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इस गुरुद्वारे में दलित करते हैं अरदास, महात्मा गांधी ने रखी थी नींव

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Published : Oct 1, 2019, 11:55 PM IST

दमोह के हरिजन मोहल्ले में एक ऐसा गुरुद्वारा भी स्थित है, जिसका संचालन दलित समुदाय के लोग करते हैं. इसकी स्थापना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी. ये गुरुद्वारा सिख समाज के लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ दलित समुदाय के लोगों की आस्था का केंद्र भी है. जो पूरे देश में अनोखा बताया जाता है.

दमोह का गुरुद्वारा

दमोह। जिला मुख्यालय पर सिख समुदाय के अलावा एक ऐसा गुरुद्वारा भी स्थित है, जिसका संचालन दलित समुदाय के लोग करते हैं. इस गुरुद्वारे की स्थापना भी देश के एक महान व्यक्तित्व ने की थी. इस गुरुद्वारे में आज भी स्थानीय दलित समुदाय के लोग हर दिन पहुंचकर गुरु ग्रंथ साहब की वाणी का वाचन करते हैं. साथ ही उस महात्मा को भी याद करते हैं, जिसने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी.

दमोह का गुरुद्वारा

जिले के हरिजन मोहल्ले में दो दिसंबर1935 में दांडी यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन हुआ था. इस दौरान हरिजन सेवक संघ की पहल पर महात्मा गांधी ने इस इलाके में गुरुद्वारे की स्थापना की थी. करीब 200 रूपए की सहयोग राशि हरिजन सेवक संघ द्वारा दिए जाने के बाद गुरुद्वारे का निर्माण शुरू हुआ था. करीब 708 रूपए इस गुरुद्वारे को बनाने में खर्च हुए थे.

तब से लेकर अब तक ये गुरुद्वारा सिख समुदाय के अलावा दलित समुदाय के लोगों की आस्था का केंद्र है. यहां पर तीन पीढ़ियों से गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारे की सेवा करने वाले हरीश सिंह पारोचे बताते हैं कि उनकी पीढ़ियों द्वारा जो कार्य किया गया, वह धार्मिक आस्था और सहिष्णुता का प्रतीक है. यहां पर बड़ी संख्या में गुरु ग्रंथ साहब को मानने वालों का आना जाना लगा रहता है. वह हर दिन ही गुरु ग्रंथ साहब की वाणी सुनने आते हैं.

गांधी जी की दमोह यात्रा है खास
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दमोह यात्रा कई मायनों में खास है. क्योंकि महात्मा गांधी दांडी यात्रा करते हुए 1933 में दो दिसंबर को दमोह पहुंचे थे. उस दौरान बापू ने जहां हरिजन बस्ती में इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी. वहीं दमोह के अन्य स्थानों पर भी उन्होंने स्वतंत्रता की अलख जगाई थी. आजादी के पहले बापू का आगमन और इस गुरुद्वारे की स्थापना अपने आप में इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

दमोह। जिला मुख्यालय पर सिख समुदाय के अलावा एक ऐसा गुरुद्वारा भी स्थित है, जिसका संचालन दलित समुदाय के लोग करते हैं. इस गुरुद्वारे की स्थापना भी देश के एक महान व्यक्तित्व ने की थी. इस गुरुद्वारे में आज भी स्थानीय दलित समुदाय के लोग हर दिन पहुंचकर गुरु ग्रंथ साहब की वाणी का वाचन करते हैं. साथ ही उस महात्मा को भी याद करते हैं, जिसने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी.

दमोह का गुरुद्वारा

जिले के हरिजन मोहल्ले में दो दिसंबर1935 में दांडी यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन हुआ था. इस दौरान हरिजन सेवक संघ की पहल पर महात्मा गांधी ने इस इलाके में गुरुद्वारे की स्थापना की थी. करीब 200 रूपए की सहयोग राशि हरिजन सेवक संघ द्वारा दिए जाने के बाद गुरुद्वारे का निर्माण शुरू हुआ था. करीब 708 रूपए इस गुरुद्वारे को बनाने में खर्च हुए थे.

तब से लेकर अब तक ये गुरुद्वारा सिख समुदाय के अलावा दलित समुदाय के लोगों की आस्था का केंद्र है. यहां पर तीन पीढ़ियों से गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारे की सेवा करने वाले हरीश सिंह पारोचे बताते हैं कि उनकी पीढ़ियों द्वारा जो कार्य किया गया, वह धार्मिक आस्था और सहिष्णुता का प्रतीक है. यहां पर बड़ी संख्या में गुरु ग्रंथ साहब को मानने वालों का आना जाना लगा रहता है. वह हर दिन ही गुरु ग्रंथ साहब की वाणी सुनने आते हैं.

गांधी जी की दमोह यात्रा है खास
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दमोह यात्रा कई मायनों में खास है. क्योंकि महात्मा गांधी दांडी यात्रा करते हुए 1933 में दो दिसंबर को दमोह पहुंचे थे. उस दौरान बापू ने जहां हरिजन बस्ती में इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी. वहीं दमोह के अन्य स्थानों पर भी उन्होंने स्वतंत्रता की अलख जगाई थी. आजादी के पहले बापू का आगमन और इस गुरुद्वारे की स्थापना अपने आप में इतिहास के पन्नों में दर्ज है.

Intro:दमोह के हरिजन मोहल्ले में सन 1933 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी गुरुद्वारे की स्थापना

दमोह में सिख समुदाय के अलावा दलित समुदाय के लोग भी गुरुद्वारे में जाकर करते हैं अरदास

दमोह. जिला मुख्यालय पर सिख समुदाय के अलावा एक ऐसा गुरुद्वारा भी स्थित है जिसका संचालन दलित समुदाय के लोग करते हैं. इस गुरुद्वारे की स्थापना भी देश के एक महान व्यक्तित्व ने की है, और इस गुरुद्वारे में आज भी स्थानीय दलित समुदाय के लोग हर दिन पहुंचकर गुरु ग्रंथ साहब की वाणी को सुनते हैं. साथ ही उस महात्मा को भी याद करते हैं, जिसने इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी. इस गुरुद्वारे में प्राचीन गुरु ग्रंथ साहिब भी है जो अपने आप में अनोखा कहा जा सकता है.


Body:दमोह के हरिजन मोहल्ले में 2 दिसंबर सन 1935 में दांडी यात्रा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का आगमन हुआ था. इस दौरान हरिजन सेवक संघ की पहल पर महात्मा गांधी ने इस इलाके में गुरुद्वारे की स्थापना की थी. करीब ₹200 की सहयोग राशि हरिजन सेवक संघ द्वारा दिए जाने के बाद गुरुद्वारे का निर्माण शुरू हुआ था. वही करीब ₹708 इस गुरुद्वारे को बनाने में खर्च हुए थे. गुरुद्वारे के निर्माण में हरिजन सेवक संघ के तत्कालीन सभापति पीएस कासिब सहित बाबा मोती दास, बाबा तुलसीदास एवं बाबूलाल पारोचे ने अपना सहयोग देकर इस गुरुद्वारे का निर्माण कराया था. तब से लेकर अब तक यह गुरुद्वारा सिख समुदाय के अलावा दलित समुदाय के लोगों की आस्था का केंद्र है. यहां पर तीन पीढ़ियों से गुरु ग्रंथ साहिब गुरुद्वारे की सेवा करने वाले हरीश सिंह पारोचे बताते हैं कि उनकी पीढ़ियों द्वारा जो कार्य किया गया, वह धार्मिक आस्था और सहिष्णुता का प्रतीक है. हर दिन वे गुरुमुखी में गुरु ग्रंथ साहिब की वाणी का पाठ करते हैं, तथा हिंदी में उसका अनुवाद कर लोगों को सुनाते हैं. यहां पर बड़ी संख्या में गुरु ग्रंथ साहब को मानने वालों का आना जाना लगा रहता है. वह हर दिन ही गुरु ग्रंथ साहब की वाणी सुनने आते हैं.

बाइट - हरिसिंह पारोचे ग्रंथी गुरुद्वारा दमोह


Conclusion:राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दमोह यात्रा कई मायनों में खास है. क्योंकि महात्मा गांधी दांडी यात्रा करते हुए सन 1933 में 2 दिसंबर को दमोह पहुंचे थे. उस दौरान बापू ने जहां हरिजन बस्ती में इस गुरुद्वारे की स्थापना की थी. वही दमोह के अन्य स्थानों पर भी उन्होंने स्वतंत्रता की अलख जगाई थी. आजादी के पहले बापू का आगमन और इस गुरुद्वारे की स्थापना अपने आप में इतिहास के पन्नों में दर्ज है. साथ ही इस गुरुद्वारे का संचालन अभी भी संस्थापक बाल्मिक समाज के लोगों के वंशज कर रहे हैं, तथा हर दिन यहां पर इसी समुदाय के लोग आकर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते हैं. यह गुरुद्वारा सिख समाज के लोगों की आस्था का केंद्र होने के साथ दलित समुदाय के लोगों की आस्था का केंद्र भी है. जो पूरे देश में अनोखा कहा जा सकता है.

आशीष कुमार जैन
ईटीवी भारत दमोह
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