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दमोह में जीत का गणित, किसका फॉर्मूला बैठेगा सटीक?

दमोह उपचुनाव में जीत हार को लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं. किसका दावा सही बैठेगा ये चुनाव परिणाम ही बताएगा.

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Published : May 1, 2021, 9:59 PM IST

Updated : May 2, 2021, 7:40 AM IST

दमोह। उपचुनाव की बिसात में किसने-किसको मात दी इसका फैसला रविवार को होगा. लेकिन दमोह की चुनावी बिसात में जीत हार के कई गणित है और इस गणित में किसका फॉर्मूला सही बैठा ये रविवार पता चलेगा. दमोह बुंदेलखंड अंचल की सीट है. वही बुंदेलखंड जहां के चुनावों पर जातिगण समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में यहां जीत का फॉर्मूला प्रत्याशी चयन से ही शुरू हो जाता है.

लोधी वोटर्स की बाहुल्यता

दमोह में लोधी वोटर्स जीत हार में काफी अहम फैक्टर निभाते हैं. बीजेपी ने सत्ता और संगठन में लोधी समुदाय को अच्छा खासा स्थान दे रखा है. उमा भारती के अलावा केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल की लोधी समुदाय में अच्छी पकड़ है. लोधी समुदाय को पिछले लंबे समय से बीजेपी का वोट बैंक भी माना जाता है. ऐसे में राहुल लोधी का बीजेपी मे आकर चुनाव लड़ना उनके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है. कुछ जानकरों ने लोधी वोट बैंक बंटने का अनुमान भी लगाया है.

ब्राह्मण वोट बैंक बिगाड़ता है गणित

दमोह में भले ही लोधी समाज के वोटर्स की संख्या ज्यादा हो, लेकिन कई जानकार मानते हैं कि यहां ब्राह्मण वोटर को निर्णायक भूमिका निभाते हैं. दमोह में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 20 हजार करीब है. इसलिए कांग्रेस ने इस बार उपचुनाव में अजय टंडन पर दांव खेला है. जानकारों का मानना है कि 6 बार के विधायक रहे जयंत मलैया को जिताने में ब्राह्मण वोटर्स ही अहम भूमिका निभाता था. वहीं 2018 में मलैया की हार में इसी वोट बैंक ने अहम भूमिका निभाई थी. इस बार ब्राह्मण वोट बैंक किसकी तरफ जाता है ये रविवार को पता चलेगा.

दमोह का 'रण': शनिवार को EVM में कैद होगी उम्मीदवारों की किस्मत

बीजेपी को भीतरघात का डर

दमोह में बीजेपी को अगर सबसे ज्यादा डर है तो वो भीतरघात का है. 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज रामकृष्ण कुसमरिया बीजेपी छोड़ बागी हो गए थे. माना जाता है कि कुसमरिया के कारण जयंत मलैया चुनाव हारे थे. ऐसी स्थिति उपचुनाव के दौरान फिर से बनी. राहुल लोधी को टिकट मिलने के विरोध में जयंत मलैया ने भी बागी तेवर अपना लिए थे. काफी मान मनौव्वल के बाद जयंत मलैया प्रचार करने तो लौट आए लेकिन पार्टी को अभी भी भीतरघात का डर है. बीजेपी ने मलैया को कुसमरिया बनने से तो रोक लिया लेकिन 2018 जैसे हालात होने से रोक पाई या नहीं ये नतीजों के बाद पता लगेगा.

टंडन को मिला है तीसरा मौका

दमोह में कांग्रेस को सबसे ज्यादा डर कमजोर संगठन का है. राहुल लोधी के साथ बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए परेशानी बनी. इसके अलावा कांग्रेस ने अजय टंडन पर तीसरी बार भरोसा जताया है. इससे पहले अजय टंडन 2 बार जयंत मलैया के सामने हार का मुंह देख चुके हैं. अजय टंडन की सक्रियता जहां कांग्रेस के लिए फायदेमंद है तो 2 बार चुनाव हारना कांग्रेस के डर का कारण भी है. अब कांग्रेस डर सच साबित होता है या अजय टंडन दो हार का दाग मिटा पाते हैं ये रविवार को साफ होगा.

शहरी क्षेत्र से गांवों में हुई ज्यादा वोटिंग

दमोह में शहरी क्षेत्र के मुकाबले गांवों में ज्यादा वोटिंग हुई. आंकड़ों के मुताबिक दमोह के ग्रामीण क्षेत्रों में वोटिंग पर्सेंट करीब 64 फीसदी रहा, जबकि शहरी क्षेत्रों में सिर्फ 53 फीसदी वोटिंग हुई. गांवों में ज्यादा वोटिंग का फायदा सत्ताधारी दल को होगा या विपक्ष को ये सोचने वाली बात है.

दमोह। उपचुनाव की बिसात में किसने-किसको मात दी इसका फैसला रविवार को होगा. लेकिन दमोह की चुनावी बिसात में जीत हार के कई गणित है और इस गणित में किसका फॉर्मूला सही बैठा ये रविवार पता चलेगा. दमोह बुंदेलखंड अंचल की सीट है. वही बुंदेलखंड जहां के चुनावों पर जातिगण समीकरण अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे में यहां जीत का फॉर्मूला प्रत्याशी चयन से ही शुरू हो जाता है.

लोधी वोटर्स की बाहुल्यता

दमोह में लोधी वोटर्स जीत हार में काफी अहम फैक्टर निभाते हैं. बीजेपी ने सत्ता और संगठन में लोधी समुदाय को अच्छा खासा स्थान दे रखा है. उमा भारती के अलावा केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल की लोधी समुदाय में अच्छी पकड़ है. लोधी समुदाय को पिछले लंबे समय से बीजेपी का वोट बैंक भी माना जाता है. ऐसे में राहुल लोधी का बीजेपी मे आकर चुनाव लड़ना उनके लिए काफी फायदेमंद हो सकता है. कुछ जानकरों ने लोधी वोट बैंक बंटने का अनुमान भी लगाया है.

ब्राह्मण वोट बैंक बिगाड़ता है गणित

दमोह में भले ही लोधी समाज के वोटर्स की संख्या ज्यादा हो, लेकिन कई जानकार मानते हैं कि यहां ब्राह्मण वोटर को निर्णायक भूमिका निभाते हैं. दमोह में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 20 हजार करीब है. इसलिए कांग्रेस ने इस बार उपचुनाव में अजय टंडन पर दांव खेला है. जानकारों का मानना है कि 6 बार के विधायक रहे जयंत मलैया को जिताने में ब्राह्मण वोटर्स ही अहम भूमिका निभाता था. वहीं 2018 में मलैया की हार में इसी वोट बैंक ने अहम भूमिका निभाई थी. इस बार ब्राह्मण वोट बैंक किसकी तरफ जाता है ये रविवार को पता चलेगा.

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बीजेपी को भीतरघात का डर

दमोह में बीजेपी को अगर सबसे ज्यादा डर है तो वो भीतरघात का है. 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज रामकृष्ण कुसमरिया बीजेपी छोड़ बागी हो गए थे. माना जाता है कि कुसमरिया के कारण जयंत मलैया चुनाव हारे थे. ऐसी स्थिति उपचुनाव के दौरान फिर से बनी. राहुल लोधी को टिकट मिलने के विरोध में जयंत मलैया ने भी बागी तेवर अपना लिए थे. काफी मान मनौव्वल के बाद जयंत मलैया प्रचार करने तो लौट आए लेकिन पार्टी को अभी भी भीतरघात का डर है. बीजेपी ने मलैया को कुसमरिया बनने से तो रोक लिया लेकिन 2018 जैसे हालात होने से रोक पाई या नहीं ये नतीजों के बाद पता लगेगा.

टंडन को मिला है तीसरा मौका

दमोह में कांग्रेस को सबसे ज्यादा डर कमजोर संगठन का है. राहुल लोधी के साथ बड़ी संख्या में कार्यकर्ताओं का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए परेशानी बनी. इसके अलावा कांग्रेस ने अजय टंडन पर तीसरी बार भरोसा जताया है. इससे पहले अजय टंडन 2 बार जयंत मलैया के सामने हार का मुंह देख चुके हैं. अजय टंडन की सक्रियता जहां कांग्रेस के लिए फायदेमंद है तो 2 बार चुनाव हारना कांग्रेस के डर का कारण भी है. अब कांग्रेस डर सच साबित होता है या अजय टंडन दो हार का दाग मिटा पाते हैं ये रविवार को साफ होगा.

शहरी क्षेत्र से गांवों में हुई ज्यादा वोटिंग

दमोह में शहरी क्षेत्र के मुकाबले गांवों में ज्यादा वोटिंग हुई. आंकड़ों के मुताबिक दमोह के ग्रामीण क्षेत्रों में वोटिंग पर्सेंट करीब 64 फीसदी रहा, जबकि शहरी क्षेत्रों में सिर्फ 53 फीसदी वोटिंग हुई. गांवों में ज्यादा वोटिंग का फायदा सत्ताधारी दल को होगा या विपक्ष को ये सोचने वाली बात है.

Last Updated : May 2, 2021, 7:40 AM IST
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