दमोह। सिंगौरगढ़ किला के रखरखाव एवं जीर्णोद्धार के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा काम किया जा रहा है. हाल ही में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री प्रहलाद पटेल ने 30 करोड़ रुपए पेट्रोलियम मंत्रालय से स्वीकृत कराए हैं. एएसआई के एमटीएस सचिन कुमार और सर्वेयर शिवम दुबे बताते हैं कि इस किले का निर्माण प्रतिहार राजाओं ने 7वीं शताब्दी में कराया था. इसका उल्लेख अलेक्जेंडर कनिंघम के वार्षिक मेंमायर में मिलता है. किले की प्राचीर और रानी महल में की गई नक्काशी में प्रतिहार, कलचुरी, गौंड कालीन और कहीं-कहीं मथुरा का वास्तु व शिल्प कला का समावेश मिलता है. रानी महल के अंदर से ही एक गुफा है जो नीचे पारस मणि तालाब तक जाती है. उसी का एक मुहाना जबलपुर मदन महल या मंडला में खुलने के प्रमाण मिलते हैं. एक किवदंती यह भी है कि इस गुफा का एक मुहाना बटियागढ़ के निकट बरी कनोरा के जंगलों में स्थित किले में खुलता है.
भगवान गणेश के उपासक थे गौंड शासक
सचिन कुमार आगे कहते हैं कि अभी तक जो मूर्तियां मिली हैं उनमें भगवान गणेश के बाल स्वरूप, भगवान विष्णु तथा एक प्रतिमा संभवत: वामन भगवान की प्रतीत होती है. ऐसा समझा जाता है कि गौंड शासक भगवान गणेश के उपासक रहे होंगे. रानी महल के सामने ही पूर्व की तरफ सीढ़ियों से एक युक्त एक विशालकाय चबूतरा है, जिस के बीचोबीच गोल मंदिर नुमा निर्माण होने के संकेत मिलते हैं. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि रानी या उनके परिजन यहीं पर पूजन करते होंगे, जबकि स्थानीय लोग रानी महल से करीब 2 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक अन्य स्थान पर पांच छोटे मंदिरों को रानी का पूजन स्थल बताते हैं.
समृद्धशाली वास्तु और शिल्प कला
स्थानीय लोग और सचिन कुमार बताते हैं कि रानी महल के समीप ही एक विशालकाय हमाम बना है, जिसमें फर्श पर गोल पत्थरों की पिचिंग की गई है. आजू-बाजू में मजबूत परकोटा है एक तरफ हमाम भी है, जिसमें राजा और रानी के लिए अलग अलग स्नानघर हैं. परकोटे से अतिरिक्त पानी निकालने के लिए छोटे क्षिद्र दिए हुए हैं. इन क्षेत्रों से बारिश का गंदा पानी फिल्टर होता होगा तथा उसकी सिल्ट नीचे जम जाती होगी. इसके अलावा अतिरिक्त पानी उन्हीं बारीक क्षिद्रों से बाहर भी निकल जाता होगा. इस निर्माण को देखने पर प्रतीत होता है की करीब 13 सौ वर्ष पूर्व जब इस महल का निर्माण किया गया होगा उस समय का वास्तु एवं शिल्प कला कितनी समृद्ध रही होगी. जबकि उस समय आज की तरह आधुनिक संसाधनों का पूरी तरह अभाव था. इसके अतिरिक्त रानी महल के आसपास जो सप्त पहाड़ियां हैं वहां बड़ी-बड़ी प्राचीर तथा चौकियां विद्यमान हैं, इससे यह संकेत मिलते हैं की शत्रु पर नजर रखने के लिए सभी पहाड़ियों पर सैनिक छावनी रही होंगी.
रानी दुर्गावती के शौर्य और वीरता की कहानी बयां कर रहा सिंगौरगढ़ किला
रहस्यों से भरा रानी महल
रानी महल की बनावट रहस्यों से भरी है. महल के प्रत्येक कक्ष में हवा एवं प्रकाश के लिए विशेष कोण में झरोखे व रोशनदान बनाए गए हैं. प्रथम तल के नीचे पहाड़ी के अंदर एक अन्य तल होने के प्रमाण भी मिलते हैं. इसके अलावा रानी महल प्रथम तल से करीब तीन मंजिल ऊपर रहा होगा, जिसके कुछ अवशेष अभी भी मौजूद हैं. सिंगौरगढ़ किले के जानकार वयोवृद्ध फूल चंद जैन बताते हैं की प्रत्येक कक्ष से नीचे गोपनीय सीढ़ियां भी हैं जब 50 वर्ष पूर्व वह यहां पर आते थे उस समय सीढ़ियां खुली हुई थी. घना अंधेरा और जीव जंतु के डर के कारण उसमें नीचे जाने से कतराते थे. यह सभी सीढ़ियां गुफा में मिलती होंगी. हालांकि एएसआई ने इन गुफा के नीचे जाने वाली सीढ़ियों के द्वार बंद कर दिए हैं. एमटीएस सचिन कुमार कहते हैं कि पूरा किला रहस्यों से भरा है. इसके बारे में जितनी भी मालूमात हासिल होती है वह हर बार आश्चर्य में डाल देती है. चूकिं इस किले में कई राजाओं का शासन रहा है इसलिए जब जब जीर्णोद्धार हुआ है तब-तब उस शासन की छाप देखने मिलती है.