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MP Congress First Release: दमोह की चार में से तीन विधानसभा पर कांग्रेस ने खोले पत्ते, तीन उम्मीदवारों की घोषणा, जाने कहां कौन भारी - एमपी न्यूज

कांग्रेस ने अपनी पहली विधानसभा उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है. कुल 140 सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवार घोषित किए है. इधर, दमोह जिले की तीन सीटों पर पार्टी ने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.

MP Congress First Release
दमोह जिले के कांग्रेस उम्मीदवार
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 15, 2023, 5:24 PM IST

Updated : Oct 16, 2023, 7:59 PM IST

दमोह। कांग्रेस हाई कमान ने जिले की चार में से तीन विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. दमोह विधानसभा को अभी होल्ड पर रखा गया है. वहीं, बीजेपी सिर्फ एक सीट पर घोषणा कर पाई है. दिग्गजों का रण कहा जाने वाला बुंदेलखंड का दमोह जिला राजनीति में अपना खासा महत्व रखता है. कांग्रेस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करीब महीने भर पहले पार्टी ने कर दी है. यदि हम पिछला इतिहास देखें तो कमोवेश कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नामांकन दाखिले के एक-दो दिन पूर्व तक ही की है.

इस बार कांग्रेस ने भाजपा को पीछे छोड़ते हुए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. दमोह जिले की चार विधानसभा सीटों पथरिया, हटा, और जबेरा के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. जबकि, दमोह विधानसभा को अभी होल्ड पर रखा गया है. आखिर क्या मायने हैं, उम्मीदवारों की घोषणा के और कैसे कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देने के लिए जातिगत कार्ड खेला है. इस पर नजर दौड़ाएं तो यह भाजपा के लिए मुसीबत से कम नहीं है.

पथरिया विधानसभा: यहां पर 2018 में बीएसपी से पहली बार चुनाव लड़ने वाली रामबाई परिहार ने महज 2000 वोटो के अंतर से भाजपा के लखन पटेल को हरा दिया था. यहां कांग्रेस के लिए हार का कारण बने. राव बृजेंद्र सिंह के कारण कांग्रेस को चौथे स्थान पर जगह मिली थी. वहीं, राव बृजेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. रामबाई परिहार को 39267, लखन पटेल को 37062, जबकि कांग्रेस से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राव बृजेंद्र सिंह को 27074 मत मिले थे.

इधर, कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी और तत्कालीन जनपद पंचायत के अध्यक्ष पति गौरव पटेल को 25438 मत प्राप्त हुए थे. इसके बाद पिछले साल संपन्न हुए जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने गौरव पटेल की धर्म पत्नी श्रीमती रंजीता पटेल को अधिकृत उम्मीदवार बनाया था. इसके कारण जिला पंचायत सदस्य राव बृजेंद्र सिंह खासे नाराज हो गए थे. उनकी नाराजगी को पार्टी ने इस बार गंभीरता से लिया और उन्हें पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी बना दिया.

यहां पर जातिगत समीकरण की बात करें तो 38 से 40 हज़ार के करीब दलित मतदाता हैं. उसके बाद करीब 32 से 35 हज़ार के बीच लोधी और कुर्मी पटेल मतदाता हैं. इसके बाद ब्राह्मण, मुसलमान और आदिवासी आते हैं. पार्टी जानती है कि राव बृजेंद्र सिंह को नाराज करने का सीधा मतलब है कि इस बार फिर से हार का मुंह देखना है. इसलिए पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बना दिया.

पिछले चुनाव में राव बृजेंद्र सिंह एक तरफा 25000 से अधिक मत ले गए थे. वह बटियागढ़ क्षेत्र के केरबना इलाके से आते हैं. उनके दादा राव खेत सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं. उनकी ईमानदार छवि रही है, जिसके कारण उन्हें किशनगंज से लेकर बटियागढ़, केरबना, खड़ेरी तथा हटा क्षेत्र के फतेहपुर एरिया के सारे वोट मिल जाते हैं. जबकि, गौरव पटेल को केवल दमोह विधानसभा से लगे हुए. उनके पैतृक गांव रामनाथ पिपरिया उससे लगे हुए कुर्मी बहुल इलाकों पथरिया के और गढ़ाकोटा के मध्य पड़ने वाले नंदरई, बांसाकला क्षेत्र आदि के ही मत प्राप्त होते हैं. इसलिए पार्टी ने इस बार उन पर दाव लगाना मुनासिब नहीं समझा. यहां पर अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. क्योंकि रामबाई यहां की वर्तमान विधायक है, जबकि लखन पटेल पिछले 5 वर्ष से लगातार सक्रिय हैं. अब उन्हें राव बृजेंद्र के कारण लोधी वोट मिलना संभव नहीं है. ऐसे में यहां पर अब त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन गए हैं.

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हटा विधानसभा: दूसरी तरफ हम सुरक्षित सीट हटा की बात करें तो यहां पर 1998 में विधायक चुने गए और प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री रहे राजा पटेरिया के बाद पार्टी लगभग 15 वर्षों में खत्म सी हो गई थी. पिछले कुछ वर्षों में यहां पर कांग्रेस नेता प्रदीप खटीक लगातार सक्रिय रहे. उनकी सक्रियता के कारण कांग्रेस ने पहली बार 15 सालों में हजारी परिवार के कब्जे वाली नगर पालिका पर कांग्रेस का परचम लहराया. पहले हजारी परिवार भी कांग्रेस में ही रहा है. लेकिन वह समय के साथ बसपा फिर सपा और उसके बाद भाजपा में चला गया. हजारी परिवार के प्रभाव वाला यह क्षेत्र कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है. यहां पर पिछले चार चुनाव से लगातार भाजपा प्रत्याशी विजयी होता रहा है. अब यहां पर कांग्रेस ने पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित करके भाजपा के लिए मुसीबतें और अधिक बढ़ा दी है. जबकि, भाजपा की ओर से अभी यहां पर प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं किया गया है.

2018 के चुनाव में बीजेपी ने पीएल तंतुवाय को अपना प्रत्याशी बनाया था. उन्हें 76607 मत प्राप्त हुए थे. जबकि, सिंधिया के खेमे से कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष हरिशंकर चौधरी को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था. हटा के लिए वह बाहरी प्रत्याशी भी थे. उन्हें केवल 56702 मत प्राप्त हुए थे. इस बार कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेता को उम्मीदवार बनाया है. इसलिए यहां पर इस बार बाहरी का मुद्दा भी नहीं रहेगा. भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत उम्मीदवार चुनने की है, क्योंकि यहां पर पहले से ही कई गुट हैं. इसमें एक गुट में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल और पुष्पेंद्र हजारी है. जो की अपना व्यक्तिगत उम्मीदवार तो चाहते हैं लेकिन पीएल तंतुवाय का भी समर्थन कर रहे हैं. जबकि, पूर्व विधायक श्रीमती उमा देवी खटीक भी प्रबल दावेदारी कर रही हैं.

जबेरा विधानसभा: जबलपुर और सागर तथा नरसिंहपुर जिले की सीमा से लगने वाली जिले की सबसे महत्वपूर्ण जबेरा विधानसभा से प्रहलाद पटेल के खासमखास धर्मेंद्र लोधी विधायक हैं. भाजपा ने अभी यहां पर अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है. जबकि, यहां से पूर्व विधायक रहे और लोकसभा चुनाव लड़ चुके लगातार सक्रिय प्रताप सिंह लोधी को कांग्रेस ने एक बार फिर से मौका देकर अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां पर भी भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वह गुटबाजी के चलते अभी तक अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है. वर्तमान विधायक धर्मेंद्र लोधी के अलावा जिला पंचायत सदस्य ऋषि लोधी तथा जनपद अध्यक्ष विनोद राय भी यहां से दावेदारी कर रही हैं.

इसके अलावा पूर्व में चुनाव लड़ चुके संजय राय भी दावेदारों की लिस्ट में शामिल हैं. ऐसे में भाजपा के लिए किसी एक उम्मीदवार को चुनना आसान नहीं है. 2018 की चुनाव में यहां से धर्मेंद्र सिंह लोधी को 48901 मत प्राप्त हुए थे. जबकि, उनके निकटतम कांग्रेस के प्रताप सिंह को 45416 मत मिले थे. यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले भाजपा के बागी ऋषि लोधी ने 21000 से ज्यादा मत प्राप्त किए थे. जबकि, कांग्रेस के बागी और पूर्व मंत्री रत्नेश सालोमन के बेटे आदित्य सालोमन ने भी बगावत की थी. उन्हें 13015 मत मिले थे। यहां पर अभी दोनों पार्टियों में गुटबाजी तो है. लेकिन, कांग्रेस के प्रताप सिंह का पलड़ा अधिक भारी है.

दमोह विधानसभा: अब दमोह जिले की सबसे चर्चित सीट दमोह विधानसभा की बात करते हैं. यहां पर 2018 में राहुल लोधी ने पूर्व वित्त मंत्री और कद्दावर नेता जयंत मलैया को करीब 700 मतों से पराजित किया था. कांग्रेस की सरकार जाने की कुछ समय बाद ही राहुल ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और भाजपा के टिकट पर 2021 में उपचुनाव लड़ा था. उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा.

यहां से कांग्रेस के अजय टंडन ने उन्हें 17089 मतों से शिकस्त देकर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा. यहां पर वैसे तो अजय टंडन ही प्रबल दावेदार हैं, लेकिन पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मनु मिश्रा भी दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए यहां पर एक भी गलत निर्णय आत्मघाती साबित हो सकता है. जबकि, इस बार भाजपा हाई कमान जयंत मलैया पर ही दाव लगाने की मूड में है. जयंत मलैया चाहते हैं कि उनकी जगह उनके बेटे सिद्धार्थ को मैदान में उतारा जाए. शायद इसी कशमकश की वजह से भाजपा अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है.

दमोह। कांग्रेस हाई कमान ने जिले की चार में से तीन विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. दमोह विधानसभा को अभी होल्ड पर रखा गया है. वहीं, बीजेपी सिर्फ एक सीट पर घोषणा कर पाई है. दिग्गजों का रण कहा जाने वाला बुंदेलखंड का दमोह जिला राजनीति में अपना खासा महत्व रखता है. कांग्रेस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जबकि उम्मीदवारों के नाम की घोषणा करीब महीने भर पहले पार्टी ने कर दी है. यदि हम पिछला इतिहास देखें तो कमोवेश कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा नामांकन दाखिले के एक-दो दिन पूर्व तक ही की है.

इस बार कांग्रेस ने भाजपा को पीछे छोड़ते हुए उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी है. दमोह जिले की चार विधानसभा सीटों पथरिया, हटा, और जबेरा के लिए उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. जबकि, दमोह विधानसभा को अभी होल्ड पर रखा गया है. आखिर क्या मायने हैं, उम्मीदवारों की घोषणा के और कैसे कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देने के लिए जातिगत कार्ड खेला है. इस पर नजर दौड़ाएं तो यह भाजपा के लिए मुसीबत से कम नहीं है.

पथरिया विधानसभा: यहां पर 2018 में बीएसपी से पहली बार चुनाव लड़ने वाली रामबाई परिहार ने महज 2000 वोटो के अंतर से भाजपा के लखन पटेल को हरा दिया था. यहां कांग्रेस के लिए हार का कारण बने. राव बृजेंद्र सिंह के कारण कांग्रेस को चौथे स्थान पर जगह मिली थी. वहीं, राव बृजेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे. रामबाई परिहार को 39267, लखन पटेल को 37062, जबकि कांग्रेस से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले राव बृजेंद्र सिंह को 27074 मत मिले थे.

इधर, कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी और तत्कालीन जनपद पंचायत के अध्यक्ष पति गौरव पटेल को 25438 मत प्राप्त हुए थे. इसके बाद पिछले साल संपन्न हुए जिला पंचायत चुनाव में कांग्रेस ने गौरव पटेल की धर्म पत्नी श्रीमती रंजीता पटेल को अधिकृत उम्मीदवार बनाया था. इसके कारण जिला पंचायत सदस्य राव बृजेंद्र सिंह खासे नाराज हो गए थे. उनकी नाराजगी को पार्टी ने इस बार गंभीरता से लिया और उन्हें पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी बना दिया.

यहां पर जातिगत समीकरण की बात करें तो 38 से 40 हज़ार के करीब दलित मतदाता हैं. उसके बाद करीब 32 से 35 हज़ार के बीच लोधी और कुर्मी पटेल मतदाता हैं. इसके बाद ब्राह्मण, मुसलमान और आदिवासी आते हैं. पार्टी जानती है कि राव बृजेंद्र सिंह को नाराज करने का सीधा मतलब है कि इस बार फिर से हार का मुंह देखना है. इसलिए पार्टी ने उन्हें अपना प्रत्याशी बना दिया.

पिछले चुनाव में राव बृजेंद्र सिंह एक तरफा 25000 से अधिक मत ले गए थे. वह बटियागढ़ क्षेत्र के केरबना इलाके से आते हैं. उनके दादा राव खेत सिंह जिला पंचायत अध्यक्ष रहे हैं. उनकी ईमानदार छवि रही है, जिसके कारण उन्हें किशनगंज से लेकर बटियागढ़, केरबना, खड़ेरी तथा हटा क्षेत्र के फतेहपुर एरिया के सारे वोट मिल जाते हैं. जबकि, गौरव पटेल को केवल दमोह विधानसभा से लगे हुए. उनके पैतृक गांव रामनाथ पिपरिया उससे लगे हुए कुर्मी बहुल इलाकों पथरिया के और गढ़ाकोटा के मध्य पड़ने वाले नंदरई, बांसाकला क्षेत्र आदि के ही मत प्राप्त होते हैं. इसलिए पार्टी ने इस बार उन पर दाव लगाना मुनासिब नहीं समझा. यहां पर अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. क्योंकि रामबाई यहां की वर्तमान विधायक है, जबकि लखन पटेल पिछले 5 वर्ष से लगातार सक्रिय हैं. अब उन्हें राव बृजेंद्र के कारण लोधी वोट मिलना संभव नहीं है. ऐसे में यहां पर अब त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन गए हैं.

ये भी पढ़ें...

हटा विधानसभा: दूसरी तरफ हम सुरक्षित सीट हटा की बात करें तो यहां पर 1998 में विधायक चुने गए और प्रदेश में स्वास्थ्य मंत्री रहे राजा पटेरिया के बाद पार्टी लगभग 15 वर्षों में खत्म सी हो गई थी. पिछले कुछ वर्षों में यहां पर कांग्रेस नेता प्रदीप खटीक लगातार सक्रिय रहे. उनकी सक्रियता के कारण कांग्रेस ने पहली बार 15 सालों में हजारी परिवार के कब्जे वाली नगर पालिका पर कांग्रेस का परचम लहराया. पहले हजारी परिवार भी कांग्रेस में ही रहा है. लेकिन वह समय के साथ बसपा फिर सपा और उसके बाद भाजपा में चला गया. हजारी परिवार के प्रभाव वाला यह क्षेत्र कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है. यहां पर पिछले चार चुनाव से लगातार भाजपा प्रत्याशी विजयी होता रहा है. अब यहां पर कांग्रेस ने पहले ही अपना प्रत्याशी घोषित करके भाजपा के लिए मुसीबतें और अधिक बढ़ा दी है. जबकि, भाजपा की ओर से अभी यहां पर प्रत्याशी का नाम घोषित नहीं किया गया है.

2018 के चुनाव में बीजेपी ने पीएल तंतुवाय को अपना प्रत्याशी बनाया था. उन्हें 76607 मत प्राप्त हुए थे. जबकि, सिंधिया के खेमे से कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष हरिशंकर चौधरी को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था. हटा के लिए वह बाहरी प्रत्याशी भी थे. उन्हें केवल 56702 मत प्राप्त हुए थे. इस बार कांग्रेस ने क्षेत्रीय नेता को उम्मीदवार बनाया है. इसलिए यहां पर इस बार बाहरी का मुद्दा भी नहीं रहेगा. भाजपा के लिए सबसे बड़ी मुसीबत उम्मीदवार चुनने की है, क्योंकि यहां पर पहले से ही कई गुट हैं. इसमें एक गुट में पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष शिवचरण पटेल और पुष्पेंद्र हजारी है. जो की अपना व्यक्तिगत उम्मीदवार तो चाहते हैं लेकिन पीएल तंतुवाय का भी समर्थन कर रहे हैं. जबकि, पूर्व विधायक श्रीमती उमा देवी खटीक भी प्रबल दावेदारी कर रही हैं.

जबेरा विधानसभा: जबलपुर और सागर तथा नरसिंहपुर जिले की सीमा से लगने वाली जिले की सबसे महत्वपूर्ण जबेरा विधानसभा से प्रहलाद पटेल के खासमखास धर्मेंद्र लोधी विधायक हैं. भाजपा ने अभी यहां पर अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं की है. जबकि, यहां से पूर्व विधायक रहे और लोकसभा चुनाव लड़ चुके लगातार सक्रिय प्रताप सिंह लोधी को कांग्रेस ने एक बार फिर से मौका देकर अपना उम्मीदवार बनाया है. यहां पर भी भाजपा के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि वह गुटबाजी के चलते अभी तक अपने प्रत्याशी के नाम की घोषणा नहीं कर पाई है. वर्तमान विधायक धर्मेंद्र लोधी के अलावा जिला पंचायत सदस्य ऋषि लोधी तथा जनपद अध्यक्ष विनोद राय भी यहां से दावेदारी कर रही हैं.

इसके अलावा पूर्व में चुनाव लड़ चुके संजय राय भी दावेदारों की लिस्ट में शामिल हैं. ऐसे में भाजपा के लिए किसी एक उम्मीदवार को चुनना आसान नहीं है. 2018 की चुनाव में यहां से धर्मेंद्र सिंह लोधी को 48901 मत प्राप्त हुए थे. जबकि, उनके निकटतम कांग्रेस के प्रताप सिंह को 45416 मत मिले थे. यहां से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले भाजपा के बागी ऋषि लोधी ने 21000 से ज्यादा मत प्राप्त किए थे. जबकि, कांग्रेस के बागी और पूर्व मंत्री रत्नेश सालोमन के बेटे आदित्य सालोमन ने भी बगावत की थी. उन्हें 13015 मत मिले थे। यहां पर अभी दोनों पार्टियों में गुटबाजी तो है. लेकिन, कांग्रेस के प्रताप सिंह का पलड़ा अधिक भारी है.

दमोह विधानसभा: अब दमोह जिले की सबसे चर्चित सीट दमोह विधानसभा की बात करते हैं. यहां पर 2018 में राहुल लोधी ने पूर्व वित्त मंत्री और कद्दावर नेता जयंत मलैया को करीब 700 मतों से पराजित किया था. कांग्रेस की सरकार जाने की कुछ समय बाद ही राहुल ने कांग्रेस का दामन छोड़ दिया और भाजपा के टिकट पर 2021 में उपचुनाव लड़ा था. उन्हें बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा.

यहां से कांग्रेस के अजय टंडन ने उन्हें 17089 मतों से शिकस्त देकर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रखा. यहां पर वैसे तो अजय टंडन ही प्रबल दावेदार हैं, लेकिन पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मनु मिश्रा भी दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए यहां पर एक भी गलत निर्णय आत्मघाती साबित हो सकता है. जबकि, इस बार भाजपा हाई कमान जयंत मलैया पर ही दाव लगाने की मूड में है. जयंत मलैया चाहते हैं कि उनकी जगह उनके बेटे सिद्धार्थ को मैदान में उतारा जाए. शायद इसी कशमकश की वजह से भाजपा अभी तक अपना प्रत्याशी घोषित नहीं कर पाई है.

Last Updated : Oct 16, 2023, 7:59 PM IST
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