देवास। मध्यप्रदेश विधानसभा में एक ऐसी विधानसभा सीट भी है, जहां के मतदाताओं ने उस क्षेत्र के राजा को ही नकार दिया. देवास जिले की बागली विधानसभा सीट से बागली राजा छत्रसिंह दो बार चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन दोनों ही बार सफलता हाथ नहीं लगी. इसमें रोचक तथ्य यह है कि उन्हें हराने वाले उनके ही मित्र कैलाश जोशी थे, जो बाद में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने. बागली सीट पर बीजेपी की इतनी जबरदस्त पकड़ रही कि पिछले 61 सालों के दौरान इस सीट पर 13 विधानसभा चुनाव हुए, लेकिन कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक बार ही यह सीट आ सकी.
जिन्हें चुनाव में उतारा, उसी से हारे चुनाव: बागली विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ था, लेकिन उसके पहले 1960 में बागली में राजपूत क्लब का गठन किया गया. इस क्लब में बागली रियासत के राजा छत्रसिंह को सचिव बनाया गया. इस क्लब में नियम रखा गया कि क्लब का कोई भी पदाधिकारी चुनाव नहीं लड़ सकेगा. लेकिन यदि कोई राजपूत चुनाव मैदान में उतरा तो क्लब उसकी पूरी मदद करेगा. इस नियम की वजह से राजा छत्रसिंह चाहते हुए भी चुनाव मैदान में नहीं उतर पाए और उन्होंने अपने मित्र कैलाश जोशी को जनसंघ से बागली का उम्मीदवार घोषित कर दिया. कैलाश जोशी के खिलाफ कांग्रेस के हेत सिंह चुनाव मैदान में उतरे.
- 1962 में इस सीट पर हुए पहले चुनाव में कैलाश जोशी ने 6 हजार 352 वोटों से जीत दर्ज की. इस चुनाव के बाद इस सीट पर कैलाश जोशी और बीजेपी की पकड़ इतनी मजबूत हो गई कि उसे बाद में राजा छत्रसिंह भी नहीं हिला सके.
- राजा छत्रसिंह की पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्व माधवराजव सिंधिया से मित्रता थी. सिंधिया के आग्रह को छत्रसिंह ठुकरा नहीं सके और वे कांग्रेस में शामिल हो गए. इसके बाद वे कांग्रेस के टिकट पर 1980 और 1985 में बागली विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन कैलाश जोशी की चुनावी जमीन को वे हिला नहीं सके और चुनाव दोनों चुनाव वे हार गए.
- राजा छत्रसिंह की बेटी भावना शाह खंडवा की महापौर रही हैं, जो शिवराज सरकार में वन मंत्री विजय शाह की पत्नी हैं.
61 सालों में सिर्फ एक चुनाव जीत सकी कांग्रेस: बागली विधानसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने लगातार 8 विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. 1993 तक वे लगातार चुनाव जीतते रहे. हालांकि 1998 में कैलाश जोशी की जीत पर ब्रेक लग गया. कांग्रेस के श्याम होलानी ने उन्हें 6665 वोटों से शिकस्त दी. हालांकि 1998 के चुनाव के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी की सियासी जमीन उनके बेटे दीपक जोशी ने संभाली और 2003 में फिर इस सीट को बीजेपी की झोली में डाल दिया. हालांकि 2008 में यह विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई. इसके बाद भी बीजेपी की पकड़ इस सीट पर कमजोर नहीं हुई. 2008 और 2013 का चुनाव यहां से बीजेपी के चंपालाल देवड़ा ने जीता, जबकि 2018 में बीजेपी के ही पहाड़ सिंह कन्नोज ने इस सीट पर जीत दर्ज की.