दमोह। मध्यप्रदेश दौरे के दूसरे दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद आज दमोह पहुंचे. यहां उन्होंने जिले के सिंग्रामपुर में आयोजित जनजातीय सम्मेलन में शिरकत की. उन्होंने रानी दुर्गावती की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित कर सिंगौरगढ़ किले के रिनोवेशन और 26 करोड़ की लागत से होने वाले विकास कार्यों की आधारशिला रखी. इस दौरान कार्यक्रम में राष्ट्रपति के साथ राज्यपाल आंनदी बेन पटेल, सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री प्रह्लाद पटेल और केंद्रीय इस्पात राज्यमंत्री भी मौजूद रहे.
मेघावी छात्रों को किया सम्मानित
जनजातीय सम्मेलन में राष्ट्रपति ने मेघावी चार छात्रों को रानी दुर्गावती पुरस्कार से सम्मानित किया. इस दौरान सागर की छात्रा सारिका ठाकुर को भी सम्मानित किया गया और 51 हजार रुपये की राशि से दी गई.
मैं रानी दुर्गावती को देवी कहता हूं : राष्ट्रपति
जनजातीय सम्मेलन और शिलान्यास कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि 'मैंने प्रह्लाद पटेल से पूछा कि जबलपुर से दमोह कितना दूर है? मैंने उनसे कहा कि आपके जिले में जनजतीय लोग अधिक हैं और फिर मैंने खुद ही दमोह आने का कार्यक्रम प्रह्लाद पटेल को बताया. 'उन्होने कहा कि पूर्व पीएम अटल बिहारी का मुझे आज स्मरण हो रहा है, अटल बिहारी वाजपेयी ने भारत सरकार में जनजातीय आयोग का गठन किया था और फिर जनजातीय ट्राइबल मिनिस्ट्री बनी, अटल बिहारी की सोच सरानीय थी.'
साथ ही उन्होंने रानी दुर्गावती के बारे में कहा कि 'मुझे प्रसन्नता इस बात की है कि मैंने रानी दुर्गावती की मूर्ति पर फूल चढ़ाए. दमोह के घर-घर में वीरगाथा सुनाई जाती है.'
जनजातीय समुदायों ने दिया स्वाधीनता संग्राम में योगदान
राष्ट्रपति ने कहा कि 'विभिन्न जनजातीय समुदायों ने हमारे स्वाधीनता संग्राम में गौरवशाली योगदान दिया है. हमारे वे जनजातीय शहीद, केवल स्थानीय रूप से ही नहीं पूजे जाते हैं बल्कि पूरे देश में उन्हें सम्मान के साथ याद किया जाता है. हम सबको यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि आदिवासी समुदाय का कल्याण तथा विकास पूरे देश के कल्याण और विकास से जुड़ा हुआ है. इसी सोच के साथ केंद्र एवं राज्य की सरकारों द्वारा जनजातियों के आर्थिक व सामाजिक विकास के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही हैं.'
'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के 6 नए मण्डलों का सृजन'
मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 6 नए मण्डलों का सृजन किया है. इन नए मण्डलों में जबलपुर मण्डल भी शामिल है जिसका आज ही शुभारंभ हुआ है. जनजातीय समुदायों में परंपरागत ज्ञान का अक्षय भंडार संचित है. मुझे बताया गया है कि मध्य प्रदेश में ‘विशेष पिछड़ी जनजाति समूह’ में शामिल बैगा समुदाय के लोग परंपरागत औषधियों व चिकित्सा के विषय में बहुत जानकारी रखते हैं.
आदिवासियों को धरती-पुत्र कहा जाता है: राज्यपाल
इस जनजातीय सम्मेलन में राज्यपाल आंनदी बेन भी शामिल हुई. इस दौरान उन्होंने अपना संबोधन दिया. राज्यपाल ने अपने संबोधन में सबसे पहले रानी दुर्गावती को श्रद्धांजलि दी. उन्होंने कहा कि वीर साहसी और धर्म प्रिय रानी दुर्गावती को मैं श्रद्धांजलि देती हूं'. वहीं उन्होंने कहा कि आदिवासी कठिनाईयों में भी जिंदगी में जुनून भर देते हैं, जब हम जनजातीय समुदाय के साथ काम करते हैं तो खुले दिल से काम करना चाहिए. आदिवासियों का जल, जंगल और जमीन से गहरा नाता होता है, जड़ी बूटियों की पहचान करना आदिवासियों को अच्छे तरीके से आता है, इसलिए उन्हें धरती-पुत्र कहा जाता है.'
गौरवशाली इतिहास की गाथा कह रहे सिंगौरगढ़ के पुरातात्विक अवशेष
CM शिवराज का संबोधन
जनजातीय सम्मेलन और शिलान्यास कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीएम शिवराज ने राष्ट्रपति का अभिनंदन किया. उन्होंने कहा कि सिंगौरगढ़ का ये किला हमारी विरासत है. जहां से रानी दुर्गावती ने सुंदर सुशासन दिया था, आज भी हम रानी दुर्गावती के चरणों में नमन करते हैं और सिंगौरगढ़ का किला उनके शासन की वीरता को दर्शाता है. अब इस योजना के माध्यम से सिंगौरगढ़ किले का फिर रिनोवेशन होगा.'
26 करोड़ की राशि से होगा सिंगौरगढ़ किले का रिनोवेशन
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के मुताबिक सिंगौरगढ़ किला व उसके आसपास के क्षेत्र के विकास की दृष्टि से 26 करोड़ की राशि से विकास कार्य कराए जाएंगे. इसमें दलपतशाह की समाधि, मंदिर स्थान, सिंगौरगढ़ का किला, फीडरलेक ऑफ निरान वाटरफॉल, प्रवेश द्वार, निदान फॉल, बैसा घाट विश्राम गृह, नजारा व्यू पाइंट, वलचर प्वाइंट व विजिटर फैसीलिटी जोन आदि के मरम्मत व सौंदर्यीकरण के विकास कार्य होंगे. सिंगौरगढ़ किला के रखरखाव एवं जीर्णोद्धार के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा काम किया जा रहा है.
रानी दुर्गावती के शौर्य और वीरता की कहानी बयां कर रहा सिंगौरगढ़ किला
सिंगौरगढ़ किले का इतिहास
जबलपुर रोड पर स्थित सिंगौरगढ़ किला और उसका इतिहास किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इसके इतिहास और उस पर राज करने वाले शासकों को वह सम्मान नहीं मिल पाया जो दूसरे शासकों को मिला. 15 वीं सदी की शुरूआत से करीब 40 वर्षों तक शासन करने वाले मंडला राज्य के शासक संग्राम शाह ने अपने शासनकाल में अपनी सीमाओं का बहुत विस्तार किया. 1541 में संग्राम शाह की मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे दलपत शाह ने गोंड साम्राज्य की कमान संभाली, लेकिन सिर्फ 7 सालों तक ही वह सत्ता का सुख भोग सके और बीमारी के कारण 1548 में उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद उनकी पत्नी वीरांगना रानी दुर्गावती ने गोंड साम्राज्य की बागडोर संभाली.