डिंडौरी। मां तुम कहां हो, मां मुझे अपने सीने से लगा लो, मैं तुम्हारे आंचल की छांव में ही रहना चाहती हूं, तुम्हारी अंगुली पकड़कर ही चलना चाहती हूं. मुझे इस तरह छोड़कर मत जाओ मां. मां, मैं बेटी हूं तो इसमें मेरा क्या कसूर. अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ती नवजात मन में यही सोच रही होगी कि आखिर उसका कसूर क्या था, जो अपने गर्भ में 9 महीने तक पालने वाली मां जन्म के बाद 9 दिन भी साथ नहीं रखी और उसे बेसहारा छोड़कर चली गयी.
सुंदरता की चाहत में मां ने अपने जिगर के टुकड़े को बेगाना किया या बेटी पैदा हो जाने की वजह से उसने दूध पिलाने से मना कर दिया, वजह चाहे जो भी हो, लेकिन ये कहानी दिल को झकझोर जाती है, कोई मां इतनी निर्दयी कैसे हो सकती है कि जन्म के ठीक बाद उसे उसकी दादी के पास छोड़ गयी. महिला की मां ने ही उसे बताया था कि यदि वह अपनी बेटी को दूध पिलाती है तो उसके चेहरे की रंगत चली जाएगी. जिसके चलते वह अपना दूध निकालकर फेंक तो देती थी, पर बेटी को नहीं पिलाती थी.
डिंडौरी के बिलाई खार गांव की वृद्धा अपनी एक माह की पोती को लेकर अस्पताल में भर्ती है. 34 दिन की मासूम तेज बुखार से तप रही है, दस्त से परेशान है. डॉक्टर बताते हैं कि मां का दूध नहीं पीने से ही उसकी ये हालत हुई है.
वृद्ध महिला के मुताबिक उसका बेटा और मासूम की मां बिना शादी के साथ रह रहे थे. जिसके चलते मासूम के नाना से कई बार विवाद भी हुआ था. जिसमें मासूम के नाना ने उसके पिता पर वार कर जख्मी भी कर दिया था. जो जख्मी हालत में घर में पड़ा है.
बच्चे के शरीर पर एक खरोंच भर से छलनी हो जाने वाला मां का सीना इतना पत्थर कैसे हो गया, जो अपनी सुंदरता के लिए बेटी को बेसहारा छोड़ गयी. जब मां ही पत्थर दिल हो जाएगी तो कैसे बचेंगी बेटियां, ऐसे में तो केंद्र सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान रास्ते में ही धूल फांकता रह जायेगा. ईटीवी भारत मध्यप्रदेश