छिंदवाड़ा। मध्यप्रदेश में पांचवीं बार सत्ता में आने और छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को जीतने की कवायद में जुटी भाजपा पूरी सतर्कता बरत रही है. इसकी झलक केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कार्यक्रम के दौरान छिंदवाड़ा में शनिवार को दिखी, जहां तय कार्यक्रम के मुताबिक शाह को आंचलकुण्ड के दादाजी धूनी वाले के दरबार पहुंचना था. छिंदवाड़ा में ही लेट पहुंचने की वजह से शाह का आंचलकुंड विजिट निरस्त हो गया. जो कार्यक्रम यहां शाह को करने थे, वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, मंत्री नरोत्तम मिश्रा, कमल पटेल और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने किए. मुख्यमंत्री शिवराज ने लोगों को बताया कि कार्यक्रम में देरी होने की वजह से शाह आंचलकुंड नहीं आ पाएंगे.
ये राजनीतिक वजह हो सकती हैं:
1.मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 47 अनुसूचित जनजाति वर्ग (ST) के लिए आरक्षित हैं. छिंदवाड़ा के पड़ोसी जिले बैतूल, हरदा के अलावा महाकौशल की मंडला, डिंडौरी लोकसभा सीट सहित आदिवासियों के लिए आरक्षित 18 सीटों पर भाजपा की खास नजर है. वर्ष 2018 के चुनाव में एसटी वर्ग के लिए आरक्षित अधिकांश सीटों पर कांग्रेस को जीत मिली थी.
2.छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में आदिवासियों की आबादी करीब 8 लाख से अधिक है जबकि मतदाता 6 लाख के करीब हैं. ये ओबीसी के बाद दूसरे नंबर पर हैं. यहां एसटी की तीनों विधानसभा में कांग्रेस के विधायक और निगम महापौर भी कांग्रेस के हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में आदिवासी उम्मीदवार उतारने के बाद भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था.
3. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को देश की उन 143 सीटों में रखा है, जहां भाजपा या तो जीत नहीं पाई है या एकाध बार ही जीती है. ऐसी सीटों को आकांक्षी श्रेणी में रखा गया है. इन सीटों पर भाजपा पिछले 6 माह से काम कर रही है. केंद्रीय मंत्रियों का यहां आना-जाना लगा हुआ है. इन्हीं में से एक सीट छिंदवाड़ा को फतह करने के लिए भाजपा आदिवासी वोटर्स को साधने में जुटी हुई है.
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कंगाल दास बाबा ने की थी आंचलकुंड धाम की स्थापना: आदिवासी बहुल गांव में कंगाल दास बाबा ने आंचलकुंड धाम की स्थापना की थी. दादाजी धूनी वाले ने धूनी जलाते हुए कंगाली बाबा को वरदान दिया कि वे यहीं पर निवास करेंगे. बाबा कंगाल दास आदिवासी सिंगरामी इनवाती के परिवार में जन्मे थे. परिवार मजदूरी करने पड़ोसी जिले नरसिंहपुर जाता था, जहां साईंखेड़ा में दादाजी धूनी वाले का दरबार था. वहां जाकर कंगाल दास बाबा रहने लगे और पूजा-पाठ करने लगे. इसके बाद वे दादाजी धूनी वाले की पूजा-अर्चना आंचलकुंड में भी करने लगे. उनकी धूनी यहां प्रज्ज्वलित की गई. तब से ही आंचलकुंड आदिवासियों की आस्था का केंद्र है.