दमोह। प्रदेश के पूर्व वित्त मंत्री जयंत मलैया के बेटे सिद्धार्थ मलैया भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. पिछले दिनों मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष ने उम्मीदवार के नाम पर भले ही मुहर लगा दी हों, पर सिद्धार्थ हैं कि मानते नहीं. वह कहते हैं कि अभी उम्मीद कायम हैं.
अपनी सौम्य छवि के लिए पहचाने जाने वाले सिद्धार्थ मलैया चुनाव आते ही मुखर हो गए हैं. उनका एक नया रूप लोगों को इन दिनों देखने मिल रहा है. सिद्धार्थ मलैया कहते हैं कि वह बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन अगर टिकट नहीं मिलता है, तब भी वह निर्दलीय या कांग्रेस के टिकट पर चुनाव नहीं लड़ेंगे. उनका कहना है कि पार्टी और आगामी उपचुनाव में उनकी भूमिका सकारात्मक ही रहेगी. वह पार्टी के विरोध में नहीं जाएंगे. वहीं कांग्रेस से संपर्क होने वाली बात पर उन्होंने कहा कि मैं कभी कांग्रेस से संपर्क नहीं कर सकता. बहुत सी बातें निजी हैं, उन्हें निजी ही रहने दें, तो बेहतर होगा.
चुनाव का समय है, आशीर्वाद लेना तो बनता है
सिद्धार्थ मलैया द्वारा निकाली जा रही जन आशीर्वाद यात्रा को वो पार्टी से नहीं जोड़ते हैं. वह कहते हैं कि यात्राएं तो सारी व्यक्तिगत ही होती हैं. उनको अमलीजामा पहनाया जाता है. चुनाव का समय है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद ले रहे हैं. जिन्होंने पार्टी को खड़ा किया है, जो संस्थापक है, उनका आशीर्वाद लेना तो बनता है.
हार से अंत और जीत से लक्ष्य नहीं
सिद्धार्थ कहते हैं कि जब मन की बात हुई, तब भी वह पार्टी के साथ थे. जब मन की बात नहीं भी होगी, तब भी वह पार्टी के साथ ही खड़े रहेंगे. इसके अलावा उन्होंने कहा कि चुनाव तो सभी ऐतिहासिक होते हैं. चुनाव हारना जीवन का अंत नहीं है और जीतना जीवन का लक्ष्य नहीं है, और होना भी नहीं चाहिए. जीतना ही सब कुछ नहीं होता. कुछ काम ऐसे भी होते हैं, जो लोगों की स्मृतियों में सदा बने रहते हैं. संभवत सिद्धार्थ का इशारा वित्त मंत्री रहते उनके पिता जयंत मलैया द्वारा दमोह में किए गए विकास कार्यों को लेकर था.
अपनी बात जनता तक नहीं पहुंचा पाए
2018 में कहां कमी रह गई ? जिसके कारण पार्टी चुनाव हार गई. इसके जवाब में मलैया कहते हैं कि यह टेक्नोलॉजी का युग है. हम शायद अपनी बात जनता तक बेहतर तरीके से नहीं पहुंचा पाए. सोशल मीडिया का प्लेटफार्म कुछ कमजोर रहा होगा, क्योंकि इन 15 सालों में पूरी एक पीढ़ी बदल गई है. आगे उन्होंने कहा कि दमोह की जनता जानती थी कि एक व्यक्ति को चुनेंगे, तो वह विधायक बनेगा. दूसरे को चुनेंगे, तो वह वित्त मंत्री बनेगा. इसके बाद भी बड़े आशा के साथ जनता ने एक विधायक को चुना. उस आशा का क्या हुआ ? चुने हुए प्रतिनिधि ने क्या किया ? यह बताने की आवश्यकता नहीं है, जनता सब जानती है.
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हर बार जीत हों, जरूरी नहीं
मलैया कहते हैं कि कुछ चुनाव लड़ने के लिए ही नहीं जीते जाते हैं. कुछ चुनाव बगैर लड़े भी जीत लिए जाते हैं. चुनाव लड़ूंगा या नहीं लड़ूंगा, यह काल्पनिक बात है. कुछ लोग बगैर लड़े भी चुनाव जीत जाते हैं. हार का क्या है चुनाव तो बड़े-बड़े लोग भी हार जाते हैं. उसी तरह उनके पिता भी चुनाव हार गए. इस जवाब के बहाने संभवत सिद्धार्थ का इशारा इस ओर था कि टिकट मिले न मिले पर उनकी पकड़ कार्यकर्ताओं और एक-एक पोलिंग पर अभी तक मजबूत है. अगर परिणाम बदल जाते हैं, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
राहुल को शुभकामनाएं
सिद्धार्थ कहते हैं कि राहुल सिंह लोधी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं. वह दमोह के होकर रहे, दमोह के लिए काम करें, दमोह के विकास के लिए काम करें, यही मेरी शुभकामनाएं हैं.