डिंडोरी । जिला मुख्यालय से 23 किलोमीटर दूर रानी अवंती बाई की कर्मभूमि और राजधानी रामगढ़ के निशान आज भी जीवंत हैं. रामगढ़ महल एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित था .जो खमीर नदी के किनारे बसा था. रामगढ़ अमरपुर से महज एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. पहले रामगढ़ मंडला जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1998 में मंडला जिले के विभाजन के बाद रामगढ़ डिंडोरी जिले में शामिल हो गया. 1951 तक डिंडोरी क्षेत्र रामगढ़ के नाम से ही जाना जाता था. आज रामगढ़ अपनी बदहाली पर आंसू रो रहा है. समाज के लोगों का आरोप है कि प्रशासनिक उपेक्षा के चलते ऐसे हालात बने हैं.
रानी अवंती बाई की खंडित मूर्ति से समाज में गुस्सा
रानी अवंती बाई भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली पहली महिला शहीद वीरांगना थी. जो 1857 की क्रांति में अवंती बाई रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थीं. मुक्ति आंदोलन में रामगढ़ की अहम भूमिका थी. मध्यप्रदेश सरकार ने 1988-89 में रानी की याद में यहां एक पार्क का निर्माण कराया था. पार्क में घोड़े पर सवार रानी अवंती बाई की सीमेंट की भव्य प्रतिमा स्थापित की गई थी. समय के साथ-साथ प्रतिमा खंडित हो गई. हर साल 16 अप्रैल को रानी अवंती बाई के जन्मदिन और 20 मार्च को उनके बलिदान दिवस पर रानी की याद में भव्य आयोजन होते रहे हैं.
कब खुलेगी प्रशासन की नींद ?
लोधी समाज के वरिष्ठ जानकार महेंद्र लल्ला ठाकुर ने बताया कि रानी अवंती बाई की मूर्ति लाने के दौरान खंडित हो गई थी. जिसका आज तक अनावरण नहीं किया जा सका है. पांच लाख रुपए की लागत से भव्य पार्क भी तैयार किया गया था. रखरखाव के अभाव में वह भी अब दम तोड़ रहा है. रानी अवंती बाई के स्मारक की बात करें, तो वह भी अब प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहा है. इससे लोधी समाज में काफी गुस्सा है.
रानी अवंती बाई ने लिया अंग्रेजों से लोहा
रानी अवंती बाई का जन्म सिवनी के ग्राम मंत्री में जमीदार राव जोहार सिंह के घर 16 अप्रैल 1821 में हुआ था. अवंतीबाई विवाह के समय 17 साल की थीं. 1851 में राजा विक्रमादित्य ने गद्दी संभाली थी. इनके दो पुत्र थे रमन सिंह और कुंवर शेर सिंह. दोनों पुत्र छोटे ही थे कि राजा बीमार हो गए. अब राज्य की जिम्मेदारी रानी पर आ गई. यह खबर पाकर अंग्रेजों ने रामगढ़ राज्य पर कोर्ट ऑफ़ वार्ड कार्रवाई की. राज्य के प्रशासन के लिए सरबराह कार नियुक्त कर शेख मोहम्मद और मोहम्मद अब्दुल्ला को रामगढ़ भेज दिया. रानी ने इसे राज्य का अपमान समझा और सरबराहकारों को बाहर खदेड़ दिया. इसी बीच अचानक राजा का निधन हो गया और रानी की परेशानी बढ़ती चली गई.
अंग्रेजों पर भारी पड़ीं 'रानी'
राजा के निधन के बाद 1857 की क्रांति महाकौशल क्षेत्र तक फैल चुकी थी. राजा और जमींदारों ने अंग्रेजों का व्यापक विरोध किया. रामगढ़ के सेनापति ने भुआ बिछिया में बने अंग्रेजों के थाने पर चढ़ाई कर उसे जीत लिया. रानी के सिपाहियों ने घुघरी पर कब्जा जमाया . यह विद्रोह रामगढ़ में आग की तरह फैल गया. अंग्रेज विद्रोह को दबाने में असफल रहे. इसके बाद 23 नवंबर 1857 को ग्राम खैरी मंडला के पास अंग्रेजों और रानी में जोरदार युद्ध हुआ. इसमें आसपास के जमींदारों ने रानी का साथ दिया. युद्ध में अंग्रेजों की करारी हार हुई .रानी अवंती बाई ने दिसंबर 1857 से फरवरी 1858 तक गढ़ा मंडला पर राज किया.
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जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आईं रानी अवंती बाई
रानी से हारने के बाद अंग्रेजों ने फिर से तैयारी की. जनवरी 1858 को घुघरी पर अंग्रेजों ने हमला बोल दिया और उस पर कब्जा कर लिया. मार्च 1858 में अंग्रेजों ने रामगढ़ को घेर लिया. अंग्रेजों ने रामगढ़ के महल को बहुत नुकसान पहुंचाया. इस युद्ध में रीवा नरेश ने अंग्रेजों का साथ दिया था.रानी अवंती बाई शाहपुर के पास देवहार घर चली गईं. यहां ऊंची पहाड़ी पर रानी ने मोर्चा बनाया. वहीं रहकर रानी ने गोरिल्ला युद्ध नीति अपनाई. हालांकि तब तक अंग्रेजों ने रानी को चारों तरफ से घेरना शुरु कर दिया था. एक बार फिर रानी और अंग्रेजों के बीच घमासान युद्ध हुआ. शाहपुर के पास बालपुर गांव में 20 मार्च 1958 को रानी को अंग्रेजों ने घेर लिया. वीरांगना दुर्गावती का अनुकरण करते हुए रानी अवंती बाई ने खुद को तलवार मार ली और जान दे दी. इस तरह वो जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आईं.