दमोह। वैसे तो भगवान महादेव के कई तीर्थस्थल हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा तीर्थस्थल भी है जहा स्वयंभू शिवलिंग है. बुंदेलखंड के बांदकपुर स्थित जागेश्वर धाम में विराजित शिवलिंग सालों से लोगों के आश्चर्य का केंद्र बना हुआ है. इस साल भी भगवान जागेश्वर नाथ की नगरी बांदकपुर में श्रावण मास में बहुत भीड़ उमड़ रही है. अपने रहस्यमय, ऐतिहासिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के कारण बांदकपुर धाम को "पुरी" का दर्जा प्राप्त है. आईये जानते हैं इस तीर्थस्थल के बारे में. (Damoh Jageshwarnath Dham)
याहिमग ह्वकर गये दंडक वन श्री राम,
यहां शंभू पूजन कियो अरू कीन्हो विश्राम।
यह श्लोक पढ़ने में जितना सरल लगता है. उसका भावार्थ उतना ही गहरा है. जो बांदकपुर धाम के प्राचीन महत्व को दर्शाता है. 1940 में बांदकपुर के प्रख्यात विद्वान कवि भैरव प्रसाद बाजपेई द्वारा रचित "बांदकपुर जागेश्वर रहस्यम" (Bandakpur Jageshwar Rahasyam) नामक पुस्तक में इस श्लोक को लिखा गया है. जिसका वर्णन स्कंद पुराण कुमारिका खंड के तंत्र जागेश्वर लिंग श्री रामेण स्वपूजिता में आता है. जिसका अर्थ है की वनवास के दौरान त्रेतायुग में जब भगवान श्री राम एवं अनुज लक्ष्मण माता सीता को पंचवटी से खोजते हुए दंडकारण्य की ओर जा रहे थे तब उन्होंने इन्हीं स्वयंभू शिवलिंग भगवान जागेश्वर नाथ की आराधना की थी. तथा यहां रात्रि विश्राम भी किया था. इस श्लोक से यह प्रमाणित हो जाता है कि भगवान जागेश्वर नाथ त्रेता काल (मानवकाल के द्वितीय युग) से अपने भक्तों को दर्शन देते आ रहे हैं. (Jageshwar Nath Mystery and Miracles God)
चांदोरकर ने कराया था पुनः निर्माण: बांदकपुर धाम दमोह जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर दूर कटनी रेलखंड की तरफ बना हुआ है. यह भगवान शिव एवं माता पार्वती के धाम के रूप में प्रसिद्ध है. यहां की अनेक कथाएं और संस्मरण चमत्कारों से भरे पड़े हैं. मंदिर निर्माण के पूर्व यहां पर केवल भगवान शिव विशालकाय स्वयंभू लिंग रूप में विराजमान थे. करीब 300 वर्ष पूर्व मराठा काल यानि 1711 ईस्वी में मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर ने मंदिर का पुनःनिर्माण कराया था.
खुदाई में मिला था जागेश्वर नाथ का ज्योतिर्लिंग: ब्रिटिश लेखक आरवी रसल ने 1906 के गजेटियर (क्षेत्र विशेष का वर्णनात्मक विवरण) में उल्लेख किया है कि बालाजी राव चांदोरकर को भगवान जागेश्वर नाथ ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर मंदिर निर्माण कराने का आदेश दिया था. तब बालाजीराव ने अपने सेवकों के साथ यहां पहुंच कर वर्तमान बावड़ी के समीप खुदाई की तो जागेश्वर नाथ का ज्योतिर्लिंग दिखाई दिया. ज्योतिर्लिंग को बाहर निकालने के लिए और भी खुदाई की गई परंतु 30 फुट खुदाई करने के बाद तक जब कहीं भी ज्योतिर्लिंग का अंत नहीं पाया तो खुदाई बंद कर दी गई. तब भगवान शिव ने बालाजी से सपने में कहा कि मैं चमत्कार दिखाने के लिए प्रकट हुआ हूं. अतः इसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करो. तब उन्होंने विशाल मंदिर का निर्माण करवाया. जो कि कालांतर में ध्वस्त हो चुका था. तत्पश्चात 1972 में शिव मंदिर के ठीक सामने माता पार्वती के मंदिर का निर्माण किया गया. (Shiv Temple Bandakpur Damoh)
भोलेनाथ के साथ अन्य देव भी विराजमान: भगवान भोलेनाथ के मंदिर के ठीक सामने माता पार्वती का मंदिर विराजमान है. इसके अलावा इन दोनों मंदिरों के मध्य नंदी महाराज, सामने रूद्र, दूसरी तरफ भगवान गणेश उनके बगल में हनुमान जी विराजमान हैं. शिव मंदिर के ठीक पीछे भगवान राधा कृष्ण, दाएं हाथ पर भगवान लक्ष्मी नारायण नर्मदा जी, पार्वती मंदिर के पीछे एक तरफ भगवान राम का दरबार है. तथा दूसरी तरफ काल भैरव तथा उनके सामने मां जगदंबा विराजमान हैं. इसी तरह पार्वती मंदिर के अंदर ही भगवान भोलेनाथ घोड़े पर विराजमान हैं. जिन्हें मराठा समाज में खंडेराव देव के नाम से जाना जाता है. इस तरह परिसर में करीब नौ मंदिर बने हुए हैं. शिव मंदिर के सामने ही बाएं तरफ विशाल बावड़ी बनी है जिसे इमरती कुंड के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है की इस कुंड का पानी कभी खाली नहीं होता. जब बालाजीराव 1711 में भगवान शिव के आदेश पर इस स्थान पर पहुंचे थे, तब उन्होंने इसी इमरती कुंड के समीप एक वृक्ष के नीचे भगवान का ध्यान लगाया था. इससे यह बात प्रमाणित होती है की इमरती कुंड भी कई सदी प्राचीन है.
पर्वों पर उमड़ती है भीड़: जागेश्वर नाथ के संबंध में एक किवदंती है कि जब यहां पर एक ही दिन में सवा लाख कावड़ का जल भगवान शिव को अर्पण किया जाता है तो भगवान शिव एवं माता पार्वती के मंदिर में लगे ध्वजों का अपने आप गठबंधन हो जाता है. भगवान शिव का जो लिंग है वह इतना विशाल है की लंबी से लंबी भुजाओं वाला व्यक्ति भी उसे दोनों हाथ से भेंट नहीं कर सकता है. यहां पर महाशिवरात्रि पर्व पर करीब डेढ़ से दो लाख लोग दर्शन करते हैं. जबकि सावन के महीने में हर रोज 15 से 20 हजार लोग दर्शन कर रहे हैं. सोमवार को यह संख्या करीब 40 से 50 हजार तक पहुंच जाती है. बांदकपुर धाम में मकर संक्रांति, बसंत पंचमी, महाशिवरात्रि, श्रावण के महीने सहित विभिन्न पर्वों पर विशाल मेले लगते हैं. जिनमें लाखों लोगों की भीड़ उमड़ती है. भगवान शिव मंदिर के पिछली दीवार पर हल्दी से हाथ लगाने का चलन भी है. कहा जाता है कि ऐसा करने पर मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
''भगवान शिव का यह लिंग त्रेता युग से विद्यमान है. भगवान राम ने यहां पर भगवान शिव का पूजन कर रात्रि विश्राम किया था. जिससे यह प्रमाण मिलते हैं कि शिवलिंग त्रेता युग से है. लेकिन 1711 में मराठा दीवान बालाजी राव चांदोरकर ने मंदिर का पुनः निर्माण कराया था''. -राम कृपाल पाठक, प्रबंधक मंदिर ट्रस्ट बांदकपुर
विदेशी भी हैं भोले बाबा के मुरीद: भगवान जागेश्वर नाथ की ख्याति न केवल संपूर्ण भारत बल्कि विदेशों में भी है. जिसका उल्लेख यहां की विजिटर बुक में देखा जा सकता है. 1954 में यूएसए के वेयन हार्वर, 1962 में लंदन निवासी एमडी मेघानी, 1969 में अमेरिकन यात्री एसडी इलेगिल, 1965 में मलेशिया के एफ पी पटेल, 1997 में स्वरूपानंद सरस्वती, 1964 में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, 2001 में स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती, 2002 में स्वामी स्वरूपानंद एवं अमेरिका की अदिति धगट, 1991 में जादूगर आनंद सहित देश के कई सीजेआई गवर्नर तथा राजनेताओं ने समय-समय पर भगवान शिव के प्रत्यक्ष दर्शन कर वहां के अलौकिक आनंद का वर्णन विजिटर बुक में किया है. इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि भगवान भोलेनाथ का यह दरबार अपने आप में आध्यात्मिक, अलौकिक और अकल्पनीय और रहस्यों से भरा हुआ है.
(Jageshwar Nath Situated Swayambhu Shivling Form)