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आदिवासी बैगा महिला उजियारो बाई का भागीरथी प्रयास, सूखे झरने में आया पानी - उजियारो बाई के प्रयास से गांव में पानी

डिंडोरी जिले का समनापुर ब्लॉक के पोंडी गांव का झरना कोपत इस भीषण गर्मी में बैगा जनजाति के लोगों की प्यास बुझा रहा है. कुछ साल पहले पानी की कमी की वजह से यहां से लोग पलायन कर रहे थे, लेकिन उजियारो बाई के प्रयासों ने इस गांव में पानी का वो सूखा खत्म कर दिया है.

Ujyaro bai
उजियारो बाई का भागीरथ प्रयास
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Published : Apr 10, 2023, 7:13 PM IST

उजियारो बाई का भागीरथ प्रयास

डिंडौरी। जिले का समनापुर ब्लॉक यहां बैगा चक नाम से एक बड़ा इलाका है. इसी बैगा चक में पोंडी नाम का एक गांव है. इस बैगा चक में भारत की एक संरक्षित जनजाति बैगा रहती है, बैगा जनजाति के लोग जंगल में ही रहना पसंद करते हैं. इनकी अपनी सांस्कृतिक पहचान है. इनके रीति रिवाज और रहन-सहन की वजह से इस जनजाति को संरक्षित जनजाति का दर्जा भारत सरकार ने दिया हुआ है.

जब पानी की कमी से पलायन करने लगे लोग: बैगा जिस डिंडोरी के जंगलों में रहते हैं. वह इलाका सदियों से इनका प्राकृतिक निवास रहा है. पहले इस इलाके में घने जंगल हुआ करते थे. इन जंगलों से बैगा जनजाति को अपनी जरूरत का पूरा सामान मिल जाता था. बैगा पूरी तरह से प्राकृतिक जीवन में जीने वाले लोग होते हैं. इनके भोजन में मोटे अनाज कोदो कुटकी रागी जंगली अरहर जैसी चीजें शामिल हैं. वहीं छोटे-छोटे खेतों में ये लोग धान की फसल भी उगा लेते थे. इसके अलावा जंगल में शिकार करके भी इनका भरण पोषण हो जाता था, लेकिन धीरे-धीरे जंगलों की कटाई हुई और प्राकृतिक जंगल काट दिए गए. इसकी वजह से बैगा चक इलाके में भी पानी की कमी होने लगी और बैगा जनजाति के लोगों को पलायन करना पड़ा. बैगा चक इलाके में संकट आया तो सरकार ने पानी बचाने की कुछ सरकारी प्रयास किए, लेकिन सरकार इन दूरदराज इलाकों को पानी जैसी बुनियादी जरूरत मुहैया नहीं करवा पाई.

Ujyaro bai
सब्जियां की खेती करतीं बैगा महिला

उजियारो बाई का भागीरथी प्रयास: कुछ साल पहले उजियारो बाई नाम की एक बैगा महिला ने अपने समाज के लोगों को प्राकृतिक जंगल को बचाने की बात समझाना शुरू किया. उनके साथ एक समाज सेवी भी जुड़े हुए थे. उजियारों की पहल धीरे-धीरे बैगा चक इलाके के कई गांव तक पहुंची. 15 साल के प्रयास के बाद आज इस इलाके में पर्याप्त पानी है. एक सूखी नदी में झरने फूट गए हैं और अब वह साल भर पानी देती है. इन्हीं झरनों की वजह से गांव के कुआं में भी अब पानी आ गया है. पानी आने के बाद बैगा महिलाओं ने अपने छोटे-छोटे खेतों में सब्जी की फसल उगाना शुरू कर दिया है. वहीं छोटे धान के खेतों में अब गुजर-बसर लायक धान होने लगी है. हरियाली होने की वजह से गांव के मवेशियों को चारा मिलने लगा है. कुल मिलाकर इन दूरदराज जंगल में बसे गांव में बैगा जनजाति के लोगों के लिए उनके जीवन यापन से जुड़ी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं. इसलिए अब इस गांव में खुशहाली नजर आने लगी है.

कुछ और खबरें यहां पढ़ें

झरने से निकला पानी, आदिवासियों के चेहरे पर लाया खुशी: शहर से बेहतर बैगा जनजाति के लोग जिस जीवन पद्धति में जीते हैं. उस जीवन पद्धति को शहर में रहने वाले लोग बहुत पैसा खर्च करके भी नहीं अपना सकते. प्रकृति की गोद में कोदो कुटकी जैसा प्राकृतिक आनाज जैविक सब्जियां प्राकृतिक झरनों से निकलता हुआ स्वच्छ पानी अनमोल है. उजियारो बाई का नाम उनके माता-पिता ने ठीक ही रखा था. आज इस तीसरी पास महिला की वजह से इस पूरे इलाके में खुशियां लौट आई हैं.

Ujyaro bai
उजियारो बाई

प्रकृति की गोद में रहते बैगा आदिवासी: आदिवासी जनजाति अपने जंगलों में जितनी खुश रहती है, उतनी शहरों में आकर खुश नहीं हो पाती. कुछ लोग इन्हें पिछड़ा कह देते हैं, लेकिन महंगे रिसोर्ट में जाकर लाखों रुपया खर्च करके शहर का आदमी जो खोजता है. वह चीजें इन आदिवासियों को मुफ्त में मिल जाती हैं. यदि उनकी कीमत कर दी जाए तो वह शहर से महंगा जीवन जी रहे हैं. इसलिए शहरी आदमी प्रकृति के इन निवासियों के साथ छेड़छाड़ ना करें तो बेहतर होगा

उजियारो बाई का भागीरथ प्रयास

डिंडौरी। जिले का समनापुर ब्लॉक यहां बैगा चक नाम से एक बड़ा इलाका है. इसी बैगा चक में पोंडी नाम का एक गांव है. इस बैगा चक में भारत की एक संरक्षित जनजाति बैगा रहती है, बैगा जनजाति के लोग जंगल में ही रहना पसंद करते हैं. इनकी अपनी सांस्कृतिक पहचान है. इनके रीति रिवाज और रहन-सहन की वजह से इस जनजाति को संरक्षित जनजाति का दर्जा भारत सरकार ने दिया हुआ है.

जब पानी की कमी से पलायन करने लगे लोग: बैगा जिस डिंडोरी के जंगलों में रहते हैं. वह इलाका सदियों से इनका प्राकृतिक निवास रहा है. पहले इस इलाके में घने जंगल हुआ करते थे. इन जंगलों से बैगा जनजाति को अपनी जरूरत का पूरा सामान मिल जाता था. बैगा पूरी तरह से प्राकृतिक जीवन में जीने वाले लोग होते हैं. इनके भोजन में मोटे अनाज कोदो कुटकी रागी जंगली अरहर जैसी चीजें शामिल हैं. वहीं छोटे-छोटे खेतों में ये लोग धान की फसल भी उगा लेते थे. इसके अलावा जंगल में शिकार करके भी इनका भरण पोषण हो जाता था, लेकिन धीरे-धीरे जंगलों की कटाई हुई और प्राकृतिक जंगल काट दिए गए. इसकी वजह से बैगा चक इलाके में भी पानी की कमी होने लगी और बैगा जनजाति के लोगों को पलायन करना पड़ा. बैगा चक इलाके में संकट आया तो सरकार ने पानी बचाने की कुछ सरकारी प्रयास किए, लेकिन सरकार इन दूरदराज इलाकों को पानी जैसी बुनियादी जरूरत मुहैया नहीं करवा पाई.

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सब्जियां की खेती करतीं बैगा महिला

उजियारो बाई का भागीरथी प्रयास: कुछ साल पहले उजियारो बाई नाम की एक बैगा महिला ने अपने समाज के लोगों को प्राकृतिक जंगल को बचाने की बात समझाना शुरू किया. उनके साथ एक समाज सेवी भी जुड़े हुए थे. उजियारों की पहल धीरे-धीरे बैगा चक इलाके के कई गांव तक पहुंची. 15 साल के प्रयास के बाद आज इस इलाके में पर्याप्त पानी है. एक सूखी नदी में झरने फूट गए हैं और अब वह साल भर पानी देती है. इन्हीं झरनों की वजह से गांव के कुआं में भी अब पानी आ गया है. पानी आने के बाद बैगा महिलाओं ने अपने छोटे-छोटे खेतों में सब्जी की फसल उगाना शुरू कर दिया है. वहीं छोटे धान के खेतों में अब गुजर-बसर लायक धान होने लगी है. हरियाली होने की वजह से गांव के मवेशियों को चारा मिलने लगा है. कुल मिलाकर इन दूरदराज जंगल में बसे गांव में बैगा जनजाति के लोगों के लिए उनके जीवन यापन से जुड़ी सभी बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं. इसलिए अब इस गांव में खुशहाली नजर आने लगी है.

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झरने से निकला पानी, आदिवासियों के चेहरे पर लाया खुशी: शहर से बेहतर बैगा जनजाति के लोग जिस जीवन पद्धति में जीते हैं. उस जीवन पद्धति को शहर में रहने वाले लोग बहुत पैसा खर्च करके भी नहीं अपना सकते. प्रकृति की गोद में कोदो कुटकी जैसा प्राकृतिक आनाज जैविक सब्जियां प्राकृतिक झरनों से निकलता हुआ स्वच्छ पानी अनमोल है. उजियारो बाई का नाम उनके माता-पिता ने ठीक ही रखा था. आज इस तीसरी पास महिला की वजह से इस पूरे इलाके में खुशियां लौट आई हैं.

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उजियारो बाई

प्रकृति की गोद में रहते बैगा आदिवासी: आदिवासी जनजाति अपने जंगलों में जितनी खुश रहती है, उतनी शहरों में आकर खुश नहीं हो पाती. कुछ लोग इन्हें पिछड़ा कह देते हैं, लेकिन महंगे रिसोर्ट में जाकर लाखों रुपया खर्च करके शहर का आदमी जो खोजता है. वह चीजें इन आदिवासियों को मुफ्त में मिल जाती हैं. यदि उनकी कीमत कर दी जाए तो वह शहर से महंगा जीवन जी रहे हैं. इसलिए शहरी आदमी प्रकृति के इन निवासियों के साथ छेड़छाड़ ना करें तो बेहतर होगा

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