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विरासत में मिली सियासत, राजशाही के बाद लोकशाही में भी बोलती है इनकी तूती - #गुना

गुना लोकसभा सीट सिंधिया राजघराने के दबदबे वाली सीट मानी जाती है. इस सीट से एक बार फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव मैदान में हैं, सिंधिया गुना सीट से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. इस बार बीजेपी ने उनके सामने डॉ. केपी यादव को उतारा है.

गुना से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया
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Published : May 11, 2019, 12:49 PM IST

गुना। बदन पर चुस्त कुर्ता-पजामा, गले में कांग्रेसी गमछा, चेहरे पर सौम्यता और रौब के भाव एक साथ. ये छवि है मध्यप्रदेश में कांग्रेस के झंडाबरदार ज्योतिरादित्य सिंधिया की. सिंधिया को सियासत विरासत में मिली है. ये परिवार भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा परिवारों में से है, जिसके पास राजशाही विरासत तो है ही, जबकि लोकतंत्र में भी उसका रसूख कायम है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी सफर

पांचवी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद अचानक सियासी अखाड़े में उतरे थे, लेकिन वे सियासत से अंजान नहीं थे. तब से लेकर अब तक अपने 18 सालों के सियासी सफर में ज्योतिरादित्य मध्यप्रदेश में कांग्रेस के मजबूत स्तंभ के रुप में स्थापित हो चुके हैं. रफ्तार का शौक रखने वाले सिंधिया ने सियासी पैंतरे भी उसी तेजी से सीखे और राजनीति में एक मुकाम हासिल किया. उनके राजनीतिक जीवन की बात की जाए तो पिता की मौत के बाद.

ज्योतिरादित्य 2002 में गुना लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए
2002 के बाद 2004, 2009, 2014 में भी गुना सीट से चुनाव जीते
यूपीए-2 के वक्त उन्हें केंद्र में ऊर्जा राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार समिति के अध्यक्ष रहे
15 साल बाद सूबे में कांग्रेस की सत्ता वापसी कराने में अहम रोल निभाया
5वीं बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पश्चिमी यूपी का महासचिव बनाया
प्रदेश के साथ-साथ देश में भी कांग्रेस का बड़ा चेहरा माने जाते हैं

बड़े राजघराने से ताल्लुक रखने के बाद भी सिंधिया ने अपनी छवि एक सौम्य नेता के रूप में गढ़ी है. मंत्री बनने के बाद सिंधिया ने अपनी गाड़ी पर लाल बत्ती भी नहीं लगाई, साथ ही वे खुद को महाराजा कहलाना भी नहीं पसंद करते. हालांकि, ग्वालियर-चंबल सहित प्रदेश के कई इलाकों में लोग उन्हें महाराजा के नाम से ही पुकारते हैं. रियासत से सियासत के सफर में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस बड़ा चेहरा है. विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा सफलता दिलाने वाले सिंधिया केवल अपनी सीट से चुनाव ही नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें लोकसभा चुनाव में यूपी जैसे बड़े राज्य के पश्चिमी भाग की जिम्मेदारी भी सौंपी है, जो कांग्रेस में उनके कद की कहानी खुद-ब-खुद बयां करता है.

गुना। बदन पर चुस्त कुर्ता-पजामा, गले में कांग्रेसी गमछा, चेहरे पर सौम्यता और रौब के भाव एक साथ. ये छवि है मध्यप्रदेश में कांग्रेस के झंडाबरदार ज्योतिरादित्य सिंधिया की. सिंधिया को सियासत विरासत में मिली है. ये परिवार भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा परिवारों में से है, जिसके पास राजशाही विरासत तो है ही, जबकि लोकतंत्र में भी उसका रसूख कायम है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी सफर

पांचवी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद अचानक सियासी अखाड़े में उतरे थे, लेकिन वे सियासत से अंजान नहीं थे. तब से लेकर अब तक अपने 18 सालों के सियासी सफर में ज्योतिरादित्य मध्यप्रदेश में कांग्रेस के मजबूत स्तंभ के रुप में स्थापित हो चुके हैं. रफ्तार का शौक रखने वाले सिंधिया ने सियासी पैंतरे भी उसी तेजी से सीखे और राजनीति में एक मुकाम हासिल किया. उनके राजनीतिक जीवन की बात की जाए तो पिता की मौत के बाद.

ज्योतिरादित्य 2002 में गुना लोकसभा सीट से पहली बार सांसद चुने गए
2002 के बाद 2004, 2009, 2014 में भी गुना सीट से चुनाव जीते
यूपीए-2 के वक्त उन्हें केंद्र में ऊर्जा राज्यमंत्री का स्वतंत्र प्रभार दिया गया
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार समिति के अध्यक्ष रहे
15 साल बाद सूबे में कांग्रेस की सत्ता वापसी कराने में अहम रोल निभाया
5वीं बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने पश्चिमी यूपी का महासचिव बनाया
प्रदेश के साथ-साथ देश में भी कांग्रेस का बड़ा चेहरा माने जाते हैं

बड़े राजघराने से ताल्लुक रखने के बाद भी सिंधिया ने अपनी छवि एक सौम्य नेता के रूप में गढ़ी है. मंत्री बनने के बाद सिंधिया ने अपनी गाड़ी पर लाल बत्ती भी नहीं लगाई, साथ ही वे खुद को महाराजा कहलाना भी नहीं पसंद करते. हालांकि, ग्वालियर-चंबल सहित प्रदेश के कई इलाकों में लोग उन्हें महाराजा के नाम से ही पुकारते हैं. रियासत से सियासत के सफर में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस बड़ा चेहरा है. विधानसभा चुनाव में ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा सफलता दिलाने वाले सिंधिया केवल अपनी सीट से चुनाव ही नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उन्हें लोकसभा चुनाव में यूपी जैसे बड़े राज्य के पश्चिमी भाग की जिम्मेदारी भी सौंपी है, जो कांग्रेस में उनके कद की कहानी खुद-ब-खुद बयां करता है.

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