दमोह। जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर जंगलों और बीहड़ों में बसा सिद्ध क्षेत्र जरारू धाम पूरे साल भक्तों की भीड़ से आबाद रहता है. कभी डकैतों की शरणस्थली (Jarrudham is Secure place for dacoits in Damoh) रहा भगवान शिव और माता पार्वती का ये धाम भक्तों को खूब आकर्षित कर रहा है. अति प्राचीन इस सिद्ध क्षेत्र में हर अमावस्या और विशेष पर्व पर बड़ा मेला आयोजित किया जाता है. लोग यहां पर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करते हैं, मन्नत मांगते हैं और चले जाते हैं. मनौती पूरी होने पर वहां आकर भंडारा करते हैं.
डकैतों की सुरक्षित शरणस्थली जरारू धाम
हरदुआ जामशा ग्राम पंचायत में स्थित जरारू धाम चारों तरफ पहाड़ और जंगल से घिरा हुआ निर्जन स्थान है, जहां पहुंचने के लिए कोई सड़क मार्ग भी नहीं है. स्थानीय निवासी शिवराज सिंह बताते हैं कि यहां सागर, पन्ना, छतरपुर से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं. 70-80 के दशक में जब बुंदेलखंड दस्युओं के आतंक से त्रस्त था, तब यहां आने से लोग कतराते थे क्योंकि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को डकैत लूट लेते थे. डकैत मूरत सिंह और हरि सिंह के लिए यह सबसे सुरक्षित पनाहगार था. पुलिस से बचने के लिए बीहड़ों में बनी कंदराओं और घने जंगलों में अपना बसेरा बनाते थे. पूजा बब्बा और भैय्यन जैसे डकैत भी यहां आते थे.
प्रचंड गर्मी को शांत करती शीतल जल धारा
विशालकाय घने वृक्षों की छाया, झरने से गिरती शीतल जल धारा और गर्मी में भी सुकून देने वाला यह स्थान अनायास ही लोगों का मन मोह (Jararudham was a safe place for dacoits) लेता है. शारीरिक कष्ट उठाकर भी लोग यहां पर खिंचे चले आते हैं. अयोध्या छावनी के दिगंबर अखाड़ा से जुड़े नागा संप्रदाय के साधु बाबा संत दास बताते हैं कि ये स्थान काफी प्राचीन है, यहां पर बसंत पंचमी और अन्य पर्व पर बड़ा मेला लगता है. 1951 के पहले से भी यहां पर मेले लगते रहे हैं. यह सिद्ध बाबा का स्थान है और उनका समाधि स्थल भी है. यहां जो परमहंस समाधिस्थ हैं, वह कभी-कभार किसी को दर्शन भी देते हैं.
कभी नहीं रुकती गुफा से निकलती पानी की धारा
पिछले 22 वर्षों से संत दास इसी स्थान पर रह रहे हैं, ताज्जुब की बात है कि यहां पर बिजली के नाम पर एक खंभा तक नहीं लगा है, दिन में यहां जितनी चहल-पहल और रौनक रहती है, वह शाम ढलते ही घनघोर अंधेरे और सन्नाटे में बदल जाती है. बारिश के दौरान मार्ग पूरी तरह बंद होने के कारण लोगों का आवागमन भी अवरुद्ध हो जाता है. लोग बताते हैं कि यहां पर जो गुफा बनी हुई है, उसी गुफा से पानी आता है. उसका पानी कभी भी खत्म नहीं होता है. गर्मी में जब बड़ी-बड़ी नदियां भी सूख जाती हैं, उस वक्त भी उस स्रोत से पानी बहता रहता है, यही यहां का सबसे बड़ा जीता जागता चमत्कार है.
पहाड़ी से गिरती पानी की धार में बनता शिवलिंग
जरारूधाम दर्शन करने पहुंचे शिक्षक राजेश पांडे बताते हैं कि उनके पिता जब सरकारी सर्विस में हटा में पोस्टेड थे, उस समय वो यहां आया करते थे. पहाड़ के ऊपर से बहने वाले झरने का पानी नीचे गिरता था, तब शिवलिंग की आकृति स्वमेव बन जाती थी. पिछले 40 वर्षों में केवल इतनी ही तरक्की क्षेत्र की हुई है कि 1-2 धर्मशालाएं और छोटे-छोटे मंदिर बन गए हैं. एक अन्य स्थानीय निवासी हाकम सिंह बताते हैं कि जब रामकृष्ण कुसमरिया क्षेत्र के सांसद हुआ करते थे, तब उन्होंने यहां पर धर्मशाला का निर्माण कराया था, लेकिन सड़क और बिजली का अब भी नितांत अभाव है. यहां पर जनप्रतिनिधि आते हैं, वचन देते हैं, लेकिन काम कुछ भी नहीं होता है. श्रद्धालुओं को उबड़ खाबड़ रास्ते से बहुत परेशानी होती है, करीब 4-5 किलोमीटर का मार्ग इस कदर पथरीला है कि पैदल चलना भी दुश्वार रहता है.