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महिला दिवस: बुंदेली को समर्पित कर दिया जीवन, 70 के दशक से कर रही हैं साहित्य साधना - मातृभाषा

महिला दिवस पर अगर महिलाओं की उपलब्धियों की बात की जाए तो न जाने कितने नामों का जिक्र होगा. देश में कई महिलाओं ने आसमान में उड़ान भरने से लेकर देश की सुरक्षा के लिए जान देने तक हर क्षेत्र में अलग भूमिका निभाई है

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Published : Mar 8, 2019, 12:36 AM IST

दमोह। महिला दिवस पर अगर महिलाओं की उपलब्धियों की बात की जाए तो न जाने कितने नामों का जिक्र होगा. देश में कई महिलाओं ने आसमान में उड़ान भरने से लेकर देश की सुरक्षा के लिए जान देने तक हर क्षेत्र में अलग भूमिका निभाई है. दमोह की डॉ. प्रेमलता नीलम भी ऐसी ही एक मिसाल हैं, जिन्होंने बुंदेली के उत्थान में खासी भूमिका निभाई.

डॉ. प्रेमलता नीलम


मातृभाषा बुंदेली के लिए जिंदगी के चार दशक देने वाली महिला का नाम डॉ. प्रेमलता नीलम है. डॉ. प्रेमलता नीलम ने 70 के दशक से काव्य साधना की शुरूआत की उन्होंने अपनी काव्य शैली का लोहा मनवाते हुए, कई किताबें लिखीं और दर्जन भर पुरस्कार अपने नाम किए.


उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से भी नवाजा गया. गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने करीब आधा दर्जन देशों की यात्राएं कर बुंदेली और हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार कर इतिहास रचा जो दमोह के लिए गौरव की बात है.


डॉ. प्रेमलता नीलम द्वारा लिखी गई किताबें अनेक विश्वविद्यालयों में शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए कारगर साबित हो रही हैं. डॉक्टर नीलम की साहित्य साधना आज भी अनवरत जारी है.

दमोह। महिला दिवस पर अगर महिलाओं की उपलब्धियों की बात की जाए तो न जाने कितने नामों का जिक्र होगा. देश में कई महिलाओं ने आसमान में उड़ान भरने से लेकर देश की सुरक्षा के लिए जान देने तक हर क्षेत्र में अलग भूमिका निभाई है. दमोह की डॉ. प्रेमलता नीलम भी ऐसी ही एक मिसाल हैं, जिन्होंने बुंदेली के उत्थान में खासी भूमिका निभाई.

डॉ. प्रेमलता नीलम


मातृभाषा बुंदेली के लिए जिंदगी के चार दशक देने वाली महिला का नाम डॉ. प्रेमलता नीलम है. डॉ. प्रेमलता नीलम ने 70 के दशक से काव्य साधना की शुरूआत की उन्होंने अपनी काव्य शैली का लोहा मनवाते हुए, कई किताबें लिखीं और दर्जन भर पुरस्कार अपने नाम किए.


उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों से भी नवाजा गया. गौर करने वाली बात यह है कि उन्होंने करीब आधा दर्जन देशों की यात्राएं कर बुंदेली और हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार कर इतिहास रचा जो दमोह के लिए गौरव की बात है.


डॉ. प्रेमलता नीलम द्वारा लिखी गई किताबें अनेक विश्वविद्यालयों में शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए कारगर साबित हो रही हैं. डॉक्टर नीलम की साहित्य साधना आज भी अनवरत जारी है.

Intro:अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर स्पेशल स्टोरी

बुंदेली भाषा के प्रचार-प्रसार में चार दशक से जुटी एक महिला

मातृभाषा बुंदेली का प्रचार करते करते लिखी गई किताबें, पाए कई सम्मान, शोध प्रस्तुत कर की अनेक देशों की यात्राएं

Anchor. दमोह में रहकर पली बढ़ी एक महिला ने अपने जीवन के चार दशक अपनी मातृभाषा बुंदेली के प्रचार प्रसार में लगा दिए. 40 साल की साहित्य साधना में बुंदेली जीवन को प्रदर्शित करने वाली कई पुस्तकों के लिखने के साथ अनेक मंच पर अपनी काव्य शैली का लोहा मनवाते हुए कई पुरस्कार भी प्राप्त किए. यहां तक की राष्ट्रीय स्तर के सम्मान से भी ऊपर अंतर्राष्ट्रीय सम्मान से भी उनको नवाजा गया. करीब आधा दर्जन देशों की यात्राएं कर बुंदेली और हिंदी भाषा के प्रचार के लिए एक अकेली महिला ने जो इतिहास रचा है, वह इतिहास दमोह के लिए गौरव की बात है.


Body:VO. दमोह के लोगों के लिए डॉ प्रेमलता नीलम का नाम नया नहीं है. बुंदेली भाषा के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाली साहित्यकार डॉ प्रेमलता नीलम ने अपने जीवन के चार दशक लगा दिए. डॉ प्रेमलता नीलम ने 70 के दशक से काव्य साधना शुरू की. जो अनवरत आज भी जारी है. एक अकेली महिला ने अपने जीवन में एक दर्जन से भी ज्यादा पुस्तकें लिखकर कई दर्जन पुरस्कार प्राप्त किए. प्रादेशिक और राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजी जाने के बाद देश की सीमाओं से निकलकर करीब आधा दर्जन देशों में भी डॉ प्रेमलता नीलम ने बुंदेली और हिंदी भाषा का बिगुल बजाया. अपनी साहित्य साधना के बल पर भाषा को समझाने, भाषा की विशेषता एवं भाषा में लिखे गए इतिहास को विश्व पटल पर स्थापित करने के लिए डॉ प्रेमलता नीलम का योगदान अविस्मरणीय है. साहित्य साधना को जीवन का लक्ष्य मानकर चलने वाली अकेली महिला डॉ प्रेमलता नीलम ने अनेक देशों की यात्रा करते हुए हिंदी साहित्य के साथ बुंदेली साहित्य को भी स्थापित किया. इतना ही नहीं डॉ प्रेमलता नीलम द्वारा लिखी गई किताबें अब अनेक विश्वविद्यालयों में शोध करने वाले विद्यार्थियों के लिए कारगर साबित हो रही है. डॉक्टर नीलम की साहित्य साधना आज भी अनवरत जारी है. चार दशकों से अकेली महिला ने जो मुकाम हासिल किया, वह किसी के लिए भी गौरव की बात हो सकती है. लेकिन प्रेमलता नीलम के लिए अपनी मातृभाषा बुंदेली के प्रचार प्रसार के लिए दिया गया जीवन का योगदान मात्र है.

बाइट डॉ प्रेमलता नीलम, बुंदेली साहित्यकार दमोह


Conclusion:
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