छिंदवाड़ा। कहा जाता है कि जिले में छिंद के पेड़ अधिक मात्रा में होने की वजह से जिले का नाम छिंदवाड़ा रखा गया था. इसी विरासत और पहचान को कायम रखने के लिए आदिवासी अंचल तामिया विकासखंड के समाज सेवी पवन श्रीवास्तव और आदिवासी लोग मिलकर छिंद की राखियां बना रहे हैं. ताकि लोगों को अपनी विरासत और जिले की पहचान के बारे में जानकारी मिल सके.
छिंद के मुकुट होते हैं खास: सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बसे छिंदवाड़ा जिले के हर हिस्से में छिंद के पौधे बड़ी संख्या में मौजूद हैं. माना जाता है कि जिले का नामकरण भी इसी आधार पर ही हुआ. आदिवासी अंचल के लोग छिंद के पत्तों से दूल्हा-दूल्हन के लिए मोर मुकुट बनाते हैं. मोर मुकुट बनाने वाले हुनरमंद लोग अब अंगुलियों पर गिनने लायक ही बचे हैं. लेकिन उनके हुनर को नई पीढ़ी नए कलेवर में जीवित रखने का प्रयास कर रही है.
बागेश्वर सरकार से लेकर अमित शाह तक ने पहने मुकुट: इस साल रक्षाबंधन पर्व के लिए तामिया और जुन्नारदेव के कुछ परिवार छिंद की राखी तैयार कर रहे हैं. जुन्नारदेव विकासखंड की ग्राम पंचायत कोहाझिरी के जड़ेला ढाना निवासी मोहन सिंग भारती छींद के पत्तों से मोर मुकुट बनाने में माहिर हैं. मुकुट बनाने में मजदूर और ज्यादा परिश्रम लगने के कारण इसके दाम भी तेजी से बढ़ते गए. इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि महंगे मोर मुकुट के बजाए लोग बाजार से कपड़े के रेडिमेड साफे खरीदने लगे. हालांकि खास मौकों पर आज भी इन मुकुट की मांग है. फिर बागेश्वर धाम के पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री हो या छिंदवाड़ा जिले में आने वाले बड़े नेता, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर बड़े-बड़े नेताओं को मुकुट पहनाई गई है.
जिले का नाम रोशन करने पूरा परिवार बना रहा राखियां: बीते एक महीने से मोहन सिंह भारती के बेटे सनीलाल, सरसलाल के साथ उनकी बहुओं और नाती नातिन ने छिंद के पत्तों से राखी बनाने का काम शुरू किया. दस वर्षीय नातिन कुसुम और आठ वर्षीय नाती अर्जुन ने विभिन्न माध्यमों से राखी की डिजाइन खोज निकाली. परिवार के लोगों ने कई तरह के बंध और अन्य सामग्री का उपयोग कर पचास से अधिक डिजाइन की राखियां तैयार कर ली. इसे अब वे स्थानीय बाजार के साथ शहरी अंचल में भेजने की तैयारी कर रहे हैं.
राखी बनाने की चली आ रही विरासत: तामिया विकासखंड के ग्राम पंचायत मुआरकला में ग्रेज्युएट डिग्री धारी मनेश भारती के दादाजी भी छिंद से मोर मुकुट बनाते थे. दादाजी से हुनर हासिल कर मनेश ने भी इस कला को जीवित रखने का संकल्प लिया. दादाजी के निधन के बाद मनेश ने छिंद के अन्य उत्पाद बनाने शुरू किया. इन कलाकारों का कहना है कि यदि छींद के उत्पादों को जिले के लोग अपनाएंगे तो इससे छिंदवाड़ा का नाम पूरे देश में अलग तरीके से स्थापित होगा.
बाहरी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी राखियां: तामिया के सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल पातालकोट में आने वाले पर्यटकों को छिंद से बनी राखियां लुभा रही हैं. रविवार को इन कलाकारों ने दिल्ली के पटियाला हाउस से आए अधिवक्ताओं के समूह को राखी भेंट की. देश की राजधानी के बुद्धिजीवी नागरिकों ने आदिवासी अंचल की कला की तारीफ की. विदिशा से आए पर्यटकों के समूह को भी कलाकारों ने छिंद से बने रक्षा सूत्र व अन्य सामग्री भेंट की तो वे आश्चर्य चकित रह गए. कुछ पर्यटक इन कलाकारों से बड़ी संख्या में राखी ले गए.
छिंदवाड़ा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: यह माना जाता है कि एक समय पर छिंदवाड़ा छिंद के पेड़ से भरा था और इस जगह का नाम 'छिंदवाड़ा' (वाड़ा का मतलब है जगह) रखा गया. छिंदवाड़ा नगर की एक विशेष पहचान है, इसे जंगली खजूर, शुगर डेट पाम, टोडी डेट पाम, सिल्वर डेट पाम, इंडियन डेट पाम आदि नामों से भी जाना जाता है. वानस्पतिक भाषा में इसका नाम फोनिक्स सिल्वेस्ट्रिस है, जो एरेकेसी परिवार का सदस्य है. यह पेड़ उपजाऊ से लेकर बंजर मैदानी भूमि में, सामान्य से लेकर अत्यंत सूखे मैदानी भागों में, सभी तरह की मिट्टी में आसानी से उग जाता है.