दमोह। जिले के किल्लाई नाका के पास खाली जमीन पर अस्थायी आशियाना बनाकर रह रहे लोग नाथ समुदाय से आते हैं. ये पहले सपेरे का काम करते थे, लेकिन जब से सरकार ने सांप पकड़ने पर प्रतिबंध लगाया है, तब से इन लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. सपेरे ने बताया कि यह पारंपारिक काम खत्म हो गया है. अब हम मजदूरी करके अपने बच्चों का पेट पालते हैं.
कानून की नजर में सांपों को पकड़ना और उनका प्रदर्शन करना अपराध है. जिसके बाद अब ये मजदूरी के लिए शहर की ओर पलायन कर रहे हैं. वन विभाग की ओर से पहले इन्हें कुछ सहायता राशि मिलती थी, लेकिन कई सालों से वह भी बंद है.
वहीं सांपों को पकड़कर इनके खेल को प्रतिबंधित करने के बाद इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने के लिए और रोजगार का अन्य साधन मुहैया कराने के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया, जिसके कारण उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. अब सपेरों का कहना है कि मजदूरी से इन्हें इतनी आमदनी नहीं होती है कि यह अपने बच्चों को स्कूल भेज सकें और सरकार इनके रोजी-रोटी के लिए कुछ नहीं कर रही है.
सपेरे ने बताया कि सांप पकड़ने पर भी इतना कुछ नहीं मिलता है कि वह अपने बाल बच्चों को लालन-पालन ठीक से कर सकें. उन्होंने कहा कि सांपों को पकड़ने का काम इनका पुश्तैनी काम हुआ करता था. किसी जमाने में ये नाग-नागिन का मजमा लगाते थे, जिस पर अब प्रतिबंध है. सपेरे ने बताया कि इन लोगों ने नाग पंचमी के दिन घर-घर जाना बंद कर दिया है.
सांपों को पकड़कर खेल दिखाना गलत बात है, क्योंकि सांप भी जीव है और उसका शोषण बंद होना चाहिए था, लेकिन अब ये सपेरे सरकार से उम्मीद लगाए बैठे हैं कि उन्हें कुछ आर्थिक सहायता और रोजगार के अन्य साधन प्रशिक्षित कर उपलब्ध कराए जाएं.
नोट- ETV BHARAT सांप के खेल दिखाने या किसी भी तरह के शोषण का विरोध करता है.