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सांप पकड़ने वाले नाथ समुदाय के सामने पेट पालने की समस्या, अब सरकार से आस

एक दौर था जब नागपंचमी वाले दिन सपेरे सांपों का करतब दिखाया करते थे, लेकिन जब से सरकार ने सांपों को पकड़ने पर प्रतिबंध लगाया है, तब से इनके सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है. अब इन्हें शासन-प्रशासन से उम्मीद है कि वो उन्हें रोजगार के अन्य साधन मुहैया कराएं और इसमें उनकी मदद करें.

सांप पकड़ने के सामने रोजी रोटी का संकट
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Published : Aug 5, 2019, 9:25 AM IST

दमोह। जिले के किल्लाई नाका के पास खाली जमीन पर अस्थायी आशियाना बनाकर रह रहे लोग नाथ समुदाय से आते हैं. ये पहले सपेरे का काम करते थे, लेकिन जब से सरकार ने सांप पकड़ने पर प्रतिबंध लगाया है, तब से इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. सपेरे ने बताया कि यह पारंपारिक काम खत्म हो गया है. अब हम मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालते हैं.

सांप पकड़ने वाला नाथ समुदाय

कानून की नजर में सांपों को पकड़ना और उनका प्रदर्शन करना अपराध है. जिसके बाद अब ये मजदूरी के लिए शहर की ओर पलायन कर रहे हैं. वन विभाग की ओर से पहले इन्हें कुछ सहायता राशि मिलती थी, लेकिन कई सालों से वह भी बंद है.

वहीं सांपों को पकड़कर इनके खेल को प्रतिबंधित करने के बाद इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए और रोजगार का अन्य साधन मुहैया कराने के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया, जिसके कारण उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. अब सपेरों का कहना है कि मजदूरी से इन्हें इतनी आमदनी नहीं होती है कि यह अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें और सरकार इनके रोजी-रोटी के लिए कुछ नहीं कर रही है.

सपेरे ने बताया कि सांप पकड़ने पर भी इतना कुछ नहीं मिलता है कि वह अपने बाल बच्चों को लालन-पालन ठीक से कर सकें. उन्होंने कहा कि सांपों को पकड़ने का काम इनका पुश्तैनी काम हुआ करता था. किसी जमाने में ये नाग-नागिन का मजमा लगाते थे, जिस पर अब प्रतिबंध है. सपेरे ने बताया कि इन लोगों ने नाग पंचमी के दिन घर-घर जाना बंद कर दिया है.

सांपों को पकड़कर खेल दिखाना गलत बात है, क्योंकि सांप भी जीव है और उसका शोषण बंद होना चाहिए था, लेकिन अब ये सपेरे सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें कुछ आर्थिक सहायता और रोजगार के अन्य साधन प्रशिक्षित कर उपलब्ध कराए जाएं.

नोट- ETV BHARAT सांप के खेल दिखाने या किसी भी तरह के शोषण का विरोध करता है.

दमोह। जिले के किल्लाई नाका के पास खाली जमीन पर अस्थायी आशियाना बनाकर रह रहे लोग नाथ समुदाय से आते हैं. ये पहले सपेरे का काम करते थे, लेकिन जब से सरकार ने सांप पकड़ने पर प्रतिबंध लगाया है, तब से इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. सपेरे ने बताया कि यह पारंपारिक काम खत्म हो गया है. अब हम मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालते हैं.

सांप पकड़ने वाला नाथ समुदाय

कानून की नजर में सांपों को पकड़ना और उनका प्रदर्शन करना अपराध है. जिसके बाद अब ये मजदूरी के लिए शहर की ओर पलायन कर रहे हैं. वन विभाग की ओर से पहले इन्हें कुछ सहायता राशि मिलती थी, लेकिन कई सालों से वह भी बंद है.

वहीं सांपों को पकड़कर इनके खेल को प्रतिबंधित करने के बाद इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए और रोजगार का अन्य साधन मुहैया कराने के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया, जिसके कारण उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. अब सपेरों का कहना है कि मजदूरी से इन्हें इतनी आमदनी नहीं होती है कि यह अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें और सरकार इनके रोजी-रोटी के लिए कुछ नहीं कर रही है.

सपेरे ने बताया कि सांप पकड़ने पर भी इतना कुछ नहीं मिलता है कि वह अपने बाल बच्चों को लालन-पालन ठीक से कर सकें. उन्होंने कहा कि सांपों को पकड़ने का काम इनका पुश्तैनी काम हुआ करता था. किसी जमाने में ये नाग-नागिन का मजमा लगाते थे, जिस पर अब प्रतिबंध है. सपेरे ने बताया कि इन लोगों ने नाग पंचमी के दिन घर-घर जाना बंद कर दिया है.

सांपों को पकड़कर खेल दिखाना गलत बात है, क्योंकि सांप भी जीव है और उसका शोषण बंद होना चाहिए था, लेकिन अब ये सपेरे सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें कुछ आर्थिक सहायता और रोजगार के अन्य साधन प्रशिक्षित कर उपलब्ध कराए जाएं.

नोट- ETV BHARAT सांप के खेल दिखाने या किसी भी तरह के शोषण का विरोध करता है.

Intro:नाग पंचमी पर विशेष

अभाव भरी जिंदगी जीने मजबूर है नाथ संप्रदाय के लोग

लोगों के घरों से जहरीले सांपों को पकड़ने वालों की जिंदगी जहर से भी बदतर

न रहने को छत न खाने को भोजन कानून बनने पर सांपों के प्रदर्शन पर भी लगी रोक

सपेरों के बच्चे नहीं जाते स्कूल सांपों के साथ खेलते हैं खेल

दमोह. जिला मुख्यालय पर रहने वाले नाथ संप्रदाय के लोग अभाव का जीवन जी रहे हैं. यह लोग जिला मुख्यालय के अनेक गांव में निवास करते हैं. लेकिन रोजगार की तलाश में अब दमोह आकर रहने लगे हैं. इसके बाद भी इनका जीवन सुधर नहीं पाया है. यही कारण है कि दो वक्त की रोटी के लिए यह लोग मेहनत मजदूरी करने को मजबूर होकर अपना मूल काम धंधा छोड़ रहे हैं. इन सपेरों का कहना है कि सांप पकड़ने का धंधा अब मंदा हो चला है. वही सांप के खेल खिलाने पर कानून बन जाने के कारण अब वे दो वक्त की रोटी के लिए दूसरे साधनों पर निर्भर हो गए हैं.


Body:दमोह जिला मुख्यालय के किल्लाई नाका के पास खाली पड़ी भूमि पर पन्नी की झोपड़ी बनाकर रहने वाले नाथ समुदाय के लोग सपेरे कहे जाते हैं. नाग पंचमी के पहले इन सपेरों में उत्साह तो नजर आता है लेकिन उनका कहना है कि कानून की नजर में सांपों को पकड़ना और उनका प्रदर्शन करना अपराध है. यही कारण है कि वह लोग साल भर के अपने एक त्यौहार को नहीं मना पाते. पुरानी परंपरा का निर्वहन भी नहीं कर पाते. अब बे शहर में आकर मजदूरी करके जीवन यापन कर रहे हैं. वन विभाग की ओर से पहले इन लोगों को कुछ राशि मिला करती थी. लेकिन कई सालों से वह भी बंद हो गई. जिससे अब वे लोग परेशान हैं. घर का हर एक सदस्य मेहनत मजदूरी करता है. तब कहीं जाकर इनका पेट भर पाता है. इनके घरों में रहने वाले बच्चे स्कूल नहीं जाते. बच्चों का कहना है कि वे सब लोग सांपों के साथ ही खेलते हैं, क्योंकि कुछ सांप जो उनके बड़े बुजुर्ग पकड़कर लाते हैं, वह घर में ही रहते हैं और वे लोग उन सांपों को खिलौने के रूप में खेलते हैं. हालांकि नाथ संप्रदाय के लोग यह मानते हैं कि अब वैसा काम नहीं रहा जैसा पहले था. इस कारण से यह लोग दो वक्त की रोटी के लिए भी परेशान होते हैं.

बाइट - रमेश नाथ सपेरा

बाइट - शिवा नाथ सपेरा

बाइट - मुकरजा सपेरा


Conclusion:नाग पंचमी के अवसर पर इन सपेरों को लोग अपने घरों में बुलाते हैं. इन सपेरों के साथ आने वाले नाग देवता का पूजन करते हैं. पूजन करने के बाद एक निश्चित राशि इन सपेरों को देते हैं, जिससे इनका जीवन यापन होता है. लेकिन वन अमले की ओर से इन पर नजर रखी जाती है, और सांपों को बंधक बनाने और उनका प्रदर्शन करने के चलते उन पर कार्रवाई की जाती है. लेकिन मौजूदा सरकार है इनके जीवन को बदलने के लिए कोई कदम नहीं उठाती. यही कारण है कि यह लोग अभाव का जीवन जीने मजबूर हो रहे हैं.

आशीष कुमार जैन
ईटीवी भारत दमोह
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