दतिया। एमपी में 28 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए भांडेर विधानसभा सीट भी शामिल है, जो ग्वालियर चंबल की सबसे हाई प्रोफाइल सीट मानी जा रही है, यहां ज्योतिरादित्य सिंधिया की कट्टर समर्थक रक्षा सिरोनिया का मुकाबला कांग्रेस के बड़े नेता फूल सिंह बरैया से है. खास बात यह है उपचुनाव के दौरान फूल सिंह बरैया के कई फर्जी वीडियो एडिट कर सोशल मीडिया पर वायरल किए गए और भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया गया जिससे राजनीति और नफरत और तेज हो गई है आइए जानते हैं इस सीट से जुड़े खास आंकड़े और पहलू.
एक बड़े लंबे अरसे से अनुसूचित जाति के लिए भांडेर सीट आरक्षित है, इस चुनाव में दल बदले, लेकिन चेहरे वहीं पुराने हैं, जिसमें कांग्रेस पार्टी की लंबी सेवा करने के बाद इस बार टिकट न मिलने से नाराज पूर्व गृह मंत्री रहे महेंद्र बौद्ध ने मैदान में हैं. महेंद्र बौद्ध कांग्रेस पार्टी को छोड़कर बीएसपी से भांडेर में एक बार फिर किस्मत आजमाते हुए दिखाई दे रहे हैं.
हाईप्रोफाइल सीट पर ये हैं प्रत्याशी
भाजपा से कांग्रेस की बाघी रक्षा सिरोनिया प्रत्याशी हैं तो कांग्रेस पार्टी ने फूल सिंह बरैया पर दांव खेला है. खास बात यह है कि इस चुनाव में 4 पूर्व विधायक हैं, जिनमें तीन राष्ट्रीय पार्टी से हैं, कांग्रेस पार्टी से फूल सिंह बरैया 1998 में भांडेर से विधायक रहे तो वहीं भाजपा की प्रत्याशी रक्षा सिरोनिया 2018 में भांडेर से विधायक रहीं, जिन्होंने हाल में ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ इस्तीफा देते हुए भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है तो वहीं बीएसपी पार्टी से पूर्व गृहमंत्री महेंद्र बौद्ध सेवड़ा से पूर्व विधायक रहे हैं और चौथे प्रत्याशी क्षेत्रीय पार्टी अघाड़ी दल से चुनाव लड़ रहे रामदयाल प्रभाकर हैं जो कि सेवड़ा से विधायक रह चुके हैं.
त्रिकोणीय मुकाबला
इस मुकाबले की बात करें तो इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होता हुआ दिखाई दे रहा है. सबसे बड़ी बात यह है कि इतिहास को उठाया जाए तो कभी भी भांडेर के वोटरों ने मतदाताओं ने एक बार के जीते हुए प्रत्याशी को कभी दोबारा यहां से नहीं जिताया है और ना ही उस पर कभी भरोसा दिखाया है. अब ऐसे में भाजपा की बड़ी मुश्किल यही है कि भाजपा से उम्मीदवार रक्षा सिरोनिया यहां फिर से चुनावी मैदान में हैं, जिसका पूरा फायदा अन्य प्रत्याशी को मिल सकता है, इसलिए यहां चुनावी मुकाबला और भी दिलचस्प होता हुआ दिखाई दे रहा है.
भांडेर सीट पर राजनीति एक नजर में
भांडेर विधानसभा सीट भाजपा के पूर्व विधायक घनश्याम पिरौनिया के प्रभाव वाली सीट मानी जाती है, क्योंकि 2018 में घनश्याम पिरौनिया के द्वारा लगातार पांच साल क्षेत्र की जनता से जुड़ाव और सक्रियता की बड़ी वजह आमजन में अच्छी खासी पकड़ है, लेकिन 2018 में भाजपा पार्टी के द्वारा उनका टिकट काट दिए जाने के बाद वर्तमान में गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा गुट की खास समर्थक माने जाने वाली रजनी प्रजापति को 2018 में टिकट मिला था.
रजनी प्रजापति को कांग्रेस की रक्षा सिरोनिया ने 39 हजार से अधिक वोटों से बुरी तरह हराया था. हालांकि उपचुनाव में पूर्व विधायक घनश्याम पिरौनिया के द्वारा भी दावेदारी तो की गई लेकिन पार्टी संगठन के वरिष्ठ नेतृत्व ने कांग्रेस पार्टी से आए हुए 22 विधायकों पर दांव लगाया है और यही वजह रही कि इस उपचुनाव में रक्षा सिरोनिया को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया. लेकिन पूर्व विधायक घनश्याम पिरौनिया का क्षेत्र में आमजन से और वोट बैंक में अच्छा खासा दखल रखने का माद्दा रखते हैं, यही कारण पार्टी के लिए बराबर क्षेत्र में कार्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं.
हालांकि भांडेर विधानसभा सीट पर भाजपा का अपना कब्जा रहा है. लेकिन 2018 में कांग्रेस से चुनाव लड़ी रक्षा सिरोनिया ने रजनी प्रजापति को हराकर यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी और भाजपा के लगातार जीतते आ रहे मिथक को तोड़ दिया गया.
वहीं भांडेर विधानसभा सीट पर अगर जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो जातिगत गणित को देखें तो सबसे ज्यादा दखल जाटव हरिजन समाज, ब्राह्मण, यादव ,दांगी समाज, गुर्जर, कुशवाहा, मुस्लिम, साहू और बरार समाज की अहम भूमिका मानी जाती है और निर्णायक भूमिका में रहे हैं, साथ ही लोहार, सेन, परिहार, समाज आदिवासी समाज भी एक हद तक चुनाव को प्रभावित करता है. लेकिन इस बार बदले हुए हालात हो रहा उपचुनाव दोनों दलों के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है.
दलगत आधार पर यह सीट लगातार 15 साल से भाजपा के खाते में रही और भाजपा का गढ़ रही है-
- भांडेर विधानसभा से पहले 1957 में राजाराम सिंह कांग्रेस से विधायक रहे.
- 1962 में फिर से राजाराम सिंह कांग्रेस से विधायक रहे.
- 1967 में जनसंघ से किशोरी लाल हंस ने कांग्रेस से सीट छीन ली.
- 1972 में जनसंघ ने दबदबा कायम रखते हुए चतुर्भुज ने जीत दर्ज की.
- 1977 में जनता दल के नंदलाल सिरोनिया जीते.
- 1980 में कांग्रेस के कमलापत आर्य विधायक बने.
- 1985 में कांग्रेस के राधेश्याम चंदसोरिया जीते.
- 1990 में भाजपा के पूरन सिंह पलैया ने जीत का परचम लहराया.
- 1993 में एक बार फिर कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा किया और केसरी चौधरी ने जीत दर्ज की.
- 1998 में बसपा के फूल सिंह बरैया जीते.
- 2003 में भाजपा के कमलापत आर्य ने सीट पर कब्जा किया.
- 2008 में भाजपा के आसाराम अहिरवार जीते.
- 2013 में ही भाजपा के घनश्याम पिरौनिया ने जीत दर्ज करते हुए कब्जा बरकरार रखा.
कुल मिलाकर चेहरे बदलते रहे, लेकिन ज्यादातर बार भाजपा ने इस सीट पर कब्जा जमाया. 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव में उतरी कांग्रेस की रक्षा सिरोनिया ने नरोत्तम मिश्रा की खास समर्थक रजनी प्रजापति को बुरी तरह हराकर जीत कांग्रेस की झोली में डाल दी और भाजपा के गढ़ में सेंध लगा दी, अब इस बार दोनों दलों के लिए बड़ी ही चुनौती है. कांग्रेस ने दमदार दलित नेता फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है, और भाजपा के सामने बड़ा चैलेंज है. सिंधिया के साथ शामिल हुई कांग्रेस की बागी रक्षा सिरोनिया के अवसरवादी और धोखेबाजी टैग को मिटाकर पार्टी के भीतर अंतर्विरोध को थामकर अपने दबदबे को कायम रखना है.
विधानसभा क्षेत्र में मतदाता संख्या
- कुल मतदाता-174793
- पुरुष मतदाता-93639
- महिला मतदाता-81160
- नए युवा मतदाता-4000
क्षेत्रीय समीकरणों को भी समझिए
भांडेर इलाके में कोई बड़ा उद्योग नहीं है, नतीजा लोगों को पलायन करना पड़ता है. क्षेत्र में हजारों लोग बेरोजगार हैं बाहरी शहरों में जाकर रोजी-रोटी चलाते हैं, अवैध उत्खनन इलाके की सूरत और सेहत दोनों बिगड़ी हुई है. यहां क्रेशर और रेत का अवैध उत्खनन सालों से बड़ी चुनौती बना हुआ है.
कई बार यह चुनावी मुद्दा भी बना, लेकिन कोई भी नेता अवैध उत्खनन को बंद नहीं करा पाया. मूलभूत सुविधाओं की बात करें तो शिक्षा को लेकर इलाके में बुरा हाल है. स्कूली बच्चे अध्यापकों का इंतजार करते-करते घर वापस लौट जाते हैं.
शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हैं, परिवहन को लेकर हालात यह है कि शाम 5 बजे के बाद यहां से कहीं पर भी जाने के लिए वाहन नहीं हैं. कोई साधन उपलब्ध नहीं हैं, जबकि भांडेर से दतिया जिला मुख्यालय महज 28 से 30 किलोमीटर है.
वाहनों की कमी के कारण लोगों को मजबूरी के चलते वाहनों की छतों पर सफर करना पड़ता है.वहीं जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा हुआ है. छोटी से छोटी बीमारी के इलाज के लिए बाहर जाना पड़ता है और तो और सड़कों का हाल तो ऐसा है कि बारिश के दिनों में लोगों को अपनी जान पर खेलकर गहरे पानी में डूबकर निकलना पड़ता है. पिछले कई सालों में यहां बारिश में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. ग्रामीण इलाकों में कोई भी सड़क ठीक-ठाक नहीं कही जा सकती.