गुना। सियासत में जब भी राजे-रजवाड़ों की बात होती है, सिंधिया राजघराने के बगैर अधूरी मानी जाती है क्योंकि राजतंत्र के बाद प्रजातंत्र में भी इस परिवार का लोहा माना जाता है. गुना मध्यप्रदेश की ऐसी लोकसभा सीट है, जहां से इस परिवार की तीन पीढ़ियां देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचती रही हैं. गुना में इस बार कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने बीजेपी ने डॉक्टर केपी यादव को सियासी अखाड़े में उतारा है.
गुना क्षेत्र में सिंधिया राजघराने के नाम का सिक्का आज भी चलता है. पार्टी कोई भी हो, जीत इस परिवार के सदस्य की ही हुई है. हालांकि, इस समय ये सीट कांग्रेस की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है, जबकि समय-समय पर यहां बीजेपी भी जीत दर्ज करती रही है. गुना में अब तक हुए 14 आम चुनावों में से 9 बार कांग्रेस के पंजे ने पकड़ बनाई है और बीजेपी भी जीत का चौका लगा चुकी है, जबकि एक बार जनसंघ के प्रत्याशी ने भी जीत दर्ज की है. पिछले एक उपचुनाव सहित चार चुनावों से यहां कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं.
गुना संसदीय क्षेत्र के 16 लाख 70 हजार 631 मतदाता इस बार लोकतंत्र के सबसे बड़े हवन में आहुति डालेंगे, जिनमें 8 लाख 86 हजार 354 पुरुष मतदाता हैं, जबकि 7 लाख 84 हजार 236 महिला मतदाता शामिल है. वहीं, थर्ड जेंडर की संख्या 41 है. गुना क्षेत्र में इस बार कुल 2 हजार 170 मतदान केंद्र बनाए गए हैं. जिनमें से 537 क्रिटिकल केंद्र है. जहां प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की बात कही है.
गुना संसदीय क्षेत्र में गुना, बमोरी, शिवपुरी, पिछोर, कोलारस, मुंगावली, अशोकनगर, और चंदेरी विधानसभा सीटें आती हैं. विधानसभा चुनाव में इन आठों सीटों में से चार सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी तो चार सीटें कांग्रेस ने जीती थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों के आधार पर भले ही यहां दोनों दलों में बराबरी का मुकाबला दिख रहा है, लेकिन इस सीट का इतिहास कहता है कि यहां विधानसभा चुनाव के नतीजे कुछ भी कहें, पर लोकसभा में कांग्रेस का ही दबदबा रहता है.
2014 की मोदी लहर में जब कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज चित हो गए, तब भी कांग्रेस के झंडाबरदार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना में कांग्रेस की शाख बचाये रखी थी. उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता जयभान सिंह पवैया को एक लाख 20 हजार 792 वोटों के बड़े अंतर से हराया था. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि इस बार सिंधिया के सामने बीजेपी के केपी यादव कोई करिश्मा दिखा पाते हैं, या सिंधिया का दबदबा कायम रहता है.