धार। आदिवासी समाज पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी संस्कृति और परंपराओं को सहेजने का काम कर रहे हैं. इसका जीता जागता उदाहरण होलिका दहन के पूर्व मनाए जाने वाला भगोरिया पर्व है. आदिवासी समाज भगोरिया को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाता है.
भगोरिया के दौरान आदिवासी समाज के लोग मस्ती में झूमते हैं, बड़ी-बड़ी मांदलों को बजाते हैं. बांसुरी और थाली की धुन पर हर कोई मदमस्त होकर अपने पारंपरिक नृत्य को करते हैं. मांदल के आसपास घेरा बनाकर कुर्राटी देखकर लोग झूम उठते हैं. भगोरिया के दौरान आदिवासी मान्यताओं के आधार पर उस भगोरिया हाट से आदिवासी समाज के लोग होलिका दहन के दिन पूजा करने के लिए विशेष पूजन सामग्री खरीदते हैं.
एक जैसी तैयार होती हैं महिलाएं
भगोरिया में विशेषकर आदिवासी समाज की महिलाएं और युवतियां एक कलर की साड़ियां पहनती हैं और विशेष चांदी के आभूषण पहनकर मेले में शामिल होती हैं. एक जैसी साड़ियां और चांदी के आभूषणों से आदिवासी समाज की महिलाओं की सुंदरता निखर आती है.
मिर्ची के भजिए होते हैं खास
भगोरिया के दौरान विशेषकर आदिवासी क्षेत्र में व्यंजन के तौर पर मिर्ची के भजिए और गुड़ और शक्कर की जलेबी की बिक्री खूब होती है. वहीं बाजार में शक्कर के हार-कंगन भी बड़ी मात्रा में बिकते हैं, जिन्हें आदिवासी समाज के लोग खरीदकर होलिका की विशेष पूजा में रखते हैं और उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं.
राजनेता भी करते हैं आदिवासियों का स्वागत
आदिवासी समाज के लोग पौराणिक मान्यताओं के आधार पर भगोरिया का आयोजन करते हैं. इस दिन भगोरिया हाट में हजारों की संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों के आदिवासी समाज के लोग पहुंचते हैं. इस दौरान राजनीतिक पार्टियों के नेता भी आदिवासियों का स्वागत करते हैं.
परिणय का त्योहार नहीं है भगोरिया
भगोरिया को लेकर यह धारणा है कि इस दौरान आदिवासी समाज की युवतियां और युवक एक-दूसरे को पसंद करते हैं, पान खिलाते हैं, गुलाल लगाते हैं और उसके बाद भाग कर शादी रचाते हैं. इस तरह की धारणा दुष्प्रचार के कारण फैलती ही जा रही है. इस प्रकार का कोई गलत काम भगोरिया के दौरान नहीं होता है, बल्कि भगोरिया तो होलिका की पूजा के लिए विशेष पूजन सामग्री के लिए आयोजित किया जाने वाला आदिवासी समाज का पारंपरिक हाट है.