासी बुजुर्ग को मृत घोषित करके उसका नाम लिस्ट से हटा दिया. बुजुर्ग ने पेंशन बंद होने का कारण पता किया, तो उसके पैरों तले से जमीन खिंसक गई. जब उसे पता चला की, सरकारी रिकॉर्ड में तो वो मृत है.
कई महीने तक बैंक का पासबुक लेकर मोहर सिंह भील बैंक के चक्कर लगाता रहा कि, साहब मेरी पेंशन कब आएगी. बैंक अधिकारी उसे टालते रहे. थक हारकर बुजुर्ग मोहर सिंह ने बटावदा सरपंच और सचिव से गुहार लगाई. लेकिन सरपंच और सचिव ने भी अनसुना कर दिया.
किसी व्यक्ति ने मोहर को बताया कि, समग्र आईडी निकाल कर देखो, जब उसने आईडी निकलवाई तो पता चला कि, उसे तो जनवरी 2019 में ही मरा हुआ दिखा दिया गया है. ग्रामीणों से सलाह मशवरा करके वो चाचौड़ा एसडीएम वीरेंद्र सिंह के पास पहुंचा और ये समस्या बताई. मोहर सिंह ने इसके बाद जनपद सीईओ हरिनारायण शर्मा के ऑफिस में भी दस्तक दी और कहा कि, 'साहब देख लीजिए मैं जिंदा हूं. मुझे कागजों में जिंदा करके मेरी पेंशन चालू करवा दीजिए'.